लगभग दो महीने होने को आये थे इस भयानक त्रासदी को और राकेश इस पूरे समय में लोगों की मदद के लिए हर समय तैयार था. दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, बस किसी भूखे या परेशान के बारे में पता चलते ही वह अपनी टीम या कभी कभी अकेले ही निकल पड़ता था.
"भाई, तुम तो हर तरफ छा गए हो, समाचार पात्र हो या लोकल टी वी, जिसे देखो वही तुम्हारी बात कर रहा है", दोस्त का फोन आया तो वह मुस्कुरा पड़ा.
"देखो यार, ऐसा मौका जीवन में जब भी आये, अपनी तरफ से सब कुछ झोंक देना चाहिए. आखिर हम कुछ लोगों की तो मदद करने में…
Added by विनय कुमार on May 21, 2020 at 6:08pm — 6 Comments
(221 2121 1221 212)
अंधी गली के मोड़ पे सूना मकान है
तन्हा-सा आदमी अब इस घर की शान है
हमसे उन्होंने आज तलक कुछ नहीं कहा
हर बार उससे पूछा है जो बेज़बान है
हालात-ए- माज़ूर यक़ीनन हुये बुरे
ऊपर चढ़ाई है वहीं नीचे ढलान है
बदक़िस्मती का ये भी नमूना तो देखिये
गड्ढे नहीं मिले थे जहाँ पर खदान है
मरने के बाद भी तो फ़राग़त नहीं मिली
सारे बदन पे बोझ है मिट्टी लदान है
*मौलिक एवं…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on May 21, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
मौन सरोवर ....
जुदा न होना
मेरे होकर
कैसे कह दूँ तुम स्वप्न हो
मेरी श्वास का तुम दर्पण हो
बोलो प्रिय
कहाँ गए तुम
मेरी पलक में सपने बो कर
जीवनतल की अकथ कथा तुम
प्रेम पलों की मधुर ऋचा तुम
तुम बिन देखो
सूख न जाएँ
अभिलाषा के मौन सरोवर
अभी यहाँ थे अभी नहीं हो
मेरी क्षुधा की सुधा तुम्हीं हो
जीवन दुर्लभ
तुमको खोकर
तुम अंतस की अमर धरोहर
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on May 20, 2020 at 7:49pm — 6 Comments
"पापा, अब तो आप नहीं जाओगे ना?, बेटा पिता को पकड़े हुए कह रहा था, साल भर बाद उसने पिता को देखा था.
उसके सामने पिछले सात दिन का खौफनाक मंजर छा गया, कभी पैदल, कभी ट्रक में, कभी किसी टेम्पो में चलते हुए बस वह आ गया था. उसके एक दो साथी तो रास्ते में ही चल बसे थे.
उसने पत्नी की तरफ देखा, जिसकी आँखें मानो कह रही थीं "तुम बस सलामत रहो, दो वक़्त की रोटी तो हम खा ही लेंगे".
उसने अपने भविष्य की चिंता को झटकते हुए कहा "अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा बेटा, यहीं रहूँगा, तुम्हारे पास".
बेटा खुश…
Added by विनय कुमार on May 19, 2020 at 6:28pm — 8 Comments
वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था
इश्क़ वो वफाओं वाली, चाह बन के रह गयी
जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए
टोकड़ी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी
था मेरा गरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको
साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी
सपनों का था एक क़िला, मिलने का वो सिलसिला
तोड़ा उसके दिल को मैंने, पल मे सारी ढह गयी
वादे उसकी सच्ची थी, मेरी डोर कच्ची…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 19, 2020 at 1:46pm — 4 Comments
( 2122 1122 1122 22 /112 )
सिर्फ़ सन्नाटा है ता-हद्द-ए-नज़र अब मेरी
ख़्वाब की दुनिया गई यार बिखर अब मेरी
झूठ निकला मेरा दावा कि तेरे बिन न रहूँ
हिज्र के साथ है क्या ख़ूब गुज़र अब मेरी
नाख़ुदा है ही नहीं जब तो मुझे क्या मालूम
मौज ले जाएगी कब नाव किधर अब मेरी
कैसा माज़ी था मुहब्बत ही मुहब्बत से भरा
देखने की नहीं हिम्मत है उधर अब मेरी
फ़र्क सेहत पे न कुछ उसके है पड़ने वाला
जाती है जाये भले जान अगर अब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 18, 2020 at 9:30pm — 9 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
पथ से खुशी के दुख भरे काँटे नहीं गये
निर्धन के पाँव से कभी छाले नहीं गये।१।
**
दसकों गुजर गये हैं ये नारा दिये मगर
होगी गरीबी दूर के वादे नहीं गये।२।
**
जिन्दा नहीं तो मरके वो पाये हैं लाख जो
मजदूर अपने गाँव के सस्ते नहीं गये।३।
**
कहते हैं इसको आपदा चाहे जरूर वो
शासन से इसके पर कभी रिश्ते नहीं गये।४।
**
किस्मत गरीब की रही झोपड़ ही घास की
आँगन में जिसके फूल के डाले नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 4:03pm — 7 Comments
भीगी दुःखती ऑखे लेकर,
हम सपनों को पाने निकले,
मन के चिटके दप॔ण में,
गीला अक्स सजाने निकले।
जीवन शतरंज की गोटी, सिर्फ
हराए हरेक चाल पर,ऊपर बैठा
गजब खिलाड़ी ,हम भी
क्या दीवाने निकले ।
ऑख तौलती भार स्वप्न का,
होंठ हंसी की परिधि नापते,
सौदागर इस बस्ती में, क्या- क्या तो
कमाने निकले ।
महज उदासी पाई मन ने,
अपनेपन के रिश्तों में,
कुछ कदमों तक साथ चले थे,
बेहतर तो बेगाने निकले।
अन्विता ।
मौलिक एवं…
Added by Anvita on May 18, 2020 at 12:30pm — 4 Comments
Added by Anvita on May 18, 2020 at 8:13am — 7 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
सीख लिया शब्दों ने
जीना और मरना
बिना परिधान बदले
देह का
साथ रहकर
व्योम को
सूक्ष्म से अलंकृत करो
कि स्वप्न भी
कल्पना हैं
अचेतन मन की
कह दिया काँपती लौ ने
दिए से
आज मैं सो जाऊंगी
तुम्हारी गोद में
क्रूर पवन के वेग से आहत होकर
शायद मेरा उजाला
अंधेरों को
नहीं भाया
मिट गई
जीत की आकांक्षा
तिमिर में
इक दूजे से
हारते हुए
हम के…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 17, 2020 at 9:37pm — 6 Comments
बह्र- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाा
2122 2122 2122 2
ये हंसी ये मुस्कराहट कातिलाना है
हां तभी तुझपर फिदा सारा ज़माना है
लाॅक डाउन तोड़कर घर से निकलकर आ
देख तो मौसम बड़ा ही आशिकाना है
ये गदाईगीर का हो ही नहीं सकता
ये नगर के शाह का ही शामियाना है
बांटते थे ग़म खुशी आपस में पहले दोस्त
अब कहां माहौल वैसा दोस्ताना है
बेसबब हैं कैद घर में लोग हफ्तों से
कब रिहाई होगी इनकी क्या ठिकाना…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on May 17, 2020 at 8:30pm — 4 Comments
२१२२/२१२२/ २१२२/२१२
शासकों को रोज अपनी दुख बयानी लिख रहे
एक चिकने घट को जैसे बूँद पानी लिख रहे।१।
**
अधजली दंगों में थी अब अधमरी है रोगवश
पर खबर में खूबसूरत राजधानी लिख रहे।२।
**
दान दाता बन गये कुछ एक मुट्ठी दे चना
खींचकर तस्वीर उसकी नित कहानी लिख रहे।३।
**
आस में अच्छे दिनों की शह्र आये थे मगर
गाँव के वो आज सब को खूब मानी लिख रहे।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2020 at 2:00pm — 6 Comments
तोड़े थे यकीन मैंने मोहल्ले की हर गली में
सुकून हम कैसे पाते इतनी आहे लेकर
मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है
ठोकरे ही हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर
हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया
ज़मी थी शख्त मगर मैं बस धस्ता ही गया
गुनाह जो मैंने किये थे बेखयाली में
याद करके उन सबको मैं बस गिनता ही गया
किसी का हाथ छोड़ा किसी का साथ छोड़ दिया
मैंने हर बदनामी को उनकी तरफ मोड़ दिया
सामने जब भी वो आए अपना बनाने के…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 17, 2020 at 12:12pm — 2 Comments
2122 2122 2122
खुश हुआ तू बोलकर,' है जानवर तू'
लग रहा खुद को बताता,बेसबर तू।
सांस बनकर बह रहीं ठंडी हवाएं
आग की लपटें उठा मत बन, कहर तू।
ख्वाब पाले मौन बैठी हैं सदाएं
कानफाड़ू! ला सके तो,ला सहर तू?
तार होती हो नहीं उम्मीद कोई,
हो अगरचे तो बता,कोई पहर तू?
हर्फ हासिल हो गए तो शायरी कर,
क्यूं अंधेरों को बढ़ाता है बशर तू?
मत बिठा मेरी गजल को हाशिए पर
छटपटाती है बहर,देखे अगर तू।
रुक्न रोते, बुदबुदाते शब्द सारे,
नज़्म कहकर…
Added by Manan Kumar singh on May 17, 2020 at 11:30am — 11 Comments
Added by Anvita on May 16, 2020 at 8:54pm — 6 Comments
( 121 22 121 22 121 22 121 22 )
.
हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना
हमें फ़लक की भी क्या ज़रूरत ज़मीन से है जुड़ाव अपना
**
जहाँ में अपनी किसी से यारो न दुश्मनी और न दोस्ती है
न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना |
**
फ़रोख्त होगी कभी हमारी ख़याल कोई न लाये दिल में
अमोल हैं हम कोई जहाँ में करेगा क्या मोलभाव अपना
**
कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 16, 2020 at 3:00pm — 10 Comments
जाग जाता हूँ सुबह ही आँख अब लगती नहीं
दिन गुजरता है नहीं और रात कटती ही नहीं
ऐसा लगता है मैं कोई व्यर्थ सा सामान हूँ
है कदर न जिसकी कोई खोया वो सम्मान हूँ
प्यार बीवी के नजर में वैसी अब दिखती नहीं
है खफा वो खूब लेकिन मुँह से कुछ कहती नहीं
पहले सी चहरे पे उसके अब हसी दिखती नहीं
मेरी ये उदास आँखे झूठ कह सकती नहीं
चिढ़चिढ़ा सा हो गया हूँ बस यु हीं लड़ जाता हूँ
छोटी-छोटी बातों पे मैं बच्चों पे चिल्लाता हूँ
मेरे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 16, 2020 at 6:30am — 5 Comments
Added by pratibha pande on May 15, 2020 at 11:00pm — 8 Comments
( 2122 2122 2122 )
हम सुनाते दास्ताँ फिर ज़िन्दगी की
काश हम भी काटते फसलें ख़ुशी की
अब चुरा लो शम्स की भी धूप सारी
कोई तो बदलो ये सूरत तीरगी की
जानवर अब हैं ज़ियादा जंगलों में
नस्ल घटती जा रही है आदमी की
हैं अंधेरे घर में अपने क़ैद सारे
कौन खींचेगा लकीरें रौशनी की
जो भी हो सागर मिलेगा तिश्नगी को
बाढ़ ले जाये हमें अब तो नदी की
आंखेंं फट जाएँगी हैरत से…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on May 15, 2020 at 7:00pm — 10 Comments
भेद :
समझा दिया मैंने
अपने बच्चों को
सत्य और असत्य में क्या है भेद
समझा दिया
मैंने अपने बच्चों को
भानु से फैला उजास
कितने रंगों को होता है
समझा दिया मैंने
यह भी अपने बच्चों को
कि रंगीली गिरगिट का
कौन सा रंग असली और कौन सा नकली होता है
मगर
मुझे ये समझाने में
बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ा
कि इंसान का कौन सा रंग असली है
और कौन सा नकली
शायद वक्त के साथ
वो इस…
Added by Sushil Sarna on May 15, 2020 at 6:19pm — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |