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रामभरोसे को कोई नहीं ढूँढ रहा ( अतुकान्त)

रामभरोसे को कोई नहीं ढूँढ रहा
 
कब वो पिट्ठू बैग लादे 
पगलाया घबराया सा निकल लिया
वापस गाँव को
किसी को नहीं पता 
कोई ढूँढे भी क्यों 
किसके पास फुर्सत है  इस व्यस्त शहर में
हर दिन रामभरोसे आते जाते 
मरते खपते रहते हैं
मुख पर पट्टी बाँधे घबराया शहर
आज खुद व्याकुल है 
ऐसे भीड़ बढ़ाते रामभरोसों को कौन पूछे
 
बस रामभरोसे का ठेला दुखी है 
रामभरोसे को याद करते हुए
 
महानगर में दिन भर 
धक्के खाते रामभरोसे का साथी   
उसका ठेला ,फिक्रमंद है उसके लिये
ठेले की  खुरदुरी लकड़ी पर 
बदन टिकाये रात को
सब दर्द खुशी साझा करता था रामभरोसे
रोता था माँ को याद करके
बहन को याद करके
बाप से गुस्सा था  
पैसा कमाकर ही लौटेगा गाँव
ठान रखी थी
 
पर आज वो लौट गया खाली हाथ 
पैरों में कहाँ से आ गया इतना जुनून
कि पैदल ही चल पड़ा
शायद माँ ने कहा होगा लौट आ
मरेंगे तो साथ मरेंगे
भूख से या  महामारी से
शायद बाप ने भी ये ही कहा हो
या शायद नहीं कहा हो
पर कहना चाह रहा हो
 
राजमार्गों पर आज भीड़ है
घर लौटते रामभरोसों की
पैदल  या भेड़ बकरियों की तरह  
ट्रकों बसों में भरकर
रामभरोसों को नोंचते चील कौव्वों
की तो चल पड़ी
इनपर आँसू बहाकर 
अपनी गोटियाँ जमाने वालों 
की भी चल पड़ी 
 
कोई तो कह दे 
मत जाओ यहीं रहो डरो मत
इस आशा में किसी रामभरोसे ने
देखा तो होगा पीछे मुड़कर जरूर 
और फिर चुपचाप 
आगे बढ़ गया होगा राम के भरोसे
  
*****
प्रतिभा पाण्डे
मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on May 24, 2020 at 12:39pm

उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिं ह जी

Comment by pratibha pande on May 24, 2020 at 12:37pm

रचना पर उपस्थित होकर उसके मर्म के अनुमोदन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी

Comment by pratibha pande on May 24, 2020 at 12:35pm

रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणीं के लिये हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

Comment by pratibha pande on May 24, 2020 at 12:33pm

रचना पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी

Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 4:09pm

आद0 प्रतिभा पांडेय जी  सादर अभिवादन। राम भरोसे के रूप में बढ़िया भावपरक और सामयिक रचना पर बधाई स्वीकार कीजिए

Comment by TEJ VEER SINGH on May 20, 2020 at 12:12pm

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी। मार्मिक प्रस्तुति।एक राम भरोसे को प्रतीक मान कर आज के मजदूर की दुर्दशा का सजीव चित्रण।कड़वी सच्चाई है जाने कितने राम भरोसे लील गयी ये शहरी चकाचौंध।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2020 at 9:17am

आ. प्रतिभा बहन, अच्छी समसामयिक रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 18, 2020 at 2:58pm

मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,अच्छी रचना हुई, बधाई स्वीकार करें ।

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