For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाा

2122   2122  2122  2

ये हंसी ये मुस्कराहट कातिलाना है
हां तभी तुझपर फिदा सारा ज़माना है

लाॅक डाउन तोड़कर घर से निकलकर आ
देख तो मौसम बड़ा ही आशिकाना है

ये गदाईगीर का हो ही नहीं सकता
ये नगर के शाह का ही शामियाना है

बांटते थे ग़म खुशी आपस में पहले दोस्त
अब कहां माहौल वैसा दोस्ताना है

बेसबब हैं कैद घर में लोग हफ्तों से
कब रिहाई होगी इनकी क्या ठिकाना है

मेरे मालिक अब क़फ़स कोई नया दे दे
जिस क़फ़स में हूं मैं वो वर्षों पुराना है

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 446

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 22, 2020 at 2:15pm

आदरणीय समर कबीर साहब ग़ज़ल पर टिप्पणी करने और उत्साह वर्धन के लिए सादर आभार

Comment by Samar kabeer on May 21, 2020 at 12:01pm

जनाब राम अवध जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 20, 2020 at 5:20am

आदरणीय लक्ष्मण नामी मुसाफिर जी ग़ज़ल पर  सार्थक टिप्पणी के लिए आभार। अन्त में एक अक्षर अधिक होना  मेरे विचार से  जायज माना जाता है 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2020 at 3:59pm

आ. भाई राम अवध जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई । 

बांटते थे ग़म खुशी आपस में पहले दोस्त

ये मिसरा बेबह्र हो रहा है देखिएगा ..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service