२१२२/२१२२/ २१२२/२१२
शासकों को रोज अपनी दुख बयानी लिख रहे
एक चिकने घट को जैसे बूँद पानी लिख रहे।१।
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अधजली दंगों में थी अब अधमरी है रोगवश
पर खबर में खूबसूरत राजधानी लिख रहे।२।
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दान दाता बन गये कुछ एक मुट्ठी दे चना
खींचकर तस्वीर उसकी नित कहानी लिख रहे।३।
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आस में अच्छे दिनों की शह्र आये थे मगर
गाँव के वो आज सब को खूब मानी लिख रहे।४।
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क्या गजब जम्हूरियत है उन को मेरे देश में
लूटकर सबके हकों को हकबयानी लिख रहे।५।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
क्या गजब जम्हूरियत है उन को मेरे देश में
लूटकर सबके हकों को हकबयानी लिख रहे।५।
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आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
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