2122 2122 2122 2
ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ
नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ
तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में
पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ
ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से
हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ
राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा
ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ
साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा
अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ
- दयाराम मेठानी…
Added by Dayaram Methani on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments
हाँ में हाँ मिलाइये
वर्ना चोट खाइए.
.
हम नया अगर करें
तुहमतें लगाइए.
.
छन्द है ये कौन सा
अपना सर खुजाइये
.
मीर जी ख़ुदा नहीं
आप मान जाइए.
.
कुछ नये मुहावरे
सिन्फ़ में मिलाइये.
.
कोई तो दलील दें
यूँ सितम न ढाइए.
.
हम नये नयों को अब
यूँ न बर्गलाइये.
.
नूर है वो नूर है
उस से जगमगाइए. .
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 5, 2021 at 8:32pm — 9 Comments
जहाँ दिखे अँधियार वहीं पर दीप जलाना
छाये खुशी अपार वहीं पर दीप जलाना
अपने मन के भीतर का जो पापी तम है
'अयं निजः' का भाव जहाँ पलता हरदम है
'वसुधा ही परिवार' जहाँ अंधेरे में है
सबसे पहले यार वहीं पर दीप जलाना
जहाँ दिखे अँधियार………………..
मुरझाए से होठों पर मुस्कान बिछाने
छोटी-छोटी खुशियों को सम्मान दिलाने
जिन दर दीप नहीं पहुँचे हैं उन तक जाकर
रोशन करना द्वार वहीं पर दीप जलाना
जहाँ दिखे…
ContinueAdded by आशीष यादव on November 4, 2021 at 2:30pm — 6 Comments
वज़्न -2122 1122 1122 22/112
क्यों इसे आब दिया सोच के दरिया टूटा
जब समुंदर के किनारे कोई तिश्ना टूटा
एक साबित क़दम इंसान यूँ तन्हा टूटा
देख कर उसको न टूटे कोई ऐसा टूटा
वस्ल की जिस पे मुकद्दर ने लिखी थी तहरीर
वक़्त की शाख़ से वो क़ीमती लम्हा टूटा
तेरे बिन ज़ीस्त मेरी तुझ-सी ही मुश्किल गुज़री
हिज्र में मुझ पे भी तो ग़म का हिमाला टूटा
कुछ न टूटा मेरे हालात की आँधी में बस
जिसमें तुम थे वही ख़्वाबों…
Added by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 3, 2021 at 11:22am — 4 Comments
सब धर्मों का सार जो
वह तो केवल एक
बाह्य रूप दिखता अलग
परम चेतना एक
फैलाते भ्रम व्यर्थ ही
जो विवेक से शून्य
वे मतिभ्रष्ट, विवेकहीन
उन्हे चढ़ा अहमन्य
हुए विषमता से परे
जिन्हे सत्य का बोध
गुण-अवगुण से हो विलग
नित्य बसे मन मोद
प्रकृति और चैतन्य का
आपस का संयोग
उस दर्पण में फलीभूत
हो ज्ञानी का योग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 3, 2021 at 6:44am — 3 Comments
ग़ज़लों का आनन्द समझ में आ जाए
काश तुन्हें यह छन्द समझ में आ जाए.
.
संस्कृत से फ़ारस का नाता जान सको
लफ्ज़ अगर गुलकन्द समझ में आ जाए.
.
रस की ला-महदूदी को पहचानों गर
फूलों का मकरन्द समझ में आ जाए.
.
दिल में जन्नत की हसरत जो जाग उठे
हों कितना पाबन्द समझ में आ जाए.
.
भीषण द्वंद्व मैं बाहर का भी जीत ही लूँ
पहले अन्तर-द्वन्द समझ में आ जाए.
.
मन्द बुद्धि का मन्द समझ में आता है
अक्ल-मन्द का मन्द समझ में आ जाए.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 1, 2021 at 6:00pm — 8 Comments
122 122 122 122
किसी और की अब जरूरत नहीं है
मगर तुम न कहना मुहब्बत नहीं है
हुई जब से शादी तो फुर्सत नहीं है
रहूंँ मायके में इज़ाज़त नहीं है
मैं मदहोश उनकी ही यादों में रहता
मुझे भूलने की तो आदत नहीं है
सरे आम होते यहां ज़ुर्म रहते
उसे रोकने की भी हिम्मत नहीं है
तुम्हें गर न देखें थमी सांस रहती
अगर मर गया भी तो हैरत नहीं है
फ़कत इश्क़ में अब दिखावा ही दिखता
नये शोहदों में…
Added by Deepanjali Dubey on November 1, 2021 at 3:00pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
1
जब भी छाए अब्र मुश्किल के वतन की आन पर
खेले हैं तब तब हमारे तिफ़्ल अपनी जान पर
2
आज़मा ले लाख अपना रौब रुतबा शान पर
हो न पाएगा कभी हावी तू हिन्दुस्तान पर
3
हम नहीं होते परेशाँ धर्म से या ज़ात से
ख़ूँ जले अपना तो झूठे और बेईमान पर
4
माना हैं मतभेद भाषा वेष भूषा धर्म में
फ़ख़्र करते हैं प सब भारत के बढ़ते मान पर
5
एक दिन ऐसा भी "निर्मल" देखना तुम…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on November 1, 2021 at 11:00am — 5 Comments
रद्दी - लघुकथा -
"अरे, ये क्या, सारी की सारी पुस्तकें वापस लेकर आ गये।"
"क्या करूं पुष्पा, तुम ही बताओ? पूरा दिन बाजार में घूमता रहा इतना भारी इतनी कीमती पुस्तकों का बैग लेकर, लेकिन कोई दुकानदार…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 30, 2021 at 7:05pm — 8 Comments
संगदिल फिर ज़िन्दगी है उससे टकराना भी क्या !
फोड़कर सर अपना यारो रोना-चिल्लाना भी क्या !!
कीमती आँसू हैं तेरे वो निशाँ जुल्म ओ सितम,
बंद दरवाजों के आगे सर को टकराना भी क्या !
कर खुदा की बन्दगी और एहतराम उसका कर ले,
लोग ही क़मज़र्फ हों गर उनको जतलाना भी क्या !
बढ़ रही तन्हाईयाँ है उम्र के बढ़ने के साथ,
खाली-खाली जीस्त है गर वो सर खुजलाना भी क्या !
नौंचनी हैं उनको लाशें क़ौम भी तो बाँटनी,
शहर सौदागर आये उनको…
Added by Chetan Prakash on October 29, 2021 at 6:30am — No Comments
ऊँचे तो वही उठ पाएंगे
जो सत्य की गहराई
झूठ का उथलापन
जान जाएंगे
जो सत्य को कमजोर समझते
विनम्रता का तिरस्कार करते
वैराग्य का उपहास उड़ाते हैं
वह बुद्धि बल से पंगु
अपनी दुर्बलता छिपाते हैं
जो सत्य को तोड़ते, मरोड़ते हैं
वे साहित्यकार नहीं
चाटुकार होते हैं
दिन कहाँ समान रहते हैं?
सत्य है, आज इसकी
कल उसकी झोली भरते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 27, 2021 at 10:36pm — 10 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को
सम्बल दिया है हरपल कमजोर बाजुओं को।१।
*
कहती है रूह उन की बलिदान जो हुए थे
पहचान कर हटाओ जयचन्द पहरुओं को।२।
*
शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा
करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।
*
उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर
बैठे जो बन्द कर के दिन में भी चक्षुओं को।४।
*
कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर
हर डाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2021 at 10:19pm — 14 Comments
2122 1122 1122 22 /112
1
शोर धड़कन का ज़माने को बताना चाहे
दिल करीब और करीब यार के आना चाहे
2
दिल की बैचेनी भी अब एक ठिकाना चाहे
थोड़ा ख़ुशियों के समंदर में नहाना चाहे
3
साथ जितना भी लिखा उसने तेरा मेरा सनम
ज़िन्दगी उतनी ही साँसों का तराना चाहे
4
ख़ुशबू बनकर मेरी साँसों में उतरने वाले
क्या तेरा दिल भी महक ऐसी न पाना चाहे
5
चंद अशआर महब्बत प सुना कर यह मन
बीच महफ़िल में तुम्हें…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on October 26, 2021 at 9:16pm — 12 Comments
रहने भी दो अब सनम, आपस की तकरार ।
बीत न जाए व्यर्थ में, यौवन के दिन चार ।
यौवन के दिन चार, न लौटे कभी जवानी ।
चार दिनों के बाद , जवानी बने कहानी ।
कह 'सरना' कविराय, पड़ेंगे ताने सहने ।
फिर सपनों के साथ, लगेंगी यादें रहने ।
सुशील सरना / 25-10-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 25, 2021 at 1:30pm — 9 Comments
2122-1212-22/112
जाने क्या लोग कर गए होंगे
जी रहे हैं या मर गए होंगे (1)
वो भरी दोपहर गए होंगे
पाँव छालों से भर गए होंगे (2)
लड़कियाँ माँ की तर्ह सीधी हैं
लड़के तो बाप पर गए होंगे (3)
ख़ौफ़ होता है देख कर जिनको
आइना देख डर गए होंगे (4)
टेढ़े-मेढ़े जलेबी जैसे लोग
है ये मुमकिन सुधर गए होंगे (5)
दफ़्न माज़ी को जब किया होगा
याद के गड्ढे भर गए होंगे (6)
हमको जिन पर नहीं…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on October 24, 2021 at 10:00am — 8 Comments
वज़्न -1212 1122 1212 22/112
मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं
गिरा के झोपड़ी वो बस्तियाँ बनाते हैं
ये आ'ला ज़र्फ़ हैं कैसे, बुलंदी पाते ही
उन्हें गिराते हैं जो सीढ़ियाँ बनाते हैं
है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी
किताब छोड़ चुके बीड़ियाँ बनाते हैं
ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों
जो फ़स्ल उगा के यहाँ रोटियाँ बनाते हैं
उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं
सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते…
Added by Anjuman Mansury 'Arzoo' on October 23, 2021 at 10:00pm — 6 Comments
कुछ दर्द
एक महान ग्रन्थ की तरह होते हैं
पढना पड़ता है जिन्हें बार- बार
उनकी पीड़ा समझने के लिए ।
ऐसे दर्द
अट्टालिकाओं में नहीं
सड़क के किनारों पर
पत्थर तोड़ते
या फिर चन्द सिक्कों की जुगाड़ में
सिर पर टोकरी ढोते हुए
या फिर पेट और परिवार की भूख के लिए
किसी चिकित्सालय के बाहर
अपना रक्त बेचते हुए
या फिर रिश्तों के बाजार में
अपने अस्तित्व की बोली लगाते हुए
अक्सर मिल जाते…
Added by Sushil Sarna on October 22, 2021 at 1:30pm — 6 Comments
२१२२ १२१२ २२
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन
एक साँचे में ढाल रक्खा है
हम ने दिल को सँभाल रक्खा है
तेरी दुनिया की भीड़ में मौला
ख़ुद ही अपना ख़याल रक्खा है
दर्द अब आँख तक नहीं आता
दर्द को दिल में पाल रक्खा है
चल के उल्फ़त की राह में देखा
हर क़दम पर वबाल रक्खा है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on October 20, 2021 at 7:30pm — 7 Comments
वज़्न -2122 2122 2122 212
ख़ुद को उनकी बेरुख़ी से बे- ख़बर रहने दिया
उम्र भर दिल में उन्हीं का मुस्तक़र* रहने दिया (ठिकाना)
उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले
हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया
उम्र का तन्हा सफ़र हमने किया यूँ शादमाँ
उनकी यादों को ही अपना हमसफ़र रहने दिया
उनसे मिलकर जो कभी होती थी इस दिल को नसीब
अपने ख़्वाबों को उसी राहत का घर रहने दिया
वो न आएँगे शब- ए- फ़ुर्क़त…
ContinueAdded by Anjuman Mansury 'Arzoo' on October 19, 2021 at 12:07pm — 4 Comments
मुखर्जी बाबू सेवा निवृत्ति के बाद इस बार दुर्गापूजा के समय बेटे रोहन के बार-बार आग्रह करने पर उसी के पास हैदराबाद में आ गए हैं। वैसे तो वे अपनी पत्नी के साथ भवानीपुर वाले मकान में ही रहते थे। रोहन, अपर्णा और बंटी के साथ हर-साल दुर्गा पूजा में अपने घर आते थे। वे लोग बाबा और माँ के लिए नए कपड़े आदि उपहार लेकर आते थे। मिठाइयां मुखर्जी बाबू खुद बाजार सेखरीदकर लाते थे। मिसेज मुखर्जी भी अपने पूरे परिवार के लिए घर में ही कुछ अच्छे-अच्छे सुस्वादु पकवान और मछली अपने हाथ से बनाती थी। उनकी बहू अपर्णा भी…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on October 17, 2021 at 10:30pm — 3 Comments
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