2122-1212-22/112
जाने क्या लोग कर गए होंगे
जी रहे हैं या मर गए होंगे (1)
वो भरी दोपहर गए होंगे
पाँव छालों से भर गए होंगे (2)
लड़कियाँ माँ की तर्ह सीधी हैं
लड़के तो बाप पर गए होंगे (3)
ख़ौफ़ होता है देख कर जिनको
आइना देख डर गए होंगे (4)
टेढ़े-मेढ़े जलेबी जैसे लोग
है ये मुमकिन सुधर गए होंगे (5)
दफ़्न माज़ी को जब किया होगा
याद के गड्ढे भर गए होंगे (6)
हमको जिन पर नहीं भरोसा वो
आप लोगों के मोतबर होंगे (7)
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ये ग़ज़ल क़ाफ़िया पैमाई के सिवा कुछ नहीं, इसे ख़ारिज करें ।
आदरणीय Nilesh Shevgaonka साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रग़ुज़ार हूँ
मतला यूँ पढ़ा जाये जनाब
सर झुका कर जो घर गए होंगे
लोग जीते जी मर गए होंगे
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रग़ुज़ार हूँ
मतला यूँ पढ़ा जाये जनाब
सर झुका कर जो घर गए होंगे
लोग जीते जी मर गए होंगे
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रग़ुज़ार हूँ
मतला यूँ पढ़ा जाये जनाब
सर झुका कर जो घर गए होंगे
लोग जीते जी मर गए होंगे
आ. सालिक जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है.
मतला काम मांग रहा है .
ग़ज़ल के लिए बधाई
आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
मतले पर जनाब चेतन प्रकाश जी से सहमत हूँ, यही बात मतला-ए-सानी पर भी लागू होती है। शेष शुभ शुभ। सादर।
आदरणीय Chetan Prakash साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका शुक्रग़ुज़ार हूँ
आदाब भाई सालिक गणवीर जी, अच्छी छोटी बह्र की ग़ज़ल हुई है, बधाई ! मतला देखिएगा, दोमुंहा लगता है!
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