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सत्य (अतुकान्त)

ऊँचे तो वही उठ पाएंगे

जो सत्य की गहराई

झूठ का उथलापन

जान जाएंगे

जो सत्य को कमजोर समझते

विनम्रता का तिरस्कार करते

वैराग्य का उपहास उड़ाते हैं

वह बुद्धि बल से पंगु

अपनी दुर्बलता छिपाते हैं

जो सत्य को तोड़ते, मरोड़ते हैं

वे साहित्यकार नहीं

चाटुकार होते हैं

दिन कहाँ समान रहते हैं?

सत्य है, आज इसकी

कल उसकी झोली भरते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Usha Awasthi on November 1, 2021 at 11:59am

आ0 तेज वीर सिंह जी, हार्दिक आभार आपका

Comment by TEJ VEER SINGH on October 31, 2021 at 7:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय । बेहतरीन प्रस्तुति।

Comment by Usha Awasthi on October 30, 2021 at 10:34pm

आदाब , आ0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहेब, आपको विचार बेबाक लगे , मेरा लेखन सार्थक हुआ। हार्दिक धन्यवाद

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 30, 2021 at 7:08pm

आदाब। कम शब्दों में बेबाक विचारोत्तेजक सत्य अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई आदरणीय उषा अवस्थी जी।

Comment by Usha Awasthi on October 30, 2021 at 12:38pm

आ0 अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब, रचना पर सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु बहुत-बहुत  धन्यवाद आपका

Comment by Usha Awasthi on October 30, 2021 at 12:33pm

आ0 समर कबीर साहेब, रचना  आपको अच्छी लगी,जानकर खुशी हुई।हार्दिक धन्यवाद आपका

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 30, 2021 at 7:46am

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, सत्य वचन। सुन्दर अतुकांत कविता के लिए हार्दिक बधाईयाँ स्वीकार करें।  सादर।

Comment by Samar kabeer on October 30, 2021 at 7:25am

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब , अच्छी अतुकांत कविता हुई है , बधाई स्वीकार करें I 

Comment by Usha Awasthi on October 29, 2021 at 2:06pm

आ0  सुशील सरन जी , रचना सहज लगने हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका

Comment by Sushil Sarna on October 28, 2021 at 8:33pm
वाह आदरणीया जी भावों की सहज अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई

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