2122 2122 2122 212
नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है
सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है
संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं
वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है
जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया
यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है
दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं
बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है
हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां
आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…
Posted on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments
2122 2122 212
दर्द को दिल में दबाना सीख लो
ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो
आंख से आंसू बहाना छोड़िये
हर मुसीबत को भगाना सीख लो
ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से
खेल में खुद को जिताना सीख लो
फूल को दुनिया मसल कर फैंकती
खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो
छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी
कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो
थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी
दिन पुराने अब भुलाना सीख लो
कौन…
ContinuePosted on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments
मापनी: 2122 2122 2122 212
झूठ का व्यापार बढ़ता जा रहा है आजकल,
और हर इक पर नशा ये छा रहा है आजकल
है लड़ाई का नजारा हर तरफ देखें जिधर,
आदमी ही आदमी को खा रहा है आजकल
इस प्रगति के नाम पर ही मिट रहे संस्कार सब
झूठ को हर आदमी अपना रहा है आजकल
बाँटकर भगवान को नेता खुशी से झूमकर
काबा’ तेरा काशी’ मेरी गा रहा है आजकल
जाग ‘मेठानी’ बचायें आग से अपना चमन
नित नया जालिम जलाने आ रहा है…
Posted on April 8, 2019 at 2:01pm — 7 Comments
ग़ज़ल
मापनी: 2122 2122 2122 212
आंख से आंसू कभी यों ही बहाया ना करो
दर्द दिल का भी जमाने को बताया ना करो
हर किसी को मुफ्त में कोई खुशी मिलती नहीं
मेहनत से आप अपना जी चुराया ना करो
जिन्दगी ले जब परीक्षा हौसलों से काम लो
आपदा के सामने खुद को झुकाया ना करो
हैं सफलता और नाकामी समय का खेल ही
लक्ष्य से अपनी नजर को तो हटाया ना करो
जीत लेंगे जिन्दगी की जंग ’मेठानी‘ सुनो
तुम निराशा को कभी मन में बसाया ना…
Posted on March 15, 2019 at 1:14pm — 5 Comments
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