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1
शोर धड़कन का ज़माने को बताना चाहे
दिल करीब और करीब यार के आना चाहे
2
दिल की बैचेनी भी अब एक ठिकाना चाहे
थोड़ा ख़ुशियों के समंदर में नहाना चाहे
3
साथ जितना भी लिखा उसने तेरा मेरा सनम
ज़िन्दगी उतनी ही साँसों का तराना चाहे
4
ख़ुशबू बनकर मेरी साँसों में उतरने वाले
क्या तेरा दिल भी महक ऐसी न पाना चाहे
5
चंद अशआर महब्बत प सुना कर यह मन
बीच महफ़िल में तुम्हें अपना बनाना चाहे
6
बात कड़वी है मगर बात है सच्ची "निर्मल"
बेवफ़ा से कोई रिश्ता न निभाना चाहे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल तक दुबारा आने के लिए आभार।
आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।सर् ,जी,आपके कहे अनुसार सुधार कर लेती हूँ। दुबारा ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय:।
मुहतरम मुआफ़ी चाहूँगा क़रीं के मआनी पर मुझे ग़लत-फ़हमी हुई। आप सहीह हैं। 'क़रीं' के मआनी भी वही हैं जो 'क़रीब' के हैं। सादर।
//-इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं :-
"दिल क़रीं और क़रीं यार के आना चाहे "//
मुहतरम आदाब, क्या ये मिसरा शिल्प और भाव की दृष्टि से उचित होगा ? क्योंकि क़रीं के मआनी क़रीब या नज़दीकी तो नहीं है। सादर।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है ,बधाई स्वीकार करें I
'दिल करीब और करीब यार के आना चाहे'---इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं :-
"दिल क़रीं और क़रीं यार के आना चाहे "
2
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी, ग़ज़ल तक आने तथा अपनी राय रखने के लिए आभार । आपके सुझाव अच्छे हैं। बस, सर् एक बार देख लें तो फेयर में सुधार करती हूँ। सादर।
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर्, फेसबुक पर ग़ज़ल पढ़ी थी,उसकी तक्तीअ करने पर यही समझ आया था।डाउट क्लीयर करने के लिए आभार ।
सर् , कृपया बाक़ी ग़ज़ल पर भी इस्लाह दे दें।
सादर।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।
'दिल करीब और करीब यार के आना चाहे' मिसरा चाहें तो यूँ कर सकते हैं :
'दिल करीब और करीब आप के आना चाहे' (अलिफ़ वस्ल के साथ)
'बात कड़वी है मगर बात है सच्ची "निर्मल" मिसरे में 'बात' की पुनरावृत्ति है इसे यूंँ कह सकते हैं :
'बात कड़वी है मगर है बड़ी सच्ची "निर्मल" सादर।
//क़रीब यार में वस्ल करने की कोशिश की है//
'क़रीब यार' में अलिफ़ वस्ल कैसे होगा, अलिफ़ कहाँ है? :-)))
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