2122 2122 2122 212
1
जब भी छाए अब्र मुश्किल के वतन की आन पर
खेले हैं तब तब हमारे तिफ़्ल अपनी जान पर
2
आज़मा ले लाख अपना रौब रुतबा शान पर
हो न पाएगा कभी हावी तू हिन्दुस्तान पर
3
हम नहीं होते परेशाँ धर्म से या ज़ात से
ख़ूँ जले अपना तो झूठे और बेईमान पर
4
माना हैं मतभेद भाषा वेष भूषा धर्म में
फ़ख़्र करते हैं प सब भारत के बढ़ते मान पर
5
एक दिन ऐसा भी "निर्मल" देखना तुम आएगा
मुस्कुराएगा फ़लक भी हिन्द के जय गान पर
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी, ग़ज़ल तक आने आभार। बहुत अच्छी राय दी आपने। आभार।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।
आज़मा ले लाख अपना रौब रुतबा शान पर. मुनासिब समझें तो इस मिसरे को यूँ कर लें :
'कोशिशें बेकार होंगी आज़मा के देख ले'
'फ़ख़्र करते हैं प सब भारत के बढ़ते मान पर' मुनासिब समझें तो इस मिसरे को यूँ कर लें :
'फ़ख़्र सबको है मगर भारत के बढ़ते मान पर' सादर।
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए तहेदिल से शुक्रिय:। सर्, जी, सुधार करके दिखाती हूँ।
सादर।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'आज़मा ले लाख अपना रौब रुतबा शान पर
हो न पाएगा कभी हावी तू हिन्दुस्तान पर'
इस मतले का ऊला बदलने का प्रयास करें और इसे मतले की जगह शे'र कर लें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online