For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुखर्जी बाबू का विजयदसमी

मुखर्जी बाबू सेवा निवृत्ति के बाद इस बार दुर्गापूजा के समय बेटे रोहन के बार-बार आग्रह करने पर उसी के पास हैदराबाद में आ गए हैं। वैसे तो वे अपनी पत्नी के साथ भवानीपुर वाले मकान में ही रहते थे। रोहन, अपर्णा और बंटी के साथ हर-साल दुर्गा पूजा में अपने घर आते थे। वे लोग बाबा और माँ के लिए नए कपड़े आदि उपहार लेकर आते थे। मिठाइयां मुखर्जी बाबू खुद बाजार सेखरीदकर लाते थे। मिसेज मुखर्जी भी अपने पूरे परिवार के लिए घर में ही कुछ अच्छे-अच्छे सुस्वादु पकवान और मछली अपने हाथ से बनाती थी। उनकी बहू अपर्णा भी एक कुशल गृहिणी की तरह अपनी सासू-माँ के साथ हर काम में उनके आदेशानुसार हाथ बँटाती थी। फिर वे लोग देवी दर्शन के लिए पूजा पंडाल में जाते थे। विजयदसमी के दिन रोहन, अपर्णा और बंटी तीनों ही बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे। दोनों पति-पत्नी अपनी हैसियत के अनुसार बेटे-बहू और पोते को कुछ नगद राशि आशीर्वाद के साथ देते थे। जिन्हे वे लोग अपने माथे से लगाकर रख लेते थे।

पर, इस बार लंबी छुट्टी न मिलने के कारण रोहन सपरिवार भवानीपुर नहीं आ सके बल्कि आग्रहपूर्वक टिकट भेजकर हैदराबाद में ही माँ और बाबा को बुला लिया। हैदराबाद में दुर्गापूजा में बहुत ज्यादा रौनक नहीं होती।  यहाँ तो गणेश-पूजा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जहां बंगालियों की संख्या अधिक होती है वहीं पर कुछ बंगाली और बिहार-झारखंड वाले मिलकर दुर्गापूजा और विजयदसमी मनाते हैं। कोरोना काल में प्रतिबंध के चलते इस बार वह भी न हुआ और सभी ने अपने-अपने घरों में ही पूजा की और घर का बना या बाहर से मंगाया गया भोजन किया। रोहन ने भी नवमी, दसमी दोनों ही दिन बाहर से ही खाना मँगवा लिया और सभी लोगों ने मिलकर घर में ही खाना खाया।

विजयदसमी के दिन पैर छूकर आशीर्वाद लेने की प्रथा है। इसलिए इस बार मुखर्जी बाबू और मिसेज मुखर्जी दोनों ने अपने पास पाँच-पाँच सौ रुपये के तीन नोट अपने पास सुरक्षित रख लिए ताकि जब वे लोग पैर छूने के लिए आएंगे तो उन्हे आशीर्वाद के रूप में देंगे। किन्तु यह क्या? दोपहर का खाना हो गया शाम की चाय भी हो गई कोई इन दोनों से आशीर्वाद लेने नहीं आया। अब रात के खाने का भी समय हो गया था। पैक खाना आ चुका था। पैकेट खोलकर खाना टेबल पर लगा दिया गया। सभी खा चुके पर एक बात सभी शायद भूल रहे थे। खाना खाकर रोहन और अपर्णा अपने-अपने लैपटॉप में व्यस्त हो गए और बंटी भी अपने मोबाईल में व्यस्त हो गया।

मुखर्जी बाबू अधीर हो रहे थे। अंत में उन्होंने आवाज दी – “बंटी बेटा, क्या कर रहे हो?”

“आया दादा जी” कहते हुए बंटी दादा जी के पास में बैठ गया।

मुखर्जी बाबू ने कहा- “बेटा शायद तुम भूल रहे हो। हर साल विजोया दोसमी के दिन दादा दादी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते थे।“

“हाँ, हाँ, सॉरी दादा जी!” उसने शरमाते हुए झट दादा और दादी के दोनों पैरों पर अपने दोनों हाथ रखकर सिर से लगाया। दादा और दादी ने बंटी को पाँच-पाँच सौ रुपये के नोट दिए जिसे बंटी ने “थैंक यू दादाजी!” और “थैंक यू दादीजी!” कहते हुए ले लिए।

उसके बाद मुखर्जी बाबू ने बंटी से कहा - “जाकर मम्मी पापा के भी पैर छूकर आशीर्वाद लो।“

बंटी ने वैसा ही किया। फिर अपर्णा भी सकुचाती-शर्माती हुई आई और अपने सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उसे भी सास और ससुर की तरफ से पाँच-पाँच सौ रुपये मिले जिसे उसने अपने सिर से लगाकर रख लिया।

उसके पीछे रोहन भी झेंपते हुए आया – “असल में बाबा, ऑफिस का इतना काम रहता है कि हम तो भूल ही गए इस बार। कहने को तो घर से काम करना होता है, पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है।“

उसके बाद उसने भी माँ पिता जी के चरण स्पर्श किए और सिर से लगाया।     

दोनों ने उसे भी पाँच सौ रुपये देने चाहे पर इस बार रोहन ने रुपये लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया - “माँ-बाबा ये रुपये आप अपने पास ही रखिए। हमलोगों के लिए आपका आशीर्वाद ही काफी है।“  मुखर्जी बाबू ने अपनी पत्नी की तरफ झेंपते हुए देखा – मानो कह रहे हों – देख रही हो न सुलोचना यही रोहन कभी पाँच रुपये के लिए कितना जिद्द करता था। और आज पाँच सौ रुपये लेने से इनकार कर रहा है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 446

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2021 at 4:56am

आ. भाई जवाहर लाल जी, सादर अभिवादन। बहुत रोचक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 19, 2021 at 8:51pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब! मेरी रचना पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार! 

Comment by Samar kabeer on October 19, 2021 at 7:38pm

जनाब जवाहर लाल सिंह जी आदाब , सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें I 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,यह ग़ज़ल तरही ग़ज़ल के साथ ही हो गयी थी लेकिन एक ही रचना भेजने के नियम के चलते यहाँ…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
yesterday
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service