Added by विनय कुमार on December 24, 2018 at 12:07am — 4 Comments
पिछले महीने की ही बात है। गुड्डू को लेकर हम सभी सपरिवार अपने बच्चों के स्कूल में आयोजित 'फ़न-फ़ेअर' दिखाने ले गये। उसके दोनों बड़े भाई-बहन ने मेले में समोसे-पकोड़े की स्टॉल में सहभागिता की थी। बच्चों के प्रोत्साहन और टिकट-ड्रॉ की लालसा में हमने बीस टिकट पहले ही ख़रीद लिये थे, जो गुड्डू के ही पर्स में सुरक्षित रखे हुए थे।
"वाओ! कितना सुंदर गेट सज़ा है! हमारे स्कूल का फ़न-फ़ेअर देखते ही रह जाओगे आप लोग!" वह ऐसे बोला जैसे कि वह यह मेला पहले ही घूम चुका हो या बहुत जानकारी हासिल कर चुका हो।…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 23, 2018 at 5:30pm — 3 Comments
बह्र- 2122-2122-2122-22
है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।
जो समझ पाए न तुम क्या फायदा कहकर है।।
शोर कितना ही मचाये, या करे अब बकझक।
मैं समझ लेता हूँ मेरा दिल भी इक दफ्तर है।।
खुश नशीबी है मेरी नफ़रत मुहब्बत जंग की।
हार कर भी जीतने जैसा ही इक अवसर है।।
अब मैं ढक लेता हूँ खुद-का ये बदन अच्छे से।
अब नहीं मैं पहले जैसा गन्दगी अंदर है।।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on December 23, 2018 at 3:01pm — 2 Comments
ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते
हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )
***
बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर
न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )
***
तुम्हारी आँख की मय को अगर पीते ज़रा सी हम
तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक )
***
बनाया हिज़्र को हमने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 23, 2018 at 2:00pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2018 at 10:23am — 10 Comments
1222 1222 122
नए हालात पढ़ पाए नहीं क्या ।
अभी तुम होश में आए नहीं क्या ।।
उठीं हैं उंगलियां इंसाफ ख़ातिर ।
तुम्हारे ख़ाब मुरझाए नहीं क्या ।।
सुना उन्नीस में तुम जा रहे हो ।
तुम्हें सब लोग समझाए नहीं क्या ।।
किया था पास तुमने ही विधेयक ।
तुम्हारे साथ वो आए नहीं क्या ।।
जला सकती है साहब आह मेरी ।
अभी तालाब खुदवाए नहीं क्या ।।
है टेबल थप थपाना याद मुझको ।
अभी तक आप शरमाए…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2018 at 5:36pm — 3 Comments
बे-हया निशानी .....
हिज़्र की रातों में
तन्हा बरसातों में
खामोश बातों में
अश्कों की सौगातों में
मेरे नफ़्स में
साँसों के क़फ़स में
चांदनी बन कसमसाती
धड़कनों से बतियाती
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम हो
बारिशों के पानी में
प्यासी कहानी में
नादान जवानी में
लहरों की रवानी में
अंगड़ाई की बेचैनी में
लबों की निशानी में
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम…
Added by Sushil Sarna on December 21, 2018 at 5:30pm — 8 Comments
बह्र -बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
अरकान -मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
मापनी-1222 1222 1222 1222
***
फरेब-ओ-झूठ की यूँ तो सदा जयकार होती है,
मगर आवाज़ में सच की सदा खनकार होती है।
**
हुआ क्या है ज़माने को पड़ी क्या भाँग दरिया में
कोई दल हो मगर क्यों एक सी सरकार होती है
***
शजर में एक साया भी छुपा रहता है अनजाना
मगर उसके लिए…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 21, 2018 at 5:00pm — 15 Comments
उन्हें कौन पूछे उन्हें कौन तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
उदासी उदासी उदासी घनेरी
विरह वेदना प्रीत की है चितेरी
अँधेरे खड़े द्वार पे सिर झुकाये
तभी रात ने स्वप्न इतने सजाये
उसी रात को छल गये चाँद तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
लगी रात की आँख भी छलछलाने
अँधेरा मगर बात कोई न माने
क्षितिज पे कहीं मुस्कुराया सवेरा
तभी रूठ कर चल दिया है अँधेरा
नजर रोज सुनसान राहें बुहारे
युगों से जुदा हैं नदी के…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 21, 2018 at 4:30pm — 10 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
हुआ कुर्सी का अब तक भी नहीं दीदार जाने क्यों
वो सोचें बीच में जनता बनी दीवार जाने क्यों।१।
बड़ा ही भक्त है या फिर जरूरत वोट पाने की
लिया करता है मंदिर नाम वो सौ बार जाने क्यों ।२।
तिजारत वो चुनावों में हमेशा वोट की करते
हकों की बात भी लगती उन्हें व्यापार जाने क्यों ।३।
नतीजा एक भी अच्छा नहीं जनता के हक में जब
यहाँ सन्सद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2018 at 3:35pm — 12 Comments
मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
न हो जब दिल में कोई ग़म तो फिर लब पे फुगाँ क्यों हो
जो चलता बिन कहे ही काम तो मुँह में ज़बाँ क्यों हो //१
जहाँ से लाख तू रह ले निगाहे नाज़ परदे में
तसव्वुर में तुझे देखूँ तो चिलमन दरमियाँ क्यों हो //२
यही इक बात पूछेंगे तुझे सब मेरे मरने पे
कि तेरे देख भर लेने से कोई कुश्तगाँ क्यों हो…
Added by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:30am — 19 Comments
कैदी ! तुझसे कोई मिलने आया है I’ –जेल के सिपाही ने सूचना दी I अगले ही पल काले कोट में एक वकील प्रकट हुआ I
‘आपकी पत्नी ने मुझे आपका वकील एपॉइंट किया है I आप मुझे सच-सच बताइए कि आपने मैरिज-कोर्ट में अपने बेटे की हत्या क्यों की ? क्या आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी ?’
कैदी कुछ नहीं बोला I उसने मुँह फेर लिया I वकील असमंजस में पड़ गया I कुछ देर चुप रहकर वह बोला –‘ देखिये अगर आप ही सहयोग नहीं करेंगे तो मैं आपकी मदद कैसे कर पाऊंगा ?’
‘वकील साहब, आप अपना समय बर्बाद कर रहे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2018 at 6:24pm — 4 Comments
दिले बेक़रार को थोड़ा करार मिल जाए,
गुलशने वीरां को राहे बहार मिल जाए।
हट जाए ये फ़सुर्दगी मेरे दीदा-ए-मजहूर से,…
ContinueAdded by Ashish Kumar on December 20, 2018 at 5:14pm — 3 Comments
1
माना होता है समय, भाई रे बलवान
लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान
बनते कई महान, विचारें इसकी महता
यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता
सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना
नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना।
2
होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार
लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार
पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी
कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी
सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते
उनका चलता कार्य, खरे जो मन के…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2018 at 3:30pm — 4 Comments
बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन, फ़ाइलुन, फ़ाइलुन
पूछते हो जो क्या चाहिए
सिर्फ माँ की दुआ चाहिए//१
ख़्वाब मुरझा गए हैं अगर
ख़्वाब की ही दवा चाहिए//२
ज़िन्दगी अब मुकम्मल हुई
तुम मिले और क्या चाहिए//३
आ गए हैं सितारे मगर
चाँद का आसरा चाहिए//४
क़ैद में ही रहीं तितलियां
अब उन्हें भी हवा चाहिए//५
शाइरी का गुमाँ मत करो
खूब ही तज्रिबा चाहिए//६
ज़ुल्म क्यों ख़त्म…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on December 19, 2018 at 11:30am — 5 Comments
Added by Ashish Kumar on December 18, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
221, 2121, 1221, 212
आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।
जीवन सरोज खिल के हाँ सुरभित नहीं हुआ।
छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी,
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।
कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।
गिरकर संभल रहे हैं, गिरे जितनी बार हम,
साहस हमारा आज भी खण्डित नहीं…
Added by Balram Dhakar on December 18, 2018 at 4:00pm — 14 Comments
गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)
नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है
खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है
हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है
धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है
जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है
शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on December 18, 2018 at 1:51pm — 5 Comments
2122 1212 22
बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था ।
मेरी महफ़िल में चाँद शब भर था ।।
देख दरिया के वस्ल की चाहत ।।
कितना प्यासा कोई समंदर था ।।
जीत कर ले गया जो मेरा दिल।
हौसला वह कहाँ से कमतर था ।।
दर्द को जब छुपा लिया मैने ।
कितना हैराँ मेरा सितमगर था ।।
अश्क़ आंखों में देखकर उनके ।
सूना सूना सा आज मंजर था ।।
जंग इंसाफ के लिए थी वो ।
कब…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 18, 2018 at 1:00pm — 7 Comments
खेल क्या तुम भी सियासी जानते हो ।
कौन कितना है मदारी जानते हो ।।
फैसला ही जब पलट कर चल दिये तुम।।
फिर मिली कैसी निशानी जानते हो।।
हो रहा है देश का सौदा कहीं पर ।
खा रहे कितने दलाली जानते हो।।
मसअले पर था ज़रूरी मशविरा भी ।
तुम हमारी शादमानी जानते हो।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 17, 2018 at 10:07pm — 8 Comments
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