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गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)


नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है

खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है

हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है

धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है

जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है

शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 12:10pm

वाह खूब आदरणीय वर्तमान को अच्छे से समेटा है आपने...

Comment by Dayaram Methani on December 21, 2018 at 11:19pm

आदरणीय राज नवादवी साहब, प्रोत्साहन व सुझाव हेतु आभार। भविष्य में भी कृपा बनाये रखें। सादर।

Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:39am

आदरणीय दयाराम मथानी जी, आदाब. ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें. बाक़ी आदरणीय समर कबीर साहब ने अपनी इस्लाह फ़राहम कर दी है. सादर. 

Comment by Dayaram Methani on December 20, 2018 at 10:47pm

आदरणीय समर कबीर साहब। बहुत बहुत धन्यवाद। सुझाव देने के लिए आभार। आपके मार्ग दर्शन के अनुसार गज़ल लिखने का प्रयास करूंगा। आप मार्ग दर्शन करते रहें। सादर।

 

Comment by Samar kabeer on December 20, 2018 at 2:58pm

जनाब दयाराम मेंठानी जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि मात्रिक बह्र में मात्राएं पूरी करने के साथ लय का होना भी ज़रूरी है ।

खूब लाभ का है ये धंधा'

ये मिसरा लय में नहीं है ।

' हर तरफ खून की है बातें'

ये मिसरा लय में नहीं है । 

' धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है'

ये शैर लय में नहीं है ।

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