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गीत-युगों से जुदा हैं नदी के किनारे-बृजेश कुमार 'ब्रज'

उन्हें कौन पूछे उन्हें कौन तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

उदासी उदासी उदासी घनेरी
विरह वेदना प्रीत की है चितेरी
अँधेरे खड़े द्वार पे सिर झुकाये
तभी रात ने स्वप्न इतने सजाये
उसी रात को छल गये चाँद तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

लगी रात की आँख भी छलछलाने
अँधेरा मगर बात कोई न माने
क्षितिज पे कहीं मुस्कुराया सवेरा
तभी रूठ कर चल दिया है अँधेरा
नजर रोज सुनसान राहें बुहारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे

घटा नेह के गीत हर बार गाये
हवा बावरी राग नूतन सुनाये
मगर गीत कोई दिलासा न लाया
खबर कोई आई न मनमीत आया
ह्रदय में चुभे शूल संध्या सकारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 8:32pm

आदरणीय गिरधारी सिंह जी सादर अभिवादन स्वीकार करें...

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 10:27pm

बहुत ही सुन्दर सृजन के लिए बढ़ी स्वीकारें बृजेश कुमार 'ब्रज' जी | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2018 at 7:41pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन स्वीकार करें..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2018 at 8:00pm

आ. भाई बृजेश जी, सुंदर गीत हुआ हो । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 7:36pm

उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार त्रिपाठी जी..सही कहा आपने..सुधार करता हूँ..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 7:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी..जी अभी सुधार करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 7:34pm

सादर आभार आपके स्नेह के लिए आदरणीय डा.साहब

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 22, 2018 at 5:51pm

आ0 बहुत सुंदर गीत लिखा आपने । इसके लिए आपको बधाई । कबीर साहब ठीक कह रहे हैं मैं भी पूंछ के लिए बहुत बार टोका गया हूँ ।

Comment by Samar kabeer on December 22, 2018 at 3:57pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,अच्छा गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

उन्हें कौन पूंछे उन्हें कौन तारे'

इस पंक्ति में 'पूंछे' को "पूछे" कर लें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2018 at 12:47pm

कैसे कोई भाग्य उनका सँवारे

युगों से जुदा है नदी  के किनारे ------ सुन्दर रचना  आ० ब्रज जी 

कृपया ध्यान दे...

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