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September 2017 Blog Posts (153)

ग़ज़ल - बेसबब यूँ ही नही परदा करो

2122 2122 212

इस तरह बे फिक्र मत निकला करो ।

कुछ ज़माने को भी अब समझा करो।।



लोग पलकें हैं बिछाए राह में ।

बेसबब यूँ ही नहीं परदा करो ।।



है मुहब्बत से सभी की दुश्मनी।

ज़ालिमों से मत कभी उलझा करो ।।



फिर सितारे टूटकर गिरते मिले ।

आसमा पर भी नज़र रक्खा करो ।।



कुछ परिंदे हो गए बेख़ौफ़ हैं ।

कौन कैसा उड़ रहा देखा करो ।।



दाग दामन पर लगे कितने यहां ।

आइनो से भी कभी पूछा करो ।।



वक्तपर अक्सर मुकर जाते हैं लोग… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 22, 2017 at 8:38am — 1 Comment

समझ-- लघुकथा

जैसे ही वह ऑफिस से लौटी एक बार फिर वही नज़ारा उसके आँखों के सामने था| कितना भी समझा ले, न तो बेटा समझता था और न ही बाप, दोनों अपने आप को ही समझदार मानते थे| उसके घर में घुसते ही कुछ पल के लिए दोनों खामोश हो गए और उसकी तरफ फीकी मुस्कान फेंकते हुए देखने लगे|

"कब समझोगे तुम विक्की, मान क्यों नहीं लेते कि वह तुमसे ज्यादा समझते हैं| आखिर पिता हैं तुम्हारे, तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है उन्होंने", कहते हुए बैग उसने टेबल पर रखा और सोफे पर अधलेटी हो गयी| राजन ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा, अक्सर…

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Added by विनय कुमार on September 21, 2017 at 5:00pm — 4 Comments

ज़िद कर रही हूँ ...

ज़िद कर रही हूँ ...

जानती हूँ

हर नसीब में

हर शै

नहीं हुआ करती

फिर भी

मैं असंभव को

संभव करने की

ज़िद कर रही हूँ

कुछ और नहीं

बस

उम्र के हर पड़ाव पर

सिर्फ

प्यार करने की

ज़िद कर रही हूँ

मैं नहीं जानती

सात जन्म क्या होते हैं

पर उम्र की उस अवस्था पर

जब सब ख्वाहिशें

दम तोड़ देती हैं

चाहती हूँ

तब भी तुम

किसी मठ के

सन्यासी सी एकाग्रता लिए

मुझ से प्यार करने चले आना…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2017 at 3:10pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ख़्वाब तूने कोई बुना होगा

2122 1212 22/112

ख़्वाब तूने कोई बुना होगा

तब तेरा रतजगा हुआ होगा

 

सर यक़ीनन मेरा झुकेगा जनाब

आपसे जब भी सामना होगा

 

मुद्दतों बाद मेरी याद आई

मुश्किलों से कहीं घिरा होगा

 

मुझको मेहनत लगी थी लिखने में

उसको एहसास इसका क्या होगा

 

शहर में होना आरज़ी है मगर

तज़्किरा मेरा बारहा होगा

 

आरज़ी – थोड़े समय के लिए, तज़्किरा – जिक्र

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2017 at 11:24am — 6 Comments

खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2

............................

खोया रहता हूँ मैं जिनकी यादों में

उनकी  ही खुशबू है मेरी साँसों में

.

दिल के हाथों था मजबूर बहुत वरना

आता कब  मैं  उनकी मीठी बातों में

.

उनको खो देने का भी अहसास हुआ

रंग-ए-हिना जब देखा उनके हाथों में

.

खो कर दुनिया आख़िर उनको पाया है

यूँ  ही  नहीं  है नाम मेरा अफसानों में

.

हर शय में उनका ही चेहरा दिखता है

उनके  ही  सपने  हैं मे री  आँखों …

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on September 21, 2017 at 8:30am — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
भले ही आईने धोये हुए हैं (फिल्बदीह ग़ज़ल 'राज')

१२२२  १२२२  १२२

चढ़े सूरज तलक सोए हुए हैं

किसी की याद में खोए हुए हैं

 

ग़ज़ल लिक्खी हुई है आंसुओं से

कहें किससे कि हम रोये हुए हैं

 

तभी भीगा हुआ तकिया मिला है

इसे अश्कों से हम धोये  हुए हैं

 

कमर टूटी ज़फ़ा की चोट खाकर 

मगर फिर भी वफ़ा ढोए हुए हैं

 

वहाँ चर्चा हमारा हो रहा है

न जाने हम कहाँ खोए हुए हैं

 

तुम्हारे दाग ज्यों के त्यों दिखेंगे

भले ही  आईने धोए हुए…

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Added by rajesh kumari on September 20, 2017 at 5:00pm — 20 Comments

ग़ज़ल

काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने

बहर : ११२२-| ११२२  ११२२  २२/११२

      २१२२}

तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने

दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने | 

पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब  

क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |

क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान

यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |

कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा

कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:10am — 13 Comments

श्राद्ध.....लघुकथा..../अलका 'कृष्णांशी'

श्राद्ध

" पर....? हर बार तो आनंद ही ..." दूसरी तरफ की कड़क आवाज़ में बात अधूरी ही रह गई

"जी ,जैसा आप ठीक समझें ,पैरी पै..." बात पूरी होने से पहले ही दूसरी तरफ से मोबाइल कट गया ....

रुआंसी सी प्राप्ति सोफे में ही धंस गई , बंद आँखों से अश्क बह निकले

"८ बरसों में जड़ें भी मिटटी पकड़ चुकी थी ......"

"पर आंगन को फूल देना कितना जरूरी है ये एहसास देवरानी के बेटा पैदा होने के बाद हुआ ....."

"नर्म हवाओं ने तूफान बन कर सब रौंदते हुए रुख जब आनंद की ओर किया तो आनंद…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 19, 2017 at 4:51pm — 6 Comments

ग़ज़ल शाम होते ही सँवर जाएंगे

2122 1122 22

चाँद बनकर वो निखर जाएंगे ।

शाम होते ही सँवर जाएंगे ।।



जख्म परदे में ही रखना अच्छा ।

देखकर लोग सिहर जाएंगे ।।



छेड़िये मत वो कहानी मेरी।

दर्द मेरे भी उभर जाएंगे ।।



घूर कर देख रहे हैं क्या अब।

आप नजरों से उतर जाएंगे।।



वक्त रुकता नहीं है दुनिया में ।

दिन हमारे भी सुधर जाएंगे ।।



क्या पता था कि जुदा होते ही ।

इस तरह आप बिखर जाएंगे ।।



ये मुहब्बत है इबादत मेरी ।

एक दिन दिल मे ठहर में… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 19, 2017 at 1:00pm — 14 Comments

तरही गजल

1222 1222 122

.

नही हमको जो भाता क्यों करें हम

कोई झूठा बहाना क्यों करें हम



हमीं से रौशनी है चार सू जब

तो बुझने का इरादा क्यूँ करें हम



खमोशी की सदा अक्सर सुनी है

न सुनने का बहाना क्यूँ करें हम



भरोसा जब नहीं खुद पे हमें ही

*वफ़ादारी का दावा क्यूँ करें हम*



हो झगड़ा आपसी सुलझाएँ खुद ही

ज़माने में तमाशा क्यों करें हम



न होता झूठ का कोई ठिकाना

फिर उसको ही तराशा क्यूँ करें हम



मौलिक…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 19, 2017 at 6:00am — 12 Comments

जय हे काली

जय हे काली,करालि,कालिके

वसुधा का प्रांगण स्वच्छ करो

दुर्व्यसनी दुष्ट पिशाचों का

संहार करो,संहार करो



विषयी,कामातुर,कुलहंता

करते कलियों का शीलभंग

ऐसे पापी व्यभिचारियों का

तुम अंत त्वरित अविलम्ब करो



नहीं जिन्हें शील कुल की लज्जा

बढ़ रहे रक्तबीजों से जो

उन निर्लज्जों के शोणित का

खप्पर भर भरकर पान करो



पर धन हर्ता महिषासुरों का

जब दर्प भंग कर आओगी

कलियुग के शुंभ निशुंभों का

जब मान रौंदकर आओगी



तब… Continue

Added by Usha Awasthi on September 18, 2017 at 11:29pm — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - दो पहर की धूप भी अच्छी लगी ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    212

दो पहर की धूप भी अच्छी लगी

साथ उनके हर कमी अच्छी लगी

 

यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ

तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी

 

कब कहा मैनें कि मैं था शादमाँ

कुल मिला कर ज़िन्दगी अच्छी लगी

 

सब में रहता है ख़ुदा ये मान कर

जब भी की तो बन्दगी अच्छी लगी

हाँ, ज़बाँ से भी कहा था कुछ मगर  

जो नज़र ने थी कही, अच्छी लगी

 

दोस्ती तो थी हमारी नाम की  

पर तुम्हारी दुश्मनी,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 18, 2017 at 3:30pm — 17 Comments

मुट्ठी भर ताकतवर और बुद्धिमान



मुट्ठी भर 

ताकतवर 

और बुद्धिमान 

लोगों ने 

इकठ्ठा किया 

ढेर सारे लोगों को 

और 

आवाहन किया  

कहा 

"हमें इस धरती को 

स्वर्ग बनाना है 

और बेहतर बनाना है "



और हम 

चल पड़े 

तमाम जंगल काटते हुए 

पहाड़ों को रौंदते…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 18, 2017 at 3:29pm — 3 Comments

जिसे ख़यालों में रखता हूँ - सलीम रज़ा रीवा



1212 1122 1212 22

............................................

जिसे ख़यालों में रखता हूँ शायरी की तरह.

मुझे वो जान से प्यारा है जिंदगी की तरह.

.

क़सम जो खाता था उल्फ़त में जीने मरने की.

वो सामने  से गुज़रता है अजनबी की तरह.

.

यूँ ही न बज़्म  से  तारीकियाँ  हुईं रुख़सत.

कोई न कोई तो आया है रोशनी की तरह.

.

खड़े हैं छत पे  हटा कर…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 9:30am — 22 Comments

दबी हर बात जिंदा क्यूँ करें हम (ग़ज़ल)

बह्र -मुफाईलुन मुफाईलुन फ़ऊलुन



तुम्हारा राज़ इफ़शा क्यूँ करें हम|

दबी हर बात जिन्दा क्यूँ करें हम||



न हो जो भाग्य को यारों गवारा,

फिर उसकी ही तमन्ना क्यूँ करें हम||



जगाती दर्द हो जो बात दिल में,

उसी का रोज चर्चा क्यूँ करें हम||



लगा दे आग जो सारे जहाँ में ,

कोई भी ऐसी रचना क्यूँ करें हम||



जिसे करके रहे अफ़सोस मन में,

कोई भी काम ऐसा क्यूँ करें हम||



बहन माँ बेटियाँ तुहफ़ा ख़ुदा का,

उन्ही पे कोई हिंसा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 8:00am — 27 Comments

तरही ग़ज़ल

दीप रिश्तों का' बुझाया जो', जला भी न सकूँ 

प्रेम की आग की’ ये ज्योत बुझा भी न सकूँ  |

हो गया जग को’ पता, तेरे’ मे’रे नेह खबर 

राज़ को और ये’ पर्दे में’ छिपा भी न सकूँ |

गीत गाना तो’ मैं’ अब छोड़ दिया ऐ’ सनम 

गुनगुनाकर भी’ ये’ आवाज़, सुना भी न सकूँ |

वक्त ने ही किया’ चोट और हुआ जख्मी मे’रे’ दिल 

जख्म ऐसे किसी’ को भी मैं’ दिखा भी न सकूँ |

बेरहम है मे’रे’ तक़दीर, प्रिया को लिया’…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on September 17, 2017 at 8:57pm — 11 Comments

ठहर जाता तो अच्छा था- एक ग़ज़ल बसंत की

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

मापनी 1222 1222 1222 1222

इधर  जाता तो अच्छा था, उधर जाता तो अच्छा था.

रहा भ्रम में, कहीं पर यदि, ठहर जाता तो अच्छा था.

 

उभर आता तो अच्छा था, हृदय का घाव चेहरे पर,

हमारा  दर्द  भी हद से, गुजर जाता तो अच्छा था.

 …

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on September 17, 2017 at 5:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल ,,,,चराग़ ए सुख़न हूँ,,,,,,,

अर्कान,,,122/122/122/122



मुहब्बत में होना फ़ना चाहता हूँ

अजब में दिवाना हूँ क्या चाहता हूँ।



चराग़ ए सुख़न हूँ जला चाहता हूँ

ग़ज़ल में नया फ़लसफ़ा चाहता हूँ।



रहा कब हूँ झूटी अना का में काइल

ख़ुदाया तिरी बस रज़ा चाहता हूँ।



सुख़नवर बहुत हैं अनोखे जहाँ में

में अंदाज़ अपना जुदा चाहता हूँ।



जुनूँ ने ख़िरद से ये क्या कह दिया है

तिरी हिकमतों का पता चाहता हूँ।



जहाँ भी रहे बस महकता रहे तू

फ़कत ये ख़ुदा से दुआ… Continue

Added by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 1:00pm — 20 Comments

एक पति की आत्मस्वीक्रति

  चुन्नों, मेरा चश्मा कंहा रखा है ? चुन्नो मेरी नयी वाली कमीज नहीं मिल रही है, चुन्नो तुमने मेरा रुमाल देखा है क्या? चुन्नो एक कप चाय मिलेगी क्या? चुन्नो चुन्नो चुन्नो सच घर आते ही चुन्नो चुन्नो के नाम की माला जपने लगता हूं। सच आफिस मे रहता हूं तो आफिस की छोटी छोटी बातें नही भूलती पर घर आते ही जैसे यादें हैं कि साथ छोड के फिर से आफिस मे ही दुपुक जाती हैं ये कह के कि जाओ अब अपनी चुन्नो के साथ ही रहो मेरी क्या जरुरत है वो जो है न तुम्हारी और…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 17, 2017 at 11:30am — 5 Comments

गजल(आज तो हर शख्स इतना पूछता)

2122 2122 212

आज तो हर शख्स इतना पूछता

हो गया क्या कत्ल? दिखता उस्तुरा।1



चंद घड़ियों में खबर देती रुला

मौत का मंजर यही हासिल हुआ।2



'वह' खड़ा है जुर्म के इकरार में

लग रहा अब यह जरा-सा अटपटा।3



जानते हैं लोग लगता मर्म भी

भेद कितना चुप्पियों में है छिपा!4



न्याय का डंडा खुदाया मौन क्यूँ?

देखना है,सच कहाँ तक साधता।5



चोर बन बैठे सिपाही आजकल

हो गया कितना कठिन यह भाँपना?6



रोशनी का दान भी व्यापार… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 17, 2017 at 8:00am — 12 Comments

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"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
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