Added by Om Prakash Agrawal on May 15, 2020 at 12:06pm — 6 Comments
जाने कितनी दूर थी, जाने कितनी पास।
जाने किसकी जोह में, रुकी हुई थी श्वास।।
जाने किसकी जोह में, तरल हो गई आस।
एक श्वास थी ज़िंदगी, एक श्वास संत्रास।।
जीवन के विश्राम तक, मिटी न मन की जोह।
करते करते सो गया, जीव सत्य की टोह।।
बड़ा अजब है जीव का, जीवन के प्रति मोह।
जीत न पाया अंत से, खूब किया विद्रोह।।
मृत्यु देह की है सखा, जीवन गहरी खोह।
फिर भी इस संसार से, मिटे न मन का मोह।।
सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on May 14, 2020 at 10:30pm — 2 Comments
वर्षों हुए
एक बार देखे उसको
तब वो पुरे श्रृंगार में होती थी
बात बहुत
करती थी अपनी गहरी आँखों से
शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी
इमली चटनी
आम की क्यारी
चटपट खाना बहुत पसंद था
सैर सपाटे
चकमक कपडे रंगों का खेल
गाना बजाना हरदम था
खेलना कूदना
पढ़ना लिखना सपने सजाना
सब उसके फेहरिस्त का हिस्सा थे
सावन, झूले
नहरों में नहाना, पसंद का खाना
कई तरह के किस्से…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 14, 2020 at 3:19pm — 6 Comments
बदलाव !
तड़के प्रात:
स्वच्छ धूप की नरम दूब से
मिलने की उत्सुक्ता ...
कुछ इसी तरह कोई लोग
कितनी उत्सुक्ता से अपने बनते
निज को समर्पित…
ContinueAdded by vijay nikore on May 14, 2020 at 5:00am — 6 Comments
2122 2122 2122 212
एक ताज़ा ग़ज़ल
तेरी चौखट तक पहुँचने के हैं अब आसार कम.
फासला लंबा बहुत है या मेरी रफ्तार कम.
कौन से रस्ते पे चलके मैं चला जाऊं कहाँ,
डर बहकने का है दिलबर हौसला इस बार कम.
हद से ज्यादा बेबसी है पर इरादे बेहिसाब,
हमसफर तो मिल गए हैं मिलते हैं गमख़ार कम.
घर पहुँचने की तड़प में इस सफर में जाने जां,
रोटिया दिलकश अधिक है और तेरे रुखसार कम.
जोड़ कर रखा था नाता…
ContinueAdded by मनोज अहसास on May 14, 2020 at 12:22am — 5 Comments
( 221 1221 1221 122 )
.
मानन्द-ए-ज़माना अभी शातिर नहीं हैं हम
लोगों की तरह झूठ के नासिर नहीं हैं हम
**
नफ़रत के अलमदार ये अच्छे से समझ लें
ये मुल्क हमारा है मुहाज़िर नहीं हैं हम
**
हम सिर्फ़ मुहब्बत को समझते हैं इबादत
बस यार ख़ुदा अपना है काफ़िर नहीं हैं हम
**
जो दिल में रहे अपने वही रहता लबों पे
पोशीदगी-ए-राज़ में माहिर नहीं हैं हम
**
दिखते हैं अगर रुख़ पे तबस्सुम के मनाज़िर
ग़ायब करें ग़म…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 13, 2020 at 3:30pm — No Comments
तृप्ति
चहुँ ओर उलझा कटा-पिटा सत्य
कितना आसान है हर किसी का
स्वयं को क्षमा कर देना
हो चाहे जीवन की डूबती संध्या
आन्तरिक द्वंद्व और आंदोलन
मानसिक सरहदें लाँघते अशक्ति, विरोध
स्वयं से टकराहट
व्यक्तित्व .. यंत्रबद्ध खंड-खंड
जब देखो जहाँ देखो हर किसी में
पलायन की ही प्रवृत्ति
एक रिश्ते से दूसरे ...
एक कदम इस नाव
एक ... उस…
ContinueAdded by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:30am — 4 Comments
Added by amita tiwari on May 13, 2020 at 3:00am — 2 Comments
घर :
अच्छा है या बुरा है
जैसा भी है
मगर
ये घर मेरा है
इस घर का हर सवेरा
सिर्फ और सिर्फ
मेरा है
मैं
दिन रात
इसकी दीवारों से बातें करता हूँ
मेरे हर दर्द को
ये पहचानती हैं
मैं
कौन हूँ
ये अच्छी तरह जानती हैं
धूप
हर रोज
इन दीवारों को धो देती है
दीवारों पर टंगे अतीतों पर
रो देती है
कल भी कहते थे
ये आज भी कहते हैं
ये घर उनका का है
दीवारों पर उनकी यादों…
Added by Sushil Sarna on May 12, 2020 at 8:59pm — 2 Comments
छंद- आल्ह, विधान- 31 मात्रा, (चौपाई +15), अंत 21
.
ढाई आखर प्रेम सत्य है, स्वीकारो पहचानो मित्र.
धन बल सुख-दुख आने-जाने, प्रीत बढ़ाओ जानो मित्र.
कहते हैं लँगड़े घोड़े पर, दुनिया नहीं लगाती दाँव,
भाग्य आजमाने के बदले, स्वेद बहाओ मानो मित्र.
युग बदले हैं हुए खंडहर, थी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on May 12, 2020 at 10:00am — 3 Comments
२२१/ २१२१/२२२/१२१२
दिखती भला है अब किधर उम्मीद की चमक
खोने लगी है खुद सहर उम्मीद की चमक।१।
**
माझी को धोखा दे गयी पतवार हर कोई
दरिया में जैसे हो लहर उम्मीद की चमक।२।
**
बाँटेगा सबको आ के सच थोड़ी मिले भले
लेकर चला है वो अगर उम्मीद की चमक।३।
**
कहते उसे किसान हैं निर्धन बहुत भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक।४।
**
लूटा गया है हर तरह उसको जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2020 at 7:38am — 8 Comments
माटी :कुछ दोहे
माटी मिल माटी हुआ, माटी का इंसान।
माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।।
माटी अंतिम हो गई,मानव की पहचान।
माटी- माटी हो गया, साँसों का अभिमान।।
माटी -माटी हो गया, साँसों का अभिमान।
खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।।
खंडित सारे हो गए, जीने के वरदान।
पल भर में माटी हुआ माटी का परिधान।।
पल भर में माटी हुआ, माटी का परिधान।
माटी के पुतले यही, तेरी है पहचान।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 11, 2020 at 7:31pm — 3 Comments
ग़ज़ल
2122 2122 2122
मृत्यु के अनुरक्ति का अभिसार है क्या ।
मुक्ति पथ पर चल पड़ा संसार है क्या ।।
काल शव से कर चुका श्रृंगार है क्या ।
यह प्रलय का इक नया हुंकार है क्या ।।
आत्माओं का समर्पण हो रहा है ।
दृष्टिगोचर मृत्यु का उदगार है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 11, 2020 at 5:39pm — 4 Comments
( 2122 1122 1122 22 /112 )
है कोई आरज़ू का क़त्ल जो करना चाहे
कौन ऐसा है जहाँ में कि जो मरना चाहे
**
तोड़ देते हैं ज़माने में बशर को हालात
अपनी मर्ज़ी से भला कौन बिखरना चाहे
**
आरज़ू सबकी रहे ज़ीस्त में बस फूल मिलें
ख़ार की रह से भला कौन गुज़रना चाहे
**
ज़िंदगी का हो सफ़र या हो किसी मंज़िल का
बीच रस्ते में भला कौन ठहरना चाहे
**
देख क़ुदरत के नज़ारे है भला कौन बशर
जो कि ये रंग…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 11, 2020 at 5:30pm — 21 Comments
Added by Om Prakash Agrawal on May 11, 2020 at 12:04pm — 6 Comments
मैं जहाँ पर खड़ा हूँ वहाँ से हर मोड़ दिखता है
इस जहाँ से उस जहाँ का हरेक छोड़ दिखता है
ये वो किनारा है जहां सब खत्म हुआ समझो
सभी भावनाओं का जैसे अब अंत हुआ समझो
दर्द मुझे है बहूत मगर अब उसका कोई इलाज नहीं
मैं ना लगूँ खुश मगर, मैं किसी से नाराज़ नहीं
मैंने देखा है खुद को उसकी आँखों मे कई दफा मरते हुए
उसने ये सब सहा है, हर बार मगर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 11, 2020 at 9:28am — 3 Comments
Added by Anvita on May 10, 2020 at 11:23pm — 3 Comments
2122 2122 2122
अश्क धोकर आदमी थकने लगा है
सोचता - अब और रोना तो बला है।1
गर्दिशों का दौर बढ़ता,देखिए तो
शोर का कुछ भाव ज्यादा ही चढ़ा है।2
गुम हुई - सी जा रही पहचान फिर से
जिंदगी जो दे,उसे मरना पड़ा है।3
डंस रहा जाहिल अंधेरा आदमी को,
क्यूं उजाला रेत बन धुंधला हुआ है?4
कोसते हैं लोग कुछ भगवान को भी
जब संजोई गांठ में विष ही भरा है।5
ख्वाब चकनाचूर, आंखें पूछती हैं…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on May 10, 2020 at 9:45pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ख़ुद रही भूकी मुझे जी भर खिलाना याद है
मुफ़लिसी में टाट का 'स्वेटर' बनाना याद है
इम्तिहां कोई भी हो आशीष देती थी सदा
मां का हाथों से दही चीनी खिलाना याद है
एक मुर्शिद की तरह से हाथ सर पर फेरती
मैंने क्या कीं ग़लतियां इक इक गिनाना याद है
पाठशाला हम न जाएंगे ये ज़िद जब हमने की
पकड़े कान और खींच कर बस्ता थमाना याद है
बद-नज़र से दूर रखना था सियह टीका लगा
जो हरारत थोड़ी भी हो सहम जाना याद है
माँ सा तो…
Added by Om Prakash Agrawal on May 10, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
मातृ दिवस पर माँ को अर्पित कुछ दोहे :
माँ सृष्टि का नाम है, माँ में चारों धाम।
बिन माँ के संसार में, कहीं नहीं विश्राम।।
हौले -हौले गोद में, सोया माँ का लाल।
हुआ बड़ा तो देखिए, भूला माँ का हाल।।
नौ माह किया गर्भ में, माँ ने बड़ा ख़याल।
बिन बोले ही रो पड़ी, दुखी हुआ जब लाल।।
हर दम चाहे माँ यही, सुखी रहे संतान।
माँ देती संतान को, साँसों का वरदान।।
बिन देखे संतान को, मिटे न माँ की भूख।
भूख़ी हो संतान तो,…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2020 at 6:02pm — 3 Comments
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