( 2122 1122 1122 22 /112 )
है कोई आरज़ू का क़त्ल जो करना चाहे
कौन ऐसा है जहाँ में कि जो मरना चाहे
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तोड़ देते हैं ज़माने में बशर को हालात
अपनी मर्ज़ी से भला कौन बिखरना चाहे
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आरज़ू सबकी रहे ज़ीस्त में बस फूल मिलें
ख़ार की रह से भला कौन गुज़रना चाहे
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ज़िंदगी का हो सफ़र या हो किसी मंज़िल का
बीच रस्ते में भला कौन ठहरना चाहे
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देख क़ुदरत के नज़ारे है भला कौन बशर
जो कि ये रंग नज़र में नहीं भरना चाहे
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प्यार वो कश्ती है जिस पर जो चढ़ा है इक बार
कौन है ऐसा जो फिर उस से उतरना चाहे
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जिस परिंदे ने फ़लक देख लिया चाहे क्यों
उसके सय्याद कोई पंख कतरना चाहे
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आतिश-ए-ग़म की तलब कौन जहाँ में करता
हर कोई ज़ीस्त में खुशियों का ही झरना चाहे
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अपनी मर्ज़ी से चुने कौन शब-ए-हिज्र 'तुरंत'
कौन है मीत से जो वस्ल न करना चाहे
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " साहेब आदाब , जैसा कि मैंने पहले भी अर्ज़ किया ,उर्दू के मामले में सिफ़र हूँ , जो कुछ भी जानकारी हासिल होती है , देवनागरी में लिखे कलामों से होती है , जो मेरी समझ में आया ,मैंने आपको बताया , फिर भी मैं १०० प्रतिशत सही हूँ , मैं दावा नहीं करता , अधिक जानकारी के लिए आप किसी उर्दूदाँ फ़ाज़िल से ही मशवरा करें और उसे ही सही समझें | चर्चा से मालूमात में इज़ाफ़ा ही होता है , ऐसा मैं मानता हूँ , आपसे की गई चर्चा फ़ायदेमंद ही साबित हुई मेरे लिए भी |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत जी 'तुरन्त' बीकानेरी साहब आदाब। आप के ज़रिए दी गयीं तमाम जानकारियों के लिये बहुत बहुत शुक्रिया। इतना तो मैं भी जानता हूंँ कि तक़तीअ में मात्रा 1या 2 ही होती हैं 0 कुछ नहीं होता। 0 को मात्र संकेत के रूप में दर्शाया गया था। बहरहाल आपको मक़सद हासिल हुआ, बधाई हो। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " साहेब ,वैसे तो मेरा मक़सद पूरा हो गया , मैं भी यही कहता हूँ लिखा शब-ए-हिज्र ही जाएगा , लेकिन उच्चारण शबे-हिज्र =१२२१ होगा , इसी प्रकार शायर मात्राएँ एडजस्ट करते हैं बह्र निभाने के लिए , शबे-हिज्र =२२१ नहीं ले सकते अलबत्ता आप की बह्र में ज़रूरी हो तो इसे ११२१ लिया जा सकता है | ठीक उसी प्रकार जैसे ग़ालिब साहब ने दिल-ए-नादाँ को दिले-नादाँ पढ़कर ११२२ लिया था जबकि बह्र २१२२ १२१२ २२ थी ( दिले-नादाँ तुझे हुआ क्या है ,आखिर इस दर्द की दवा क्या है )
अब आपकी तक्तीअ पर नज़र डालें तो --
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें ( पढ़ा जाएगा -दिल दाद/गाने/ लज्ज/ते ईज़ाद /क्या करें )
सैलाब-ए-अश्क-ओ-आह पे बुनियाद क्या करें ( पढ़ा जाएगा -सैलाबे-अश्को-/आह/ पे बुनियाद /क्या करें )
इस मतले की बह्र है २२१/ २१२१ /१२२१ /२१२ ( तक्तीअ में ० कुछ नहीं होता या तो २ होता है या १ ,हाँ १ मात्रा गिराकर भी किया जाता है जैसे गाने में ने की मात्रा गिराई गई है , लज्जते में ते की मात्रा गिराई गई है , सैलाबे में बे की और अश्को में को , की ,पे =१ लिया गया है |
अलिफ़ वस्ल और वाव-अत्फ़ द्वारा मात्रा गिराकर शाइर लोग अपनी बह्र को निभा लेते हैं |
इसी तरह आसूदगान-ए-मसनद-ए-इरशाद क्या करें ( पढ़ा जाएगा -- आसूद/गाने मसन/दे इरशाद /क्या करें =२२१/ २१२१ /१२२१ /२१२)
जी। बेशक, शब-ए-हिज्र =शबे-हिज्र पढ़ा जाकर १२२१ हो सकता है, लेकिन लिखा जाएगा शब-ए-हिज्र ही।
जैसाकि आपने चन्द अश'आ़र की मिसाल पेश की है और उन का वज़्न करने को कहा है जो मैं किये देता हूँ।
2212/122/2212/12 रजज़ मुतक़ारिब रजज़ फ़अल
2 2 12 1 0 2 2 0 2 2 1 2 12
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
2 2 1 0 2 1 0 2 1+1 2 2 1 2 1 2
सैलाब-ए-अश्क-ओ-आह पे बुनियाद क्या करें
2 2 1 2 12 1+1 2 2 1 2 1 2 * यहाँ 'एँ' पर एक साकिन की छूट ली गयी है।
रिंदों की आरज़ू का तलातुम कहाँ से लाएँ
2 2 1 21 0 2 2 0 2 2 1 2 12
आसूदगान-ए-मसनद-ए-इरशाद क्या करें जहाँ वज़्न 0 है वहाँ ख़ास तवज्जो की ज़रूरत है। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " साहेब ,पहली बात तो यह है कि वस्ल का नियम केवल उर्दू अल्फ़ाज़ पर लागु होता है इसलिए जो आपने उदाहरण दिया अब -अबे और तब-तबे वही ग़लत है , लेकिन शब-ए-हिज्र =शबे-हिज्र पढ़ा जाकर १२२१ हो जाएगा | शाइर अलिफ़ वस्ल का प्रयोग कर इस तरह बह्र में मात्राएँ एडजस्ट करते हैं | चूँकि ग़ज़ल में उच्चारण के अनुसार मात्राएँ निर्धारित होती हैं | आपको कुछ उदाहरण देता हूँ शायद आप मुतमइन हो जाएँ |
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
सैलाब-ए-अश्क-ओ-आह पे बुनियाद क्या करें ( इन दोनों पंक्तियों का वज़्न देखें तक्तीअ करके )
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रिंदों की आरज़ू का तलातुम कहाँ से लाएँ
आसूदगान-ए-मसनद-ए-इरशाद क्या करें ( इस शेर का वज्न करें )
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मशक़्क़ती हैं तिरे काख़-ओ-कू-ए-हिज्र के हम
ऐ कार-ख़ाना-ए-अफ़्लाक-ओ-ख़ाक-ओ-आब-ओ-सराब
ये तंग-ओ-तार-गढ़ा नूर से भरे 'आमिर'
सदा रहे तेरे हुजरे में हाला-ए-माहताब ( इनका वज़्न करें शायद आपको बात समझ में आ जाये )
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी 'तुरंत,' आदाब । इल्म ए अदब के प्रति आपका समर्पण अद्भुत है। मैं आपकी जुर्रतों का क़ाइल
हो गया हूँ। आपसे और उस्ताद ए मुहतरम से मुज़ाकरात होने से न सिर्फ मेरे इल्म में नुमाँया इज़ाफा हुआ है बल्कि ओ बी ओ पर मुझ
जैसे सीखने वालों को फ़ायदा मिलेगा। आपके ज़रिये दी गयी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है। उर्दू ज़बान और इसके रस्मुलख़त से आपकी ज़्यादा वाक़िफ़त न होने के बावजूद आप अपनी लगन और समर्पण के कारण उर्दू को बहुतों से बेहतर जानते और समझते हैं, इसी बिना पर मुझे यक़ीन है कि आप जानते होंगे कि शब ए हिज्र का वज़्न 1221 जैसा कि आपने बताया है- "शबे-हिज्र=१२२१ (तक्तीअ सही है )" नहीं है, क्योंकि वज़्न 1221 रखने से शब का 'ब' बे यानि हर्फे़ मद्दः जैसे कि लफ़्ज़ ए अब- अबे और तब- तबे हो जाए जो कि बिल्कुल ग़लत है। शब ए हिज्र का सहीह वज़्न 221 है। उम्मीद है आप मुत्तफ़िक़ होंगे। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " साहेब , तुरंत का वज़्न वही है जो आपके तखल्लुस अमीर का है यानि १२१ |
अपनी मर्ज़ी /से चुने कौ/न शब-ए/-हिज्र 'तुरं/त' = २१२२/११२२/११२२/११२ (१) यहाँ त छोड़ दिया गया है | शबे-हिज्र=१२२१ (तक्तीअ सही है ) आदरणीय Samar kabeer साहेब द्वारा बताया गया है कि लास्ट के साकिन की छूट कुछ बह्र में ली जा सकती है और सभी सुख़नवर लेते रहे हैं | मैंने कई शाइर के कलाम पढ़कर ये अंदाजा लगाया है अक्सर छूट उस बह्र में ली जाती है जहाँ अंत में एक पूरा रुक्न बनता हो , यदि कोई रुक्न न बनता हो तो छूट नहीं ली जा सकती | अरकान (रुक्न का बहुवचन ) की सूची इस प्रकार है :-
फ ऊ लुन =१२२ फा इ लुन = २१२ मु फ़ा ई लुन = १२२२ मुस्तफ इ लुन =२२१२ मु त फ़ा इ लुन =११२१२ फ़ा इ ला तुन =२१२२
मु फा इ ल तुन =१२११२ मफ ऊ ला त =२२२१ मु फा इ लुन = १२१२ मफ ऊ लु=२२१ म फा ई लु =१२२१ फा इ ला तु=२१२१
फ इ ला तु=११२१ फ इ ला तुन=११२२ फै लुन =२२ फ़ा =२ फ़ा इ =२१ फ इ लुन =११२ फ अल =१२ फ ऊ लु =१२१
***
(स्रोत-ग़ज़ल प्रवेशिका -लेखक -राजेंद्र पाराशर )
किसी बह्र में यदि अंत में रुक्न १२२२ तो उसे १२२२१ नहीं किया जा सकता क्योंकि १२२२१ कोई रुक्न नहीं होता है |
इसी तरह ११२१२ को ११२१२१ नहीं किया जा सकता , २१२२ को २१२२१ और २२१२ को २२१२१ नहीं कर सकते | लेकिन मैंने देखा है अधिकतर शाइर १२२ को १२२१ , २१२ को २१२१ , २२ को २२१ , १२ को १२१ , २ को २१ , ११२ को ११२१ वज़्न के लफ्ज़ अंत में लेकर बह्र निभा लेते हैं अंत के एक साकिन को साइलेंट मानकर | अरूज़ की अधिकतर किताबें उर्दू में होने के कारण चूँकि में उर्दू पढ़ लिख नहीं सकता इसलिए ये दावा नहीं करता हूँ जो मैंने कहा सही है , लेकिन मैं शाइरों के कलाम बहुत ध्यान देकर पढता हूँ और उनमें यही तलाश करता हूँ कि कोई भी छूट कितने सुख़नवरों ने ली है और कैसे उसका प्रयोग किया है | उसके आधार पर अपना विवरण दिया है |
जी हुज़ूर, 'तोड देते हैं ज़माने में बशर को हालात' में बक़ौल आपके हर्फे साकिन 'त' की छूट ली गयी है। इस इल्म ए उरूज़ के लिये मैं आपका एहसानमंद हूँ।
अपनी मर्ज़ी से चुने कौन शब-ए-हिज्र 'तुरंत' मिसरे में ये छूट नहीं ली गयी है बल्कि तक़तीअ में गडबड़ी है।
अपनी मर्ज़ी - 2122,
से चुने कौ-1122,
-न श(-बे-हि-) ज्र-11(2)2,
तुरंत - 22(112).....यहाँ हर्फे साकिन की छूट की तो बात ही नहीं है क्या तक़तीअ में गड़बड़ी है? लफ़्ज़ ए तुरंत का सही़ह वज़्न क्या है। सादर।
//समर कबीर साहब
से गुज़ारिश है कि वो मेरी जानकारी को अपने इल्म की रौशनी से मअ़मूर फरमाएं//
कुछ बहूर में एक साकिन की छूट ली जाती है,मिसालें जनाब 'तुरंत' साहिब पेश कर ही चुके हैं ।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार |
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