दोहा मुक्तक :.....
1
मिथ्या मैं की डुगडुगी, मिथ्या मैं के ढोल ।
मिथ्या मैं का आवरण, मिथ्या मीठे बोल ।
मिथ्या जग के कहकहे, मिथ्या सब सम्बंध -
मिथ्या मौसम प्रीत के, मिथ्या प्रीत के कौल ।
............................................................
2
हर लकीर में जिन्दगी, जीती एक विधान ।
मरता है सौ बार तब , जीता है इन्सान ।
रख पाया है वक्त की, वश में कौन लगाम -
श्वास पृष्ठ पर है लिखा, आदि संग अवसान ।
सुशील सरना / 29-8-21
मौलिक…
Added by Sushil Sarna on August 29, 2021 at 10:48am — 4 Comments
1212 1122 1212 112
हैं मुन्तज़िर मेरे अहबाब देखने के लिए ।
जमीं पे उतरेगा महताब देखने के लिए ।।1
न जाने कैसा नशा है तुम्हारी सूरत में ।
सुना है रिन्द हैं बेताब देखने के लिए ।।2
तू अपनी तिश्नगी पे यार आज काबू रख ।
मिलेंगे और भी ज़हराब देखने के लिए ।।3
बहेंगे आप भी दरिया ए अश्क़ में इक दिन ।
अगर यूँ आएंगे शैलाब देखने के लिए ।।4
कुछ इस तरह से ख़ुदा ने नसीब बख़्शा है ।
हमें मिला ही…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2021 at 8:52am — 4 Comments
बह्र-ए-मीर
मुद्दत से वीरान पड़े इस उजड़े खंडर की
अब कौन करे परवाह जहाँ में दीदा-ए-तर की
गलियों में सन्नाटा पसरा शमशानों में शोर
आँखों को उम्मीद नहीं थी ऐसे मंज़र की
पास तुम्हारे बढ़ने लगता है जब कोलाहल
याद बड़ी तब आती है अपने सूने घर की
मिलकर मंज़िल पा लेंगे कब ऐसा बोला था
लेकिन तैयारी करते दोनों एक सफ़र की
अक्सर दरवाजे पे आ 'ब्रज' ने राह निहारी
इक दिन तो चिट्ठी आयेगी मेरे दिलबर की
अन्दर के खालीपन से डर डर के घबरा के
'ब्रज' आया…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:06pm — 6 Comments
वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
*
मथुरा में पर कंस का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
*
बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
*
लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये तेज से, कारागृह के द्वार।४।
*
हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा गेह में, किया कंस से दूर।५।
*
गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
चलो अच्छा हुआ वो अब पता पाने नहीं आते ।
खलिश ये रह गई दिल में सितम ढाने नहीं आते।
मुझे उस पार के लोगों से बस इतनी शिकायत है,
सफर कैसा रहा वो ये भी बतलाने नहीं आते।
तमाशा बन गई है दोस्ती नफरत की दुनिया में,
पुराने यार भी मुश्किल में समझाने नहीं आते।
हमारी बात तो दिलकश तुम्हें लग ही नहीं सकती,
हमें तहज़ीब तो आती है अफसाने नहीं आते ।
झुलस जाती है मेरी सोच अनचाहे ख्यालों से…
ContinueAdded by मनोज अहसास on August 24, 2021 at 11:47pm — 3 Comments
1212 1122 1212 22 / 112
मेरे अपनों का ही खंजर मेरी तलाश में है ।
जिन्हें बनाया था अफसर मेरी तलाश में है ।।
जड़ों को सींच रहा हूँ शुरू से ओ बी ओ की,
नये आए हैं वो चाकर मेरी तलाश में हैं ।
जताते झूूठा वो हक़ जो ग़ज़ल की शोहरत पर,
उन्हीं के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है ।
बहुत गुमान है उनको तो जन्म के शहर का,
नगर का हूँ मैं तो रहबर मेरी तलाश में हैं ।
जहाँ में सच…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 24, 2021 at 7:00pm — 5 Comments
आखिरकार जंगल के पेड़ों की गिनती के उपरांत पक्षियों और पशुओं की, उनकी जाति आधारित गिनती प्रारंभ हुई।कौवे कांव कांव करने लगे कि हम भी संख्या में कम नहीं हैं। गिद्ध अलग ही राग छेड़े हुए थे कि हम लुप्तप्राय हैं तो क्या,हमारी हिस्सेदारी जंगल की चीजों में कम क्यों हो?तीतर -बटेर,गौरैए आदि हर तरह के पक्षी जंगल की चीजों पर अपना हक जमाने के लिए बेताबी से अपने अपने तर्क रखते।कोई संख्या,तो कोई समझ पर जोर देता।कोई मुफ्तखोरी के चलते आलसी हो चुके परिंदों के हाथ पांख चलाने,खाना चुगने की जुगत पर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on August 24, 2021 at 8:00am — 5 Comments
झेलती मझधार अपनी जिन्दगी
कब लगेगी पार अपनी जिन्दगी ।१।
*
आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए
खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।
*
शब्द इस में है न कोई हर्ष का
बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।
*
यूँ कमी उल्लास की होती न फिर
होती गर त्यौहार अपनी जिन्दगी।४।
*
हम ने ही जन्जीर बाँधी पाँव को
कैसे ले रफ्तार अपनी जिन्दगी ।५।
*
सोच मत आकर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments
झाड़ू -पोंछा कर रही
अन्तर में अनुराग
स्वस्थ रहें सब, उल्लसित
हृदय भैरवी राग
दाल, सब्जियाँ पक रहीं
उफन रही है प्रीत
क्यों ना खा सब तृप्त हों?
जब पवित्र मन मीत
चकले पर रोटी बिली
तवे पकाया प्यार
उमग खिलाती प्रेम से
गृहणी नेह सम्हार
बरतन हैं जब मँज रहे
सृजन हो रहा गीत
ताल बद्ध , लय बद्ध हो
बजता नव संगीत
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 22, 2021 at 8:30pm — 6 Comments
2122 - 1122 - 1122 - 22/112
काश होता न जो तक़दीर का मारा मैं भी
देता इफ़लास-ज़दाओं को सहारा मैं भी
रौशनी मेरे सियह-ख़ाने में रहती हर शब
टिमटिमाता जो कोई होता सितारा मैं भी
वो निगाहों में मिरी जैसे बसे रहते हैं
काश नज़रों में रहूँ बनके नज़ारा मैं भी
वो भी मेरी ही तरह दर्द सहे आहें भरे
यूँ ही तन्हा न रहूँ इश्क़ का मारा मैं भी
जिस तरह क़ैस ने सहरा में गुज़ारे थे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 22, 2021 at 5:00pm — 6 Comments
याद तुम्हारी क्या कहूँ, यूँ करती तल्लीन।
घर, दफ़्तर, दुनिया, ख़ुदी, सब कुछ लेती छीन।
जल बिन मछली से कभी, मेरी तुलना ही न।
मैं आजीवन तड़पता, कुछ पल तड़पी मीन।
प्रेम पहेली एक है, हल हैं किन्तु अनेक।
दिल नौसिखिया खोजता, इनमें से बस…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 21, 2021 at 7:00pm — 5 Comments
सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
*
हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
*
पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
*
बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments
2122 1212 22/112
1
उसका जब मेरी कू में आना हो
उठ चुका ग़म का शामियाना हो
2
मिल रहा प्यार जब पुराना हो
लब प तब गीत आशिक़ाना हो
3
हिज्र की रात में वो आए जब
होटों पर वस्ल का तराना हो
4
ऐ ख़ुदा हर गरीब के घर में
पेट भरने को आब ओ दाना हो
5
टूटी कश्ती में बैठ कर कैसे
उस किनारे प अपना जाना हो
6
कह रहा है मरीज़-ए-इश्क़ मुझे
उसका दिल मेरा आशियाना…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on August 18, 2021 at 1:20pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२
होंठ हँसते हैं तो मन में पीर है
जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।
*
जो सिखाता था कलम ही थामना
वो भी हाथों में लिए शमशीर है।२।
*
झूठ को आजाद रक्खा नित गया
सच के पाँवों में पड़ी जंजीर है।३।
*
हाथ जन के वो न आयेगा कभी
उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।
*
रास नेताओं से करती है बहुत
रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।
*
इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं
झूठ की भी क्या गजब तासीर है।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments
221-1221-1221-122
बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी
पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)
माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने
रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)
मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ
कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)
है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा
था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)
ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे
हाकिम की उसी पर ही इनायत भी…
Added by सालिक गणवीर on August 16, 2021 at 8:37pm — 15 Comments
राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रहरी और मणिकर्णिका की वीरता को घर-घर पहुंचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की सुप्रसिद्ध कविता झांसी की रानी की पंक्तियाँ
'बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी...
'सुप्त जनता के दिलों में आजादी का अलाव जगाने आयी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियाँ सुभद्रा जी द्वारा रचित कई कविताओं से ज्यादा ख्याति प्राप्त हैं।
नौ साल की उम्र में पहली कविता ’नीम’ लिखने वाली सुभद्रा जी का…
Added by babitagupta on August 16, 2021 at 2:00pm — 4 Comments
आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं.....
महात्मा गांधी जी ने कहा, आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के बिना स्वराज्य प्राप्ति असंभव हैं। शारीरिक-मानसिक रूप से कमजोर समझने वाले लोगों के खिलाफ जाकर महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ा।और महिलाओं ने लोगों के कहने की परवाह किए बिना अपने आपको तौले मानसिक दृढ़ता के दस्तावेज,संघर्ष के संवेदनशील चित्रण पर डर को खारिज करते हुये समय के फलक पर अपनी कहानी लिख दी।पूर्वाग्रही सोच में जकड़े नकारात्मक…
Added by babitagupta on August 15, 2021 at 12:06am — 1 Comment
प्राणों का कर गये जो परिदान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर लो
आज़ादी का ये दिन है ख़ुशियाँ रहें मुबारक
मर कर भी दे गये जो ज़िंदगी तुम्हें मुबारक
सरहद पे रंग भरते वो जवान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर लो
अक्सर घिरे रहे जो बे-हिसाब मुश्किलों में
होकर शहीद भी वो ज़िन्दा हैं धड़कनों में
उन सच्चे सैनिकों का प्रतिदान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 14, 2021 at 3:12pm — 2 Comments
चुनकर संसद भेजते, उठें उचित सवाल।
साँसद संसद रोक के, करते वहाँ धमाल॥
निज कर्मों के साथ ही, याद रहे प्रभु नाम।
ईश कृपा जब तो मिले, बनते सारे काम॥
करे कमाई जिस तरह, वैसा रहे प्रभाव ।
अर्जित धन अनुचित सदा, देता रहता घाव॥
न व्यक्तित्व हो एक सा, अंतर होता मीत।
विचार जिससे जब मिले, जग जाती तब प्रीत॥
दो छोटों की बात पर, आप हमेशा…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on August 13, 2021 at 8:30pm — 5 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
*
बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
*
हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे
व्यवहार करते करते ही सावन गुजर गया।३।
*
इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
*
उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन
तैय्यार करते …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments
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