For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद तुम्हारी क्या कहूँ, यूँ करती तल्लीन।

घर, दफ़्तर, दुनिया, ख़ुदी, सब कुछ लेती छीन।

जल बिन मछली से कभी, मेरी तुलना ही न।

मैं आजीवन तड़पता, कुछ पल तड़पी मीन।

प्रेम पहेली एक है, हल हैं किन्तु अनेक।

दिल नौसिखिया खोजता, इनमें से बस एक।

सज्जन हीरा प्रेम का, मिलता है बेमोल।

दाम लगाने मैं गया, तो पाया अनमोल।

हृदय कूप में जा गिरे, कुछ यादों के साँप। 

बिन पानी, भोजन बिना, निशिदिन करें विलाप। 

जादू सच्चे प्रेम का, कौन सका है काट।

राजा काँसा ले खड़ा, रंक बना सम्राट।

भूलभुलैया प्रेम की, जो भटके सो पार।

जो बच निकले, फँस रहे, ‘सज्जन’ बारंबार।

--------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2021 at 8:45am

आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन । दोहों का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई। पर कुछ दोहे सुधार चाहते हैं जैसे कि गुणी जनों ने बताया है। 

//जल बिन मछली से कभी, मेरी तुलना ही न।//

में तनिक बदलाव कर वही भाव पैदा किया जा सकता है यथा--

जल बिन मछली से हुई, मेरी तुलना हीन।

सादर...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 24, 2021 at 7:56pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सौरभ जी एवं समर कबीर साहब, आपकी बेबाक राय के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुजार हूँ। आप के द्वारा इंगित अशुद्धियों को शीघ्रातिशीघ्र दूर करने का प्रयास करूंगा। 

Comment by Samar kabeer on August 24, 2021 at 3:12pm

जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब, दोहों पर अच्छा प्रयास हुआ है, जो कमियाँ हैं उन पर जनाब सौरभ साहिब ने इशारों इशारों में बहुत कुछ कह दिया है, ध्यान दें, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया मंच पर सक्रियता बनाएँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2021 at 6:49pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, एक अरसे बाद आपकी किसी प्रस्तुति पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहा हूँ. 

छंदों में प्रयोग किया जाना नया नहीं है. ऐसे-ऐसे प्रयोग हुए हैं कि कई बार दंग हो जाना पड़ता है. केशवदास को ’पद्य का प्रेत’ तक कह दिया गया, जो छंदों में भाव ही नहीं शिल्पगत प्रयोग के नाम पर भी विचित्र प्रयोग कर जाते दिखे हैं. 

तुलसीदास ने भी शिल्पगत प्रयोग किये हैं, जिन्हें सार्थक की श्रेणी का माना जाता है. 

आपके दोहे तुकांतता, विन्यास तथा मात्रिकता को लेकर बोहेमियन हुए हैं. 

जल बिन मछली से कभी, मेरी तुलना ही न। ...शब्द या शब्दांश से हुए पदांत में गुरु-लघु होना नियमानुकूल माना गया है. न कि, दो भिन्न शब्दों के गुरु-लघु समुच्चय को

मैं आजीवन तड़पता, कुछ पल तड़पी मीन। ........  विषम चरणांत रगण या वाचिक रगणात्मक रखने में क्या दिक्कत है. वैसे, बहुतेरे हैं जिन्होंने अवधी में रचित मानस या पद्मावत का उदाहरण दे कर हिन्दी में अनुकरण करने को सहज श्रेष्ठ मानते हैं. अब तो फेसबुक पर ऐसों की भरमार हो गयी है. परन्तु, अपना ओबीओ तो कार्यशाला-पटल है न ?

विश्वास है, आप कम सुनेंगे, अधिक समझेंगे. 

जय-जय 

Comment by Chetan Prakash on August 22, 2021 at 9:07pm

 नमस्कार, भाई, धर्मेंद्र कुमार सिंह, तकनीकी दृष्टि से दोहा छंद का प्रयास ठीक जान पड़ता है! प्रस्तुति को पोस्ट करने से पहले आप पढ़ लेते तो प्रयास अपेक्षाकृत बेहतर होता! यथा, ही न, जब कि हीन लिखा जाए, तो ही लय / तुक समान होगी! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service