वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
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मथुरा में पर कंस का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
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बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
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लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये तेज से, कारागृह के द्वार।४।
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हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा गेह में, किया कंस से दूर।५।
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गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को हर्ष
जनमानस से कंस ने, किन्तु बढ़ाया कर्ष।६।
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वत्सासुर सह पूतना, चले अघासुर काल
बकासुर, तृणावर्त भी, वध करने गोपाल।७।
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शकटासुर या कालिया, धेनुक और प्रलंब
कान्हा ने सब मारकर, तोड़ा हर अवलम्ब।८।
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किया इन्द्र अभिमान कम, गोवर्धन को धार
इस कारण जग गा रहा, महिमा अपरम्पार।९।
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किया कंस को छोड़ जब, कान्हा का शृंगार
भक्ति भाव ने कर दिया, कुब्जा का उद्धार।१०।
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कालयवन से जान कर, स्वयं हुए रणछोड़
मद में डूबा कर गया, काल, काल से होड़।११।
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मार कंस को फिर किया, मथुरा का उद्धार
पाया नाना साथ ही, दो माँओं का प्यार।१२।
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संशय अर्जुन का हरा, जिस गीता उपदेश
करो कर्म निष्काम सच, मानव को आदेश।१३।
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नंदक जिनका खड्ग है, नाम धनुष सारंग
गदा धरें कौमौदकी, 'पांचजञ्य' के संग।१४।
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रथ हैं जिनके पास में, जैत्र , गरुढ़ध्वज नाम
दारुक उन का सारथी, सदा रहा निष्काम।१५।
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चक्र सुदर्शन, पाशुपत, कान्हा के दिव्यास्त्र
महिमा चौदह लोक में, कहते जिनकी शास्त्र।१६।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी। बेहतरीन दोहे।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।
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