अपने ही छाँव तले मुझ को गुज़र जाना था
आग फैली थी हर इक सिम्त मगर जाना था
कितनी रानाइयाँ सज धज थी तेरी महफ़िल में
बेसरापा मुझे अनजान शहर जाना था
है नई रस्म यहाँ हाकिम ए दौरां की यूँ
नातवां हो के तेरे दर से गुज़र जाना था
राज़ क्या क्या थे निहाँ वक़्त के साये में मगर
छेड़ कर तान वही फिर से बिखर जाना था
बैठ कर शीश महल से जो न देखा तुमने
आग का गोला था जिस को के शरर जाना था
हाल अपना…
ContinueAdded by Tanweer on February 26, 2019 at 6:52pm — 8 Comments
प्यार का दंश या फर्ज
तुलसीताई के स्वर्गवासी होने की खबर लगते ही,अड़ोसी-पड़ोसी,नाते-रिश्तेदारों का जमघट लग गया,सभी के शोकसंतप्त चेहरे म्रत्युशैय्या पर सोलह श्रंगार किए लाल साड़ी मे लिपटी,चेहरे ढका हुआ था,पास जाकर अंतिम विदाई दे रहे थे.तभी अर्थी को कंधा देने तुलसीताई के पति,गोपीचन्दसेठ का बढ़ा हाथ,उनके बेटों द्वारा रोकने पर सभी हतप्रद रह गए.पंडितजी के आग्रह करने पर भी,अपनी माँ की अंतिम इच्छा का मान रखते हुये, ना तो कंधा लगाने दिया,ना ही दाहसंस्कार में लकड़ी.यहाँ तक कि उनके चेहरे के अंतिम…
Added by babitagupta on February 26, 2019 at 4:24pm — 3 Comments
1-
उसके कारण तन में प्राण।
वही करे मेरा कल्याण।
खान गुणों की जैसे यक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
2-
वह तो मेरा जीवन दाता।
हर धड़कन से उससे नाता।
है वह ईश्वर के समकक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
3-
उसके कारण ही दिल धड़के।
सर्वाधिक प्रिय लगता तड़के।
जीवन का वह रक्षति रक्ष।
क्या सखि साजन? ना सखि वृक्ष।।
4-
बचपन से वह मेरे संग।
सुंदर है उसका हर अंग।
मनभावन वह लगे अधेड़।
क्या सखि साजन ? ना सखि…
Added by Hariom Shrivastava on February 25, 2019 at 10:46am — 6 Comments
अब शहादत को न जाया कीजिये ।
आइना उनको दिखाया कीजिये।।
मुल्क में है इन्तकामी हौसला ।
हौसलों को मत दबाया कीजिये ।।
आग उगलेगी सुख़नवर की कलम ।
अब न कोई सच छुपाया कीजिये ।।
ख़ाब जो देखें हमारे कत्ल की ।
हर सितम उनपे ही ढाया कीजिये ।।
उनके हमले से फ़जीहत हो गयी।
दिल यहाँ अपना जलाया कीजिये ।।
तफ़सरा कीजै नये हालात पर ।
आप अपना घर बचाया कीजिये…
Added by Naveen Mani Tripathi on February 24, 2019 at 8:39pm — 4 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
.
ये दुआ है कि ख़ुशी आपके घर में आये
हादिसा पेश न जीवन के सफ़र में आये
**
अश्क आँखों में अगर हों तो ख़ुशी के हों बस
और सैलाब न अब दीदा-ए-तर में आये
**
प्यार की राह को आसाँ न समझना कोई
हौसला हो वही इस राह-गुज़र में आये
**
कोशिशें लाख करे तो भी नहीं है मुमकिन
ताब-ए-ख़ुर्शीद तो हरगिज़ न क़मर में आये
**
ग़ैर के ऐब को आसाँ है नज़र में रखना
ऐब ख़ुद का न किसी की भी नज़र में आये
**
अपने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 24, 2019 at 7:00pm — 4 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जमा पूँजी थी बरसों की जरुरत ने हजम कर ली
मुहब्बत अपनी लोगों ने सियासत से है कम कर ली।१।
जमाना अब तो हँसने का हँसेंगे सब तबाही पर
किसी दूजे के गम से कब किसी ने आँख नम कर ली।२।
सदा से नाज था जिसके वचन की सादगी पर ढब
उसी ने आज हमसे भी बड़ी झूठी कसम कर ली।३।
मुहब्बत रास आती क्या जफाएँ हर तरफ उस में
हमीं ने यूँ हर इक रंजिश खुशी से हमकदम कर ली।४।
बिगड़ जाती थी जो छोटी बड़ी हर बात पर हमसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2019 at 6:36am — 3 Comments
1-
हम विश्व शांन्ति के पोषक हैं, यह बात जगत में है जाहिर।
पर पाकिस्तान सदा से ही, आतंकवाद में है माहिर।।
पुलवामा में हमला करके, मारे हैं वीर बिना कारण।
इसलिए शांति अब और नहीं, हम भी कर पाऐंगे धारण।।
2-
हज करने की बातें करता, ये सौ-सौ चूहे भी खाकर।
अनजान बना बैठा रहता, जम्मू घाटी को दहलाकर।।
ये पाकिस्तान हमेशा से, भारत को है अति दुखदायक।
है अमन चैन के पथ में भी,अब बन बैठा ये खलनायक।।
3-
तीसरा नेत्र जब भारत ने, फड़काया भर ही है…
Added by Hariom Shrivastava on February 22, 2019 at 5:17pm — 6 Comments
अनूठा इजहार
नितिशा के बाबूजी के अंतिम श्रद्धांजलि दे रहे थे,तभी अंदर से शांत मुद्रा में नितिशा की दादी,सरल चिरनिद्रा में लीन बाबूजी के पार्थवशरीर के समक्ष बैठी,हाथ मे पकड़े नए सफेद रूमाल से मुंह पौछा,फिर कान के पास जाकर जो कहा,सभी उन्हें विस्मयद्रष्टि से देखने लगे,वो सिर पर हाथ फेरते हुये कह रही थी- ‘तुम आराम से रहना,मेरी चिंता मत करना. रामायण की चौपाई सुनाई,फिर बाबूजी का मनपसंद गीत गया,और सूखीआँखें चली गई.पूरे तेरह दिन सरला अपने ही कमरे मे ही रही. गरूढ़पुराण में शामिल होने को कहते तो…
ContinueAdded by babitagupta on February 22, 2019 at 3:33pm — 2 Comments
तुम्हें मेरी फिक्र कहाँ है
साँझ के आगोश में
दिन भर की थकान
राहत ले रही है
विश्वास की लौ धीरे-धीरे टिमटिमा रही है
ऐसे में अब तुम्हारी प्रतीक्षा शेष है
तुम्हें मेरा वादा कहाँ याद है
कह दो आज फिर मैं झूठ नहीं बोलूँगा
तुम्हारे झूठ पर मेरा विश्वास टिका है
शहर के कॉफी हाऊस से
बूढ़ों की टोलियाँ भी घर जा रही है
मस्जिद की मीनार और
मंदिर के कलश पर
दिन भर मंडराने वाले
कबूतरों का झुंड भी चला गया है
ऐसे में मेरे भरोसे की पतवार कहाँ…
Added by Mohammed Arif on February 21, 2019 at 3:18pm — 1 Comment
कभी सदा-ए-दिल-ए-यार जो सुनी होती
तो दास्ताँ न मेरी दर्द से भरी होती
**
रक़ीब पर न कभी रहम गर किया होता
मेरी ये ज़िंदगी सहरा न फिर बनी होती
**
तुम्हारी ज़िंदगी में ग़म कभी न आते गर
रिदा-ए-आरज़ू थोड़ी सिकुड़ गई होती
**
गुहर हयात में तुमको नसीब हो जाते
ज़रा सी वक़्त से तैराकी सीख ली होती …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 11:00am — 7 Comments
जल रही दिलों में आग हम बुझाएँ किसलिए
और सब्र बार बार आजमाएँ किसलिए
**
तोड़ता सुकून-ओ-चैन की हदें अगर कोई
लोग हिन्द देश के सितम उठाएँ किसलिए
**
क़त्ल जो करे यक़ीन का हबीब भी अगर
फिर यक़ीँ उसी पे आज हम दिखाएँ किसलिए
**
बार बार हो चुके ग़लत वतन के फ़ैसले
फिर अदू की चाल में हम आज आएँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 1:30am — 8 Comments
2122 2122 2122
जख्म हम अपने छिपाने में लगे है,
खुद को’ हम पत्थर बनाने में लगे है।
पूछ मत हमको हुआ क्या आजकल ये,
दर्द दिल का हम भुलाने में लगे है।
कौन देता है सहारा अब यहां पर,
बोझ अपना खुद उठाने में लगे है।
दिल जगत का बेरहम चट्टान जैसा,
फिर भी’ पत्थर को मनाने में लगे है।
देश हित की बात ‘‘मेठानी’’ करे क्या,
द्रोहियों को हम बचाने में लगे है।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम…
Added by Dayaram Methani on February 19, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
गुंजित सब धरती गगन, जन-जन में उल्लास l
दिग्दिगन्त झंकृत हुआ, जन्म लिए रविदास ll1
दर्शनविद कवि सन्त को, नमन करूँ कर जोर l
कीर्ति ध्वजा लहरा रही, कण-कण में चहुँ ओर ll2
कर्मनिष्ठ प्रतिभा कुशल, सन्त श्रेष्ठ रविदास l
ज्ञानदीप ज्योतित किये, पूर्ण किये विश्वास ll3
सकल सृष्टि वाहक बने, सन्त शान्ति के दूत l
मुखमण्डल रवि तेज से, मिटा छूत का भूत ll4
दुरित दैन्य अस्पृश्यता, जड़ से किए विनाश l
सत्कर्मों के बल सदा , काटे…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 19, 2019 at 5:07pm — 4 Comments
"न बाबा, तुम भले इसे बस्ता या स्कूल-बैग कह लो; लेकिन मेरी नज़र में यह बालक के कंधे पर समय का बोझ है! समय-चक्र की मार!" सड़क पर स्कूल से घर लौटते एक बालक के बोझिल झुके कंधे देखकर मिर्ज़ा जी ने अपने दोस्त राजवीर मासाब से कहा।
"भाईजान, समय के साथ हमें और विद्यार्थियों को चलना ही पड़ेगा। हमारे, उनके और मुल्क के हालात अपनी जगह और ज़माने के साथ हमारी लय-ताल अपनी जगह!"
"हा हा हा.. लय-ताल! ... या पाठ्यक्रमों का सुनियोजित बवाल! नई आयातित शिक्षण-पद्धतियों के सागर या सुर-ताल। न तैराक…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 18, 2019 at 8:00pm — 4 Comments
कल से ही खबर आ रही थी कि क्षेत्र में कुछ संदिग्ध लोग देखे गए हैं और रात में चौकसी बढ़ा दी गयी थी. हमेशा की तरह रमेश और रोशन एक साथ ही नाईट ड्यूटी पर थे. जैसे जैसे रात आगे बढ़ रही थी, चारो तरफ अँधेरा कुछ यूँ गहरा रहा था मानो इस रात की सुबह होगी ही नहीं. अचानक एक खटका हुआ और रोशन ने अपनी राइफल आवाज़ की तरफ तान दी. कुछ मिनट तक सन्नाटा रहा और उनको लग गया कि कोई खतरा नहीं है.
"तू तो निरा डरपोक ही है रोशन, जरा सी आहट हुई नहीं कि घबरा जाता है", रमेश ने उसे छेड़ते हुए कहा.
"अच्छा तो पंडित, तू…
Added by विनय कुमार on February 18, 2019 at 7:20pm — 2 Comments
ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)
देके सर हम हो गए दुनिया से रुखसत दोस्तो l
तुम को करनी है वतन की अब हिफाज़त दोस्तो l
बाँध कर बैठो कफ़न अपने सरों पर हर घड़ी
सामने ना जाने कब आ जाए आफ़त दोस्तो l
उन दरिंदों का मिटा दें दुनिया से नामो निशां
मुल्क में फैला रहे हैं जो भी दहशत दोस्तो l
उसको मत देना मुआफ़ी मौत देना है उसे
जिसने पुलवामा में की है नीच हरकत दोस्तो l
हम को उनकी ईंट का पत्थर से देना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 18, 2019 at 7:01pm — 12 Comments
अपने वतन में बेघर का दर्द क्या जानो
जिन्होने लूटा है खसूटा उनको पहचानो
मेहनत मज़दूरी की तो जी गये बच्चे
संस्कार मिले थे बुजुर्गो से हमें भी अच्छे
लुट गये लेकिन हथियार उठाया ना कभी
वतन पे जान देने का है इरादा अब भी…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on February 18, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
जाने हम किसके मोहताज़ हैं,
जज्बात वो कल ना रहेंगे, जो आज हैं।
इतने मशरूफ़ भी ना रहो मेरे हमदम,
इस उम्र के बड़े लंबे परवाज़ है।
नजर भर कर देखो, हसरतों की बात है,
एक पल का नहीं, उम्र भर का साथ है।
बेरुखी जहर बन जाएगी आहिस्ता-आहिस्ता,
सुनो सरगोशी से ये बात, राज की बात है।
सम्हलने के लिए इबरत ही काफी है,
अंजाम पर तो माफी तलाफ़ी है।
मर जाती है जब सारी ख्वाहिशें तो,
फिर अहसास की सांस भी ना काफी…
Added by Rahila on February 18, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम ,वीरों की कुर्बानी को
चढ़ सीने पर चूर करेंगे,दुश्मन की मनमानी को
माफ नहीं हरगिज करना है, भीतर के गद्दारों को
बनें विभीषण वैरी हित में,बुलन्द करते नारों को ll
अन्न देश का खाने वाले, दुर्जन के गुण गाते हैं
जिस माटी में पले बढ़े हैं, उस पर बज्र गिराते हैं
छिपे हुए कुलघाती जब ये, मिट्टी में मिल जाएंगे
बचे सुधर्मी सरफरोश सब,राग वतन के गाएंगे ll
देश कुकर्मी हठधर्मी को, कर देना बोटी बोटी
उस भुजंग को कुचल मसल…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 18, 2019 at 12:00pm — 2 Comments
बड़ी खामोशी से वो कर रहें हैं गुफ्तगू
मगर सब सुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
मोहब्बत के खिलें हैं फूल जिनके दर्मियाँ
वो काँटे चुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
यूँ शब भर जागकर सौदाई बन तन्हाई का
गलीचा बुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
किये हैं ज़ब्त, वादों में जो रिश्ते प्यार के
वो रिश्ते घुन रहें हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
वो हमसे पूंछते हैं इश्क करने की वज़ह
मोहब्बत बेवज़ह है ये उन्हें मालूम नहीं…
Added by रक्षिता सिंह on February 18, 2019 at 9:49am — 2 Comments
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