प्यार का दंश या फर्ज
तुलसीताई के स्वर्गवासी होने की खबर लगते ही,अड़ोसी-पड़ोसी,नाते-रिश्तेदारों का जमघट लग गया,सभी के शोकसंतप्त चेहरे म्रत्युशैय्या पर सोलह श्रंगार किए लाल साड़ी मे लिपटी,चेहरे ढका हुआ था,पास जाकर अंतिम विदाई दे रहे थे.तभी अर्थी को कंधा देने तुलसीताई के पति,गोपीचन्दसेठ का बढ़ा हाथ,उनके बेटों द्वारा रोकने पर सभी हतप्रद रह गए.पंडितजी के आग्रह करने पर भी,अपनी माँ की अंतिम इच्छा का मान रखते हुये, ना तो कंधा लगाने दिया,ना ही दाहसंस्कार में लकड़ी.यहाँ तक कि उनके चेहरे के अंतिम दर्शन भी ना करने दिये.तेहरवी तक अंजान सदस्य बन, मूकदर्शक की तरह शामिल होते.
गोपीचन्दसेठ,प्रतिष्ठित व्यापारी,बेटो-बहुओं,नाती-पोतों वाला परिवार,सुशील,कुशल धर्मपत्नी,तुलसीताई,अपनी व्यवहार कुशलता से,प्यार से,दीवारों की एक-एक ईट को जोड़कर,सबको अपना मुरीद मना लिया.वो भी अपने भाग्य,सराहती,ईश्वरसम पति को पूजती,पर गोपीचन्द द्वारा अकस्मात दूसरे विवाह की खबर से आघात,बुत-सी बन गई.ढलती शाम का ओट में छिपा अलविदा कहता सूरज फिर कल आने का आगाह करता हैं,रोजमर्रा की तरह आने का,पर तुलसीताई के जीवन मे बीते खुशहाल दिन फिर कभी ना आए.बदलते जीवन के समीकरणों ने आनंदमयी अन्तर्मन पर दुखित परतों से उदासीन बना दिया.अनायास गोपीचन्द के सामने पड़ने पर,अपना चेहरा ढक लेती,उसांस भरे अधरों पर बुदबुदाहट दौड़ पड़ती,महिलाओं के प्रति सम्मान जताते थे,लेकिन इस तरह,महिला आश्रम दोस्तों के साथ राहत राशि जमा करने गए थे,और दोस्तों द्वारा चने के झाड़ पर चढ़ा दिया,और कर दिया निराश्रित महिला का उद्धार ,संग व्याह रचाकर.निर्मोही पति की बेवफाई से घायल पतंगा की तरह भटकता मन सांसारिक दुनियाँ से मुक्त होने को तड़प उठता.वित्रष्ण ह्रदय की धधक में पति की पश्चाताप की बूंदे रूपी स्नेहसिल शब्दों की बौछार छनक जाती.बेटों-बहुओं को भी अपनी देवीय माँ के प्रति घोर अन्याय लगा,तुलसी के साथ,सभी ने गोपीचन्द से नाता तोड़ लिया.घर के कोने में रहते,आते-जाते,पर अंजानों की तरह.
अकस्मात नियति ने दिये दुख की तपन से अन्तर्मन सुलगता,सहने के लिए बस ईश्वर का भावात्मक संबल था,अवसादभरा मन होने पर भी जीवनभर सहरदयता का भाव बनाए रखा. भगवान के समक्ष घंटो बैठी रहती,जब कभी पंडितजी के सदा सुहागिन बने रहने और अपने पति के एकपत्नीत्व का बचन स्मरण हो आता,मन कचोटता,कैसे आशीर्वाद,श्राप बन गया.वेदनामयी जीवन को देख सब तड़प उठते.और एक दिन भावहीन ह्रदय की तड़प ने याचनाभरी नेत्रों से क्रतज्ञभाव से अंतिम इच्छा निर्वाह करने का वचन लिया कि मरणोपरांत भी मेरा चेहरा अपने पिता को ना दिखाना और ना ही अर्थी को लकड़ी. सब सुनकर सन्न रह गए,पर बचन दिया.सुहागिन जैसी रहने पर,कोई पूछता तो कहती,‘बस,साथ में धर्म ही जाता हैं.’दिन-रात की घुटन की पीड़ा ने ऐसे असाधाय रोगग्रस्त ने बिस्तर पकड़ा,फिर वो शमशान घाट पर ही छूटा.
तुलसी के साथ किए अन्याय का क्षोम दिन-रात गोपीचन्द को सताता,ह्रदय की पीड़ा चेहरे पर झलकती,पर सामने दूसरी पत्नी की ज़िम्मेदारी,धर्मरीति निभाने को बेवस कर देती,हालांकि तुलसी से मेल-जोल की कोशिस की,पर उसकी निर्मोहिता,कठोरता परे धकेल देती.खैर..... ऊपर वाले के देर हैं,अंधेर नही…….दो साल भी नही हुये थे,कि ईश्वर ने दूसरी पत्नी को अपने पास बुला लिया....शायद तुलसी के साथ हुये अन्याय का न्याय मिला.लेकिन गोपीचन्द बिना किसी की परवाह किए दूसरी पत्नी को घर,सम्मान,पहचान सब दी,तसल्ली थी,कि किसी के साथ वचनों को निभा सका.
.
मौलिक व अप्रकाशित
बबीता गुप्ता
Comment
आभार समर सरजी एवं शेख सरजी।
सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online