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प्रदीप देवीशरण भट्ट
  • Male
  • हैदराबाद (तेलांगाना)
  • India
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Samar kabeer commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post बिन तेरे
"जनाब प्रदीप जी,आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।"
Jan 30, 2020
Samar kabeer commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post पटरियों से सीख
"जनाब प्रदीप जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।"
Jan 30, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट posted blog posts
Jan 30, 2020
Samar kabeer commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post सहर हो जाएगा
"जनाब प्रदीप देवीशरण भट्ट जी आदाब,अगर ये ग़ज़ल है तो इसके मतले में क़वाफ़ी नहीं हैं,दूसरी बात शीर्षक भी ग़लत है 'सहर हो जाएगा' 'सहर' शब्द स्त्रीलिंग है,देखियेगा ।"
Jan 28, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट posted a blog post

सहर हो जाएगा

जिस्म तो नश्वर है, ये मिट जाएगाप्रेम पर अपना अमर हो जाएगा सोच मत खोया क्या तूने है यहाँएक लम्हा भी दहर हो जाएगा माना ये छोटा है पर धीरज तो धरबीज एक दिन ये शजर हो जाएगा भाग्य में जितना लिखा था मिल गयाअपना इसमें भी गुजर हो जाएगा जीस्त बेफिक्री में काटी है मगरमौत का उस पर असर हो जाएगा तिरगी से डर के क्यूँ रहना भलाआज या फ़िर कल सहर हो जाएगा सीख कुछ मेरे तजरबे से ‘प्रदीप’वरना तू भी दर बदर हो जाएगा                     मौलिक व अप्रकाशित…See More
Jan 17, 2020
नाथ सोनांचली commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post हम पंछी भारत के
"आद0 प्रदीप देवी शरण भट्ट जी सादर अभिवादन। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये"
Jan 16, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post हम पंछी भारत के
"शुक्रिया समर जी"
Jan 16, 2020
Samar kabeer commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post हम पंछी भारत के
"जनाब प्रदीप देवीशरण भट्ट जी आदाब,ग़ज़ल शिल्प,व्याकरण,बह्र,क़वाफ़ी पर अभी समय चाहती है,बहरहाल इसप्रस्तुति पर बधाई लें ।"
Jan 13, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट posted a blog post

हम पंछी भारत के

जो हैं भूखे यहाँ ठहर जाएँशेष सब संग संग उड़ जाएँकमी नहीं यहाँ पे दानों क़ीहो जो बरसात मेरे घर आएँपेट भरता है चंद दानों सेफ़िर क्यूँ सहरा में घूमने जाएँलोग भारत के बहुत अच्छे हैंख़ुद से पहिले हमें हैं खिलवाएँमार कंकर भगाते हैं बच्चेफिर वही प्यार से हैं बुलावाएँप्रचंड गर्मी में जब तडपते हैंपानी हमको यहीं हैं पिलवाएँखेत खलिहान सौंधी सी ख़ुशबूछोड़ मिट्टी क़ो 'दीप' क्यूँ जाएँ. मौलिक व अप्रकाशित-प्रदीप देवीशरण भट्ट - 08:01:2020See More
Jan 13, 2020
Bhupender singh ranawat commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post मनुष्य और पयोनिधि
"Shandaar rachna"
Jan 13, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post अमर प्रेम
"समर जी शुक्रिया, मैं अवश्य सज्ञांन (देखिए फिर गडबड हो गई) लूगाँ।"
Jan 9, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post अमर प्रेम
"शुक्रिया सुरेंद्र जी"
Jan 9, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post अमर प्रेम
"शुक्रिया लक्ष्मण जी, फोंट की ज़बरदस्त समस्या है टाइप करते करते अपने बदल जाता है, सुझाव के शुक्रिया"
Jan 9, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post अहसास
"समर जी आभार आपका"
Jan 9, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post अहसास
"शुक्रिया लक्ष्मण जी"
Jan 9, 2020
प्रदीप देवीशरण भट्ट commented on प्रदीप देवीशरण भट्ट's blog post अहसास
"शुक्रिया सुरेंद्र जी"
Jan 9, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
हैदराबाद
Native Place
रुडकी (उत्तराखंड)
Profession
Government
About me
Superintendent in KVIC, हैदराबाद

प्रदीप देवीशरण भट्ट's Blog

बिन तेरे

तेरे बिन है घर ये सूना
मेरे मन का कोना सूना
समझो ना ये चार दिनो का
प्यार हमारा काफ़ी जूना*!

घर क़ी देहरी कैसे ये लांघूँ
मैं छलना ना ख़ुद को जानूं
लोगों का तो काम है कहना
मैं तुमको बस अपना मानूं! !

मुझे आस तुम्हारे मिलने क़ी है
और साथ में चलने क़ी है
तब ये सूनापन ना अखरे
बात नज़रिया बदलने क़ी है! !


* पुराना (मराठी शब्द)
- प्रदीप देवीशरण भट्ट - 28:01:2020

मौलिक व अप्रकाशित

Posted on January 28, 2020 at 3:30pm — 1 Comment

पटरियों से सीख

इक तेरी है इक मेरी है

ढल के आग में ये बनी हैं

जैसे तुम से तुम बने हो

वैसे मैं से मैं भी बनीं हूँ

 

आ चल बैठ यहीं हम देखें

एक दूजे से कुछ हम सीखें

अलग है माना फिर भी संग संग

मिलजुल कर के रहना सीखें

 

शहरों क़ी फिर चकाचौंध हो

जंगल में या कहीं ठौर हो

साथ ना छोडे एक दूजे का

ताप हो कितना या के शीत हो

कहीं हैं सीधी कहीं ये टेढी

दिन हो या हो रात अंधेरी

कर्म पथ से कभी ना डिगती

ना…

Continue

Posted on January 27, 2020 at 1:00pm — 1 Comment

सहर हो जाएगा

जिस्म तो नश्वर है, ये मिट जाएगा

प्रेम पर अपना अमर हो जाएगा

 

सोच मत खोया क्या तूने है यहाँ

एक लम्हा भी दहर हो जाएगा

 

माना ये छोटा है पर धीरज तो धर

बीज एक दिन ये शजर हो जाएगा

 

भाग्य में जितना लिखा था मिल गया

अपना इसमें भी गुजर हो जाएगा

 

जीस्त बेफिक्री में काटी है मगर

मौत का उस पर असर हो जाएगा

 

तिरगी से डर के क्यूँ रहना भला

आज या फ़िर कल सहर हो जाएगा

 

सीख कुछ मेरे…

Continue

Posted on January 16, 2020 at 2:30pm — 1 Comment

हम पंछी भारत के

जो हैं भूखे यहाँ ठहर जाएँ

शेष सब संग संग उड़ जाएँ

कमी नहीं यहाँ पे दानों क़ी

हो जो बरसात मेरे घर आएँ

पेट भरता है चंद दानों से

फ़िर क्यूँ सहरा में घूमने जाएँ

लोग भारत के बहुत अच्छे हैं

ख़ुद से पहिले हमें हैं खिलवाएँ

मार कंकर भगाते हैं बच्चे

फिर वही प्यार से हैं बुलावाएँ

प्रचंड गर्मी में जब तडपते हैं

पानी हमको यहीं हैं पिलवाएँ

खेत खलिहान सौंधी सी ख़ुशबू

छोड़ मिट्टी क़ो 'दीप' क्यूँ…

Continue

Posted on January 9, 2020 at 5:30pm — 3 Comments

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"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
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