ढलती जाती उम्र में, डगमग होती नाव।
कभी-कभी नैराश्य के, आ जाते हैं भाव।।
आ जाते हैं भाव, और दुख होता भारी।
लगने लगती व्यर्थ, तभी यह दुनियादारी।।
जीर्णशीर्ण यह नाव,चले हिचकोले खाती।
घिरता है अवसाद, उम्र जब ढलती जाती।।
2-
माला फेरी उम्रभर, तीरथ किए हजार।
काम क्रोध मद मोह से, पाया कभी न पार।।
पाया कभी न पार, जिन्दगी व्यर्थ गँवाई।
बीत गई अब उम्र, विदा की बेला आई।।
मन में रखकर द्वेष, बैर अपनों से पाला।
धुला न मन का मैल,जपी निसदिन ही…
Added by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:22pm — 6 Comments
उम्र ...
गर्भ से चलती है
धरती पर पलती है
आँखों को मलती है
संग साँसों के चलती है
उम्र
जिस्म की दासी है
युग युग से प्यासी है
ख़ुशी और उदासी है
छलती ही जाती है
उम्र
मस्तानी जवानी है
अधूरी सी कहानी है
लहरों की रवानी है
रेत सी फिसल जाती है
उम्र
काल की दुपहरी है
चिताओं पर ठहरी है
ज़माने से बहरी है
धधक जाती है चुपके से
उम्र
कल तक जो चलती थी
आशाओं…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2019 at 5:16pm — 4 Comments
देशभक्ति का चोला पहन
देश का युवा घूम रहा
मतवाला होके डोल रहा
ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||
घूम घूम कर,
झूम झूम कर
वीरो की गाथा खोज रहा
ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||
बलिदान को अपने वीरो के
हर पल हर क्षण को
रम रमा कर यादों में अपनी
खोया-खोया फिर रहा||
ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:30pm — No Comments
उम्र संग ये बढती है
कर्म से अपने चलती है
परीक्षा धैर्य की लेकर
मार्ग प्रशस्त ये करती है||
कर्म के पथ पर चढ़कर
ये, अगले कदम को रखती है
हार-जीत के थपेड़े दे देकर
निखार हुनर में करती है||
त्रुटी को सुधार के तेरी
आत्मविश्वास से बढ़ती है
उतार चढ़ाव के मार्ग बना
हर परस्थितियो लड़ने को
तैयार हमें ये करती है||
तरक्की की सीढी चढ़े सदा
लक्ष्य निर्धारित करती है
उठा-गिरा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:05pm — 2 Comments
कुछ क्षणिकाएं :
उल्फ़त की निशानी
आँख में
थिरकता
बूँद भर पानी
...........................
समाज
अंधेरों के घेरों में
सभ्यता
न साँझ में
न सवेरों में
..........................
माँ की लाश
बिलखता विश्वास
टूटा आकाश
बेटी के पास
.............................
जीवन रंग
हुए बदरंग
रिश्तों के संग
...............................
दृष्टि में विकार
बढ़ता व्यभिचार
नारी…
Added by Sushil Sarna on April 11, 2019 at 7:51pm — 2 Comments
वक्त की उठक बैटक ने
जीना हमकों सिखा दिया
जिन्दगी की पेचीदा परिस्थितयों से
लड़ना हमकों सिखा दिया
जीना हमकों सिखा दिया||
मुखौटों में छुपे चहरों से
रूबरू हमकों करा दिया
क्या कहेगी ये दुनियाँ
इस उलझन से जो छुड़ा दिया
जीना हमकों सिखा दिया ||
लोग कहे तो हंसे हम
और कहे तो रोये
लोगों के हाथो चलती, जिंदगी को
खुल के जीना सिखा दिया
जीना हमकों सीखा दिया ||
साथ ना छोड़ेगे के…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 11, 2019 at 5:21pm — 3 Comments
पांच दोहे :
माँ की पूजा जो करे, तज कर सारे काम।
उसके जीवन में सदा ,पूरन होते काम।।
जयकारों से गूँजता, है माँ का दरबार।
दरस मात्र से जीव का, होता बेड़ा पार।।
माँ के पावन नाम की, महिमा अपरम्पार।
बाल न बाँका भक्त का, कर पाता संसार।।
माँ की पूजा-अर्चना, करता जो निष्काम।
मिल जाता उस भक्त को , माँ का पावन धाम।।
चलकर नंगे पाँव जो, आता तेरे धाम।
पूरन होते जीव के, मुश्किल सारे काम।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 10, 2019 at 5:44pm — 8 Comments
घर- घर हो घट स्थापना, लगे नए पंडाल
हर मन उल्लासित दिखे, ले पूजा की थाल।।
चैत्र मास नवरात्र में, हो माँ का गुण गान
दुर्गुण सारा जल उठे, हो इसका भी ध्यान।।
यह सारा संसार ही, माँ का है दरबार
माँ ही बस इक सत्य है, बाकी सब बेकार।।
बालक बृंद अबोध मैं, माँ ममता की खान
जैसा भी हूँ मैं अभी, रखना माँ तू ध्यान।।
माँ के ही सब लाल हम, माँ ही खेवनहार
दया दृष्टि जब माँ करे, हों भवसागर पार।।
(मौलिक व…
ContinueAdded by Vivek Pandey Dwij on April 9, 2019 at 7:00pm — 6 Comments
"हम तो आज भी पल्लू सरक जाए तो तुरंत ठीक कर लेते हैं. लेकिन ये आजकल की बहुरिया, मजाल है कि पल्लू सर पर टिके", रुक्मणि को नई बहू का कपड़ा पहनना बिलकुल नहीं भा रहा था और वह रवि के सामने भी कहने से नहीं चूकीं.
रवि ने पलटकर उनकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए. वह भी नई बहू को पिछले दो दिन से बमुश्किल साड़ी सँभालते देख रहे थे.
"अब हर आदमी तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकता ना राजेश की अम्मा, तुमको पता तो है कि बहू शहर में नौकरी करती है और इसके नीचे कई लोग काम भी करते हैं", रवि ने बात सँभालने की कोशिश…
Added by विनय कुमार on April 9, 2019 at 6:18pm — 12 Comments
कई दिनों देश-विदेश यात्राएं कर भिन्न-भिन्न परिस्थितियों और परिदृश्यों की साक्षी होने के बाद एक मशहूर पुस्तकालय का मुआयना करते हुए उन दोनों ने अपनी लम्बी चुप्पी यूं तोड़ ही दी :
"यह भी सभ्य लोगों का ही एक अड्डा है!"
"बाहर से इंसान कुछ भी दिखे, अंदर से तो प्राय: उसका चरित्र भद्दा है!" सभ्यता की बात पर असभ्यता ने कहा।
"संक्रमण-काल है! वैश्वीकरण में मिलावट का दौर है! स्वार्थी तकनीकी तरक़्क़ी का मुद्दा है!" एक आह भरते हुए सभ्यता ने कहा और पुस्तकालय में सलीके से…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2019 at 9:23pm — 7 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
.
हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें
ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें
oo
उसकी अना ने सारे तअल्लुक़ मिटा दिए
उस बे-वफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
oo
मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी
आँखों में तेरी डूब न जाएँ तो क्या करें
oo
कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर
हो जाएं गर…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on April 8, 2019 at 4:30pm — 10 Comments
सेल्फ़ी-स्टिक से ले डाली रे, कुल्फ़ी वाली सेल्फ़ी।
हेल्द़ी-स्टिक दो खा डालीं रे, हम सब दिखते हेल्द़ी।।
मम्मी-पापा को भी लाओ, सेल्फ़ी लेंगी मम्मी।
कुल्फ़ी सब जी भर के खाओ, मम्मी वाली कुल्फ़ी।।
सर्दी-ज़ुकाम से क्या डरना, गर्मी वाली सर्दी।
ज़ल्दी से अब और खिलादो, ठंडी कुल्फ़ी ज़ल्दी।।
सेल्फ़ी-स्टिक से ले डाली रे, मस्ती वाली सेल्फ़ी।
ले ली दादा-दादी वाली, सेल्फ़ी सुंदर ले ली।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
मापनी: 2122 2122 2122 212
झूठ का व्यापार बढ़ता जा रहा है आजकल,
और हर इक पर नशा ये छा रहा है आजकल
है लड़ाई का नजारा हर तरफ देखें जिधर,
आदमी ही आदमी को खा रहा है आजकल
इस प्रगति के नाम पर ही मिट रहे संस्कार सब
झूठ को हर आदमी अपना रहा है आजकल
बाँटकर भगवान को नेता खुशी से झूमकर
काबा’ तेरा काशी’ मेरी गा रहा है आजकल
जाग ‘मेठानी’ बचायें आग से अपना चमन
नित नया जालिम जलाने आ रहा है…
Added by Dayaram Methani on April 8, 2019 at 2:01pm — 7 Comments
लो फिर से गर्मियों की छुट्टियां आ गईं। दो महीने पहले से परिवारजन और बच्चे इन छुट्टियों के सही व नये इस्तेमाल के बारे में अपनी-अपनी राय दे रहे थे। बच्चों की योजनाओं पर बड़ों की व्यस्तताओं और योजनाओं के कारण बच्चों के मन के फैसले नहीं हो पा रहे थे। आम चुनावों का भी माहौल चल रहा था। किसी के मम्मी-पापा किसी ज़िम्मेदारी में फंसे थे, तो किसी के किसी और काम में। बहरहाल इन छुट्टियों के एक-एक दिन का सही इस्तेमाल होना बहुत ज़रूरी था।
मुझे फुरसत देख घर के और पड़ोस के बच्चों ने मुझे यह…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2019 at 10:34am — 3 Comments
छा रहा नभ में अँधेरा
जुगनुओं ने सूर्य घेरा
नेह भावों से निचोड़ूँ दीप मैं घर घर जलाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
रो दिए वीरान पनघट
टूट के बिखरे हुए घट
हैं बहुत मुश्किल समय के ये थपेड़े सह न पाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
अश्रुओं से सिक्त वीणा
न कहूँ अंतस की पीड़ा
रिक्त भावों से पड़े तो किस तरह ये गीत गाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2019 at 10:30am — 8 Comments
"माई, अपने घर में एक मोटी पुस्तक थी। रामायण । उसमें से तूने एक प्रसंग सुनाया था कि एक केवट था जो राम चंद्र जी को नाव में इसलिये नहीं बिठा रहा था कि उनके पैरों की धूल से उसकी नाव कहीं सुंदर स्त्री ना बन जाय अतः वह उनके पैर पखारने के बाद ही नाव में बैठाने की शर्त रखा था।"
"हाँ बेटा, रामायण में लिखा तो यही है। क्योंकि भगवान राम की चरण रज़ से एक पत्थर की शिला स्त्री बन गयी थी।"
"क्या सचमुच ऐसा संभव हुआ था?"
"हुआ तो ऐसा ही था मगर वह तो एक श्राप के कारण हुआ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 6, 2019 at 11:30am — 14 Comments
पागल मन की मर्ज़ियाँ, नैनों के उत्पात।
स्पर्श करें गुस्ताखियाँ, सपना लगती रात।१ ।
ये आँखों की सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।
अधरों की शैतानियाँ ,करें उजागर गाल।२ ।
यौवन रुत में जब करें , नैन हृदय पर वार।
घूंघट पट में लाज के, शरमाता शृंगार।३ ।
नैन करें जब नैन से, अंतर्मन की बात।
दो पल में सदियाँ मिटें ,रात लगे सौग़ात।४ ।
बंजारे सा मन हुआ, बंजारी सी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 5, 2019 at 3:42pm — 6 Comments
रक्षा करते देश की,दे कर अपनी जान।
वीर जवानों का करो,दिल से तुम सम्मान।।
बाहर से उजले दिखें, मन में भरे विकार।
ऐसे लोगों पर कभी,करना न ऐतबार।।
ये माना मैं जी रहा,तेरे जाने बाद।
लेकिन मुझको हर समय,तेरी आती याद।।
जीवन के पथ पर तुम्हें,छाँव मिले या धूप।
हर पल आगे ही बढ़ो,सुख दुख में सम रूप।।
मदिरा बहुत बुरी बला,किसने की ईजाद।
इसके कारण हो रहे,कितने घर बरबाद।।
थोड़े से भी हो…
ContinueAdded by surender insan on April 4, 2019 at 2:30pm — 6 Comments
212 212 212 212
ख़ैरमक़दम हमारा हुआ तो हुआ ।
वार फिर. कातिलाना हुआ तो हुआ ।।
फर्क पड़ता कहाँ अब सियासत पे है ।
रिश्वतों पर खुलासा हुआ तो हुआ ।।
ये ज़रुरी था सच की फ़ज़ा के लिए ।
झूठ पर जुल्म ढाना हुआ तो हुआ ।।
आप आये यहाँ तीरगी खो गयी ।
मेरे घर में उजाला हुआ तो हुआ ।।
हिज्र के दौर में हम सँभलते रहे ।
आपके बिन गुजारा हुआ तो हुआ ।।
मुझको मालूम था…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 4, 2019 at 12:46pm — 8 Comments
जब से शहर में चुनाव का बिगूल बज गया
श्वान का भी श्वान से खौफ निकल गया
शोर और सिर्फ शोर मच रहा सुबह शाम
पांच साल बाद नेता को पडा जनता से काम
श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on April 4, 2019 at 11:00am — 4 Comments
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