For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लो आ गईं छुट्टियां! (संस्मरण) :

लो फिर से गर्मियों की छुट्टियां आ गईं। दो महीने पहले से परिवारजन और बच्चे इन छुट्टियों के सही व नये इस्तेमाल के बारे में अपनी-अपनी राय दे रहे थे। बच्चों की योजनाओं पर बड़ों की व्यस्तताओं और योजनाओं के कारण बच्चों के मन के फैसले नहीं हो पा रहे थे। आम चुनावों का भी माहौल चल रहा था। किसी के मम्मी-पापा किसी ज़िम्मेदारी में फंसे थे, तो किसी के किसी और काम में। बहरहाल इन छुट्टियों के एक-एक दिन का सही इस्तेमाल होना बहुत ज़रूरी था।

मुझे फुरसत देख घर के और पड़ोस के बच्चों ने मुझे यह ज़िम्मेदारी सौंपी, सो मैं हर रोज़ उन्हें शहर के किसी ख़ास स्थान पर एक-दो घंटों के लिए ले जाने लगा अपनी-अपनी साइकिलों से।

ज़िला पुस्तकालय, श्रीमंत सिंधिया छत्री, भदैया कुंड, नेशनल पार्क के बाद शहर के नज़दीक़ के बढ़िया पार्कों की बारी आ गई थी। अब हम सब शहर के बीचों-बीच स्थित वीर सावरकर पार्क पर पहुंचे।

शाम का समय था। बढ़िया मौसम था। सब बच्चों ने पहले तो अपनी रुचि के अनुसार झूलों का, स्केटिंग का, फिसल-पट्टियों और कुछ खेलों आदि का भरपूर आनंद लिया। मैंने सबके फोटो लिए और वीडियोज़ भी। उनको प्रसन्न देख कर मुझे जो सुख और आनंद मिल रहा था, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

अब हम सब पार्क में एक बहुत बड़े और घने बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठे हुए थे। सब ने अपने-अपने टिफिन और पानी की बोतलें निकालीं। योजना अनुसार हर बार की तरह घर पर ही बनाई गई भिन्न-भिन्न प्रकार खाने-पीने की चीज़ें और दोना-पत्तल या काग़ज़ की प्लेटें चम्मचों आदि सहित लेकर आये थे। सबने साझा करते हुए इसका भी भरपूर आनंद लिया। सब कह रहे थे कि दादा-दादी, नाना-नानी या मम्मी वग़ैरह भी आतीं, तो और अधिक मज़ा आता। लेकिन उनको साइकल कैसे चलवाते। मैंने तो इन छुट्टियों में सब बच्चों को ख़ूब साइकल चलवाने का पक्का इरादा कर लिया था न। साल भर न के बराबर ही साइकल चला पाते हैं वे। रविवार का दिन कॉलोनी में ही खेलकूंद में निकल जाता है।

बच्चों को थोड़ी सी आज़ादी और प्राइवेसी देने के इरादे से मैं चबूतरे के दूसरी तरफ़ बैठ गया। लेकिन मेरा स्मार्ट मोबाइल फ़ोन अपना काम करता रहा। रिकॉर्डिंग चालू थी।

"मैं तो अब कोई हॉबी क्लास ज्वाइन कर लूंगा! ड्राइंग या डांस सीखूंगा या गिटार बजाना!" तनुज बोला।

"कुछ नहीं होता इतने कम दिनों में! फीस बहुत ज़्यादा रहती है और दिल भी नहीं भर पाता!" सुबोध ने अपना पिछला अनुभव बताते हुए कहा।

"पिछले साल तो मैंने एक महीने में कैलीग्राफ़ी इतनी बढ़िया सीख ली थी, कि टीचर्स भी मेरी तारीफ़ करते हैं!" शबनम ने उन सब बच्चों को बड़े गर्व से बताया।

"मेरे मम्मी-पापा तो हर साल मुझे इंग्लिश ग्रामर और स्पोकन-इंग्लिश की कोचिंग में भेज देते हैं इन छुट्टियों में!" समर्थ ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।

मैं दूर से ही सबकी बातें सुन रहा था। बच्चों की भी अपनी इच्छायें या महत्वाकांक्षायें होती हैं। परिवारजन की मर्ज़ियों और परिस्थितियों से उनके मन की बात उनके मन में ही रह जाती है। इस तरह की टोली में वे किस तरह अपनी बात कह डालते हैं, यह देखकर मैं भी गहरे सोच में डूब गया था। रिकॉर्डिंग चालू थी। घर जाकर बड़ों को सुनाऊंगा इन बच्चों के मन की बातें। यह सोचते हुए उनकी बातें कान लगाकर सुनता रहा, लेकिन उनकी प्राइवेसी में कोई दख़ल नहीं किया।

"मेरे पापा कहते हैं कि तुम पढ़ाई-लिखाई में बहुत कमज़ोर चल रहे हो! अभी से हिंदी-अंग्रेज़ी टाइपिंग सीखने लगो। बारहवीं कक्षा के बाद स्टेनोग्राफ़ी सिखवा देंगे! कोई न कोई नौकरी मिल ही जायेगी!" सजल ने दुखी स्वर में कहा।

"अपने पापा से कहना कि टाइपिंग तो मोबाइल और कंप्यूटर के की-बोर्ड से घर पर ही सीखी जा सकती है। मैंने तो ख़ुद ही गूगल इंडिक की-बोर्ड पर हिंदी और अंग्रेज़ी की टाइपिंग सीख ली है। दादा जी की कविताएं स्पीड से टाइप कर देता हूं!" असलम ने अपनी उंगलियों को नचाते हुए कहा।

"हम तो मोबाइल में बोल कर ही वॉइस वाले एप से टाइपिंग कर लेते हैं!" सुबोध ने बताया।

"अरे, वह एप तो दिव्यांगों और कमज़ोर नज़र वाले बूढ़े लोगों के लिए होता है, तुम क्यों ऐसा शॉर्ट-कट अपनाते हो अभी से!" शबनम ने सुबोध को समझाने की कोशिश की।

"ऐसा कुछ नहीं है! सब एप सब का टाइम बचाने और मदद करने के लिए होते हैं!" समर्थ ने अपनी राय दी।

"देखो दोस्तों, हमारे अंकल हमको इतना समय देकर हमारी इन छुट्टियों का इतना बढ़िया इस्तेमाल करवा रहे हैं, यह क्या कम है! हमारे मम्मी-पापा के पास जब समय होगा, तब वे हमें कहीं न कहीं घुमाने तो ले जायेंगे ही न!" तनुज ने सबको तसल्ली देने की कोशिश की।

अब शाम ढलने लगी थी। मैं उन बच्चों के नज़दीक़ आ गया और घर लौटने की तैयारी करने की कहकर उनका सामान पैक करने में उनकी मदद करने लगा।

"कल हम शहर के एक नये पार्क में चलेंगे और वहां अंत्याक्षरी खेलेंगे और साथ ही वहां के योग-साधना केंद्र और हास्य-क्लब की गतिविधियों से कुछ सीखेंगे।" मैंने उनसे कहा। सब बच्चे ख़ुश होकर एक-दूसरे से हाथ मिलाकर थम्स-अप करने लगे। फ़िर अपनी-अपनी साइकिलों से हम सब अपने-अपने घर पहुंच गए। आज की छुट्टी का भी सही इस्तेमाल होने पर हम सब काफ़ी संतुष्ट थे।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 416

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 19, 2019 at 1:39pm

आदाब। मेरे इस संस्मरण लेखन अभ्यास का अवलोकन कर टिप्पणियों द्वारा मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब और आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।

Comment by babitagupta on April 8, 2019 at 11:06pm

बच्चों में एक नई सोच के साथ संदेशात्मक व प्रेरणात्मक बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 8, 2019 at 12:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आदाब।बढ़िया एवम प्रेरणादायक संस्मरण।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service