For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"हम तो आज भी पल्लू सरक जाए तो तुरंत ठीक कर लेते हैं. लेकिन ये आजकल की बहुरिया, मजाल है कि पल्लू सर पर टिके", रुक्मणि को नई बहू का कपड़ा पहनना बिलकुल नहीं भा रहा था और वह रवि के सामने भी कहने से नहीं चूकीं.
रवि ने पलटकर उनकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए. वह भी नई बहू को पिछले दो दिन से बमुश्किल साड़ी सँभालते देख रहे थे.
"अब हर आदमी तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकता ना राजेश की अम्मा, तुमको पता तो है कि बहू शहर में नौकरी करती है और इसके नीचे कई लोग काम भी करते हैं", रवि ने बात सँभालने की कोशिश की.
"तो, इसका मतलब यह तो नहीं है कि वह हमारी इज्जत भी नहीं करेगी", रुक्मणि आज चुप नहीं होने वाली थी.
"दो दिन से वह हम लोगों का ख्याल रखने की पूरी कोशिश कर रही है. राजेश भी नहीं है वर्ना उसकी थोड़ी मदद कर देता. और जहाँ तक सवाल है इज्जत का, वह उसकी निगाहों में देखने की कोशिश करो".
"आप ही देखो उसकी निगाहें, मैं तो गंवार ठहरी, मुझे क्या पता ये सब", रुक्मणि उठकर जाने लगी.
"मुझे पता है कि असली वजह राजेश का प्रेम विवाह है और तुम्हें दहेज़ नहीं मिलने का गुस्सा है. लेकिन इसमें इस बेचारी लड़की का क्या कसूर", रवि ने रुक्मणि का हाथ पकड़कर बैठा लिया. उनको एहसास हो गया था कि बहू के कानों में ये बात चली गयी है.
अभी रुक्मणि फिर कुछ कहती कि बहू ट्रे में चाय लेकर आ गयी. चाय रखने में पल्लू सर से वापस सरक गया और रुक्मणि की भौहें फिर तन गयीं.
"मांजी, मुझे आज आपसे पल्लू ठीक रखना सीखना है. मेरी माँ रही होती तो उसने मुझे जरूर सिखाया होता. अब तो आप ही हमारी माँ हैं, मुझे बताईये प्लीज", बहू वहीँ सामने बैठ गयी.
रुक्मणि तो जैसे स्तब्ध रह गयी, ये क्या सुन रही है वह. रवि भी बहू की इस बात से एकदम खिल उठे.
"तू तो ऐसे ही इतनी अच्छी लगती है, अरे माँ के सामने बेटी कहीं पल्लू लेती है", कहकर रुक्मणि ने बहू को गले से लगा लिया. मन में बसा सारा गुबार आंसुओं के रास्ते बह निकला. ट्रे में रखी रुक्मणि की चाय उसी तरह पड़ी थी लेकिन रवि के प्याले की चाय कुछ नमकीन हो गयी.


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on May 29, 2019 at 12:56pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on May 29, 2019 at 12:55pm

बहुत बहुत आभार आ बृजेश कुमार 'ब्रज'साहब

Comment by Samar kabeer on April 14, 2019 at 4:44pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 13, 2019 at 6:23pm

बहुत ही खूबसूरत कथा है आदरणीय...

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:59am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ सुशील सरना जी

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:59am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:59am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on April 11, 2019 at 11:58am

इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ बबिता गुप्ता जी

Comment by Sushil Sarna on April 10, 2019 at 6:35pm

आदरणीय विनय जी .... कल और आज के बीच उभरती विचारों की खाई को पाटती इस भावपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 10, 2019 at 3:58pm

आदरणीय विनय कुमार जी, सकारात्मक सन्देश देती हुए बहुत ही सूंदर रचना। प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service