डटे रहो तुम अपने पथ पर,
इक दिन दुनिया ये डोलेगी ।
जल,थल और आकाश में जनता,
तेरी ही बोली बोलेगी ।।
कभी डरो ना असफलता से,
स्वाद तुम्हें जो जीत का चखना ।
व्यंग्य करें कितने ही…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on October 13, 2019 at 6:19pm — 1 Comment
1222 1222 122
जमाने भर की बातें सोचता हूँ
मगर मैं खुद में अब कितना बचा हूँ
सुहानी भोर किस्मत में नहीं है
भला मैं रात भर क्यों जागता हूँ
मुहब्बत एक हरजाई का घर है
मैं उस घर से निकाला जा चुका हूँ
तरफदारी से तेरी क्या है हासिल
मैं अपनों में अकेला पड़ गया हूँ
गुजारी जिंदगी सारी जहाँ पर
मैं अब उस शहर में बिल्कुल नया हूँ
तुझे आवाज देने का सबब है
मैं अब तन्हाई से डरने लगा…
Added by मनोज अहसास on October 13, 2019 at 4:28pm — 4 Comments
किस्से हैं , कहानी है
दुनिया अनजानी है
कोई कब आएगा ?
कोई कब जाएगा ?
कौन जानता भला ?
केवल रवानी है
किस्से हैं - -
अभी तो यहीं था
कैसे चला गया ?
बार-बार दोहराती
बात पुरानी है
किस्से हैं - -
ख़ाली ही आया धा
ख़ाली विदा हुआ
बार -बार पाने की
ज़िद , दीवानी है
किस्से हैं - -
निर्मोही देह में
मोह पोसा गया
पाया न मनभाया
नित- नित कोसा गया
फिर…
ContinueAdded by Usha Awasthi on October 12, 2019 at 9:00pm — 2 Comments
2212 122 2212 122
थम ही नहीं रही है,रफ़्तार ज़िन्दगी में ।
हर दर्द की दवा है,बस प्यार ज़िन्दगी में ।।
बैठो न चुप दबाके, तुम राज़ सारे दिल के ।
जज़्बात का ज़रूरी,इज़हार ज़िन्दगी में ।।
माशूक़ से कलह का,यूं ग़म न कीजियेगा…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on October 12, 2019 at 9:00pm — 2 Comments
माँ .....
सुनाता हूँ
स्वयं को
मैं तेरी ही लोरी माँ
पर
नींद नहीं आती
गुनगुनाता हूँ
तुझको
मैं आठों पहर
पर
तू नहीं आती
पहले तो तू
बिन कहे समझ जाती थी
अपने लाल की बात
अब तुझे क्यूँ
मेरी तड़प
नज़र नहीं आती
मेरे एक-एक आँसू पर
कभी
तेरी जान निकल जाती थी माँ
अब क्यूँ अपने पल्लू से
पोँछने मेरे आँसू
तू
तस्वीर से
निकल नहीं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 12, 2019 at 8:27pm — 4 Comments
(१२२२ १२२२ १२२ )
.
नकेलें ग़म के मैं नथुनों में डालूँ
ख़ुदाया मैं भी कुछ खुशियाँ मना लूँ
**
मुझे भी तो अता कर चन्द मौक़े
ख़ुदा मैं भी तो जीवन का मज़ा लूँ
**
मुहब्बत में तिरी है जीत पक्की
भला फिर किसलिए सिक्का उछालूँ
**
हवा जब खुशबुएँ बिखरा रही है
ख़लल क्यों काम में बेकार डालूँ
**
पुराने दोस्त क्या कम हैं किसी से…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 12, 2019 at 10:30am — 5 Comments
वो ईश तो मौन है ...
नैनों के यथार्थ को
शब्दों के भावार्थ को
श्वास श्वास स्वार्थ को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
रिश्तों संग परिवार को
छोरहीन संसार को
नील गगन शृंगार को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
अदृश्य जीवन डोर को
सांझ रैन और भोर को
जीवन के हर छोर को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
कौन चलाता पल पल को
कौन बरसाता बादल को
नील व्योम के आँचल को…
Added by Sushil Sarna on October 11, 2019 at 6:23pm — 2 Comments
फूलो की
वादियों से गुजरते हुए
तमाम खिली रौनकों के बीच
हठात वह
मन को खींच लेता है
एक अदना सा फूल
जिसके आगे
हो जाते है
आसमान के सितारे फीके
नीरस लगते है
प्रकृति के सारे उपादान
बेचैन मन को
तब निखिल ब्रह्मांड में
यदि कुछ भाता है
तो सिर्फ वही
अदना सा फूल
बन जाता है जब
अपनी सहजता और सादगी में
साधारण सा वह
अपने ही…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 11, 2019 at 2:05pm — 3 Comments
राहों की इन मुश्किलों से,इंसा तू न डर ।
पानी है तुझे मंजिल,हिम्मत तो ज़रा कर ।।
कि जाना है तुझे अभी,फ़लक से भी आगे ।
दुनिया ये सारी फिर,पीछे तेरे भागे ।।
छोटी-छोटी हारों से,ना खुद को दुखी कर ।
पानी है…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on October 10, 2019 at 10:30pm — 2 Comments
जाते हो बाजार पिया तो
दलिया ले आना
आलू, प्याज, टमाटर
थोड़ी धनिया ले आना
आग लगी है सब्जी में
फिर भी किसान भूखा
बेच दलालों को सब
खुद…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 10, 2019 at 10:05pm — 11 Comments
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
निगाह में उदासियां छुपा हुआ अज़ाब था
डरावनी सी रात थी बड़ा अजीब ख्वाब था
दिखी नहीं कली कहीं ख़ुशी से कोई झूमती
लबों लबों कराह और आँख आँख आब था
चमन में छा रही थीं बेशुमार बदहवासियां
न टेसुओं पे नूर था न सुर्खरू गुलाब था
मिला न साथ दे सका जो चाहिए मिला नहीं
थी चार दिन की ज़िंदगानी दर्द बेहिसाब था
फ़ुज़ूल थे सवाल और चीखना फ़ुज़ूल…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2019 at 12:30pm — 8 Comments
तूफ़ान जलजलों से नहीं आसमाँ-से हम
फ़ितरत से हैं ज़रूर कुछ अब्र-ए-रवाँ से हम
**
कितना लिए है बोझ ज़मीँ इस जहान का
मुमकिन है क्या कभी कि बनें धरती माँ-से हम
**
दिल तोड़ के वो कह रहे हैं सब्र कीजिए
सब्र-ओ-क़रार लाएँ तो लाएँ कहाँ से हम
**
ये तय नहीं कि प्यार की हासिल हों मंज़िलें
इतना है तय कि जाएँगे अब अपनी जाँ से हम
**
कुछ इस तरह से उनकी हुईं मेहरबानियाँ
खाते…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 8, 2019 at 10:30pm — 6 Comments
रिक्तता :.....
बहुत धीरे धीरे जलती है
अग्नि चूल्हे की
पहले धुआँ
फिर अग्नि का चरम
फिर ढलान का धुआँ
फिर अंत
फिर नहीं जलती
कभी बुझकर
राख से अग्नि
साकार
शून्य हो जाता है
शून्य अदृश्य हो जाता है
बस रह जाती है
रिक्तता
जो कभी पूर्ण थी
धुआँ होने से पहले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 9:26pm — 8 Comments
छंद मुक्त कविता : रावण दहन
मैं रूप बदल कर बैठा हूँ ।
स्वरूप बदल कर बैठा हूँ ।
मैं आज का रावण हूँ मितरों,
जन के मन में छुप बैठा हूँ ।।
मुझको जितना भी जलाओगे ।
हर घर में उतना पाओगे ।
गर मरना भी चाहूँ मितरों,
तुम राम कहाँ से लाओगे ।।
कन्या को देवी सा मान दिया ।
नारी को माँ का सम्मान दिया ।
इन बातों का नही अर्थ मितरों,
जब गर्भ में कन्या का प्राण लिया ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 8, 2019 at 3:28pm — 6 Comments
विजयदशमी पर कुछ दोहे :
राम शरों ने पाप को, किया धरा से दूर।
दम्भी रावण का हुआ, दम्भ अंत में चूर।1।
हाथ जोड़ वंदन करें , कहाँ राम हैं आप।
प्रतिपल बढ़ते जा रहे ,हर सत्या पर पाप।2।
छद्म वेश में घूमते, जगह जगह लंकेश।
नारी को वो छल रहे, धर कर मुनि का वेश।3।
राम नाम के दीप से, हो पापों का अंत।
मन से रावण दूर हो ,उपजे मन में कंत।4।
जीवन में लंकेश सा, जो भी करता काम।
ऐसे पापी को कभी , क्षमा न करते…
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 11:48am — 12 Comments
"ख़ामोश!" एक बलात्कार पीड़िता और सरेआम उसकी हत्या करने वाले युवकों के बाद बारी-बारी से माइक पर उसने मशहूर नेताओं-अभिनेताओं और पुलिसकर्मियों की मिमिक्री करते हुए कहा, "कितने आदमी थे!"
"साहब, ती..ई...तीन थे!"
"वे तीन थे ... और ये सब तीस-चालीस...ऐं! लानत है... तुम लोगों की ख़ामोशी पर!"
"साला... एक मच्छर इस देश के आदमी को हिजड़ा बना देता है!"
"साहब... मच्छर! .. मच्छर बोले तो... पैसा, डर, पुलिस, नेता, क़ानून या स्वार्थ!..है न!"
"कोई…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2019 at 8:30am — 4 Comments
जैसे ही छोटू के रोने की आवाज मालती के कानों में पड़ी, वह उठकर भागी. दूसरे कमरे के उसके बिस्तर पर लेटे छोटू की नींद खुल गयी थी, शायद उसने नैप्पी भी गीला कर दिया था.
"अले ले, जग गया मेरा राजा बेटा, भुक्खू लगी है क्या?, मालती ने उसे उठाकर प्यार करना शुरू किया और उसे लाड़ करती हुई ड्राइंग रूम में आ गयी.
ड्राइंग रूम में एक कोने में वह बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था, मालती और छोटू के मिले जुले स्वर से उसकी तन्द्रा भंग हुई. उसके चेहरे पर भी उनको देखकर मुस्कराहट आ गयी. वह उठकर छोटू को लेने ही जा रहा…
Added by विनय कुमार on October 7, 2019 at 6:42pm — 8 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
सुख उसका दुख उसका है तो फिर काहे का रोना है
दौलत उसकी शोहरत उसकी क्या पाना क्या खोना है //
चाँद-सितारे उससे रोशन फूल में उससे खुशबू है
ज़र्रे-ज़र्रे में वो शामिल वो चांदी वो सोना है //
खुशिओं के वो मोती भर दे या ग़म की बरसात करे
उसकी हुकूमत है हर सू वो जो चाहे सो होना है //
सारी दुनिया का वो मालिक हर शय उसके क़ब्ज़े में
उसके आगे सब कुछ फीका क्या जादू क्या टोना है…
Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:30pm — 10 Comments
दादाजी का वोट - लघुकथा -
विवेक विलायत से इंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा गोल्ड मैडल सहित पास करके लौटा था। उसके पास कई विदेशी और भारतीय कम्पनियों के ऑफर थे।
आज परिवार के सभी सदस्य इसी मुद्दे पर अंतिम फैसला करने के लिये बड़े हॉल में एकत्रित हुए थे। सभी की रॉय भिन्न भिन्न थी। लंबी बहस चली लेकिन कोई अंतिम हल नहीं निकला।
तब दादाजी ने सुझाव दिया कि सब अपनी अपनी सलाह लिख कर पर्ची डालें। सभी पर्चियों को खोल कर बहुमत से फैसला होगा।वह सबको मान्य होगा।सभी इससे सहमत हो गये।
सभी की…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 5, 2019 at 1:32pm — 10 Comments
मैंने केसर-केसर मन से रची रंगोली,
मैंने रेशम-रेशम बंधनवार सजाए,
कुछ महके कुछ मीठे से पकवान बना लूँ-
तुम आओ तो उत्सव जैसा तुम्हे मना लूँ...
कंगूरों तक रुकी धूप से कर मनुहारें
हर कोना घर-आँगन का मैं रौशन कर लूँ,
माँग हवाओं से लाऊँ खुशबू के झौंके
सावन की आकुलता इन आँखों में भर लूँ,
नम कर लूँ मैं दिल का रूठा-रूठा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 5, 2019 at 1:10am — 5 Comments
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