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थम ही नहीं रही है,रफ़्तार ज़िन्दगी में ।
हर दर्द की दवा है,बस प्यार ज़िन्दगी में ।।
बैठो न चुप दबाके, तुम राज़ सारे दिल के ।
जज़्बात का ज़रूरी,इज़हार ज़िन्दगी में ।।
माशूक़ से कलह का,यूं ग़म न कीजियेगा ।
पनपाती* है मुहब्बत,तक़रार ज़िन्दगी में ।।
इक़रार हर रज़ा का,है लाज़मी नहीं अब ।
है वक़्त पे जरूरी,इनकार ज़िन्दगी में ।।
'सागर' ख़री मुहब्बत,करके दिखो किसी से ।
हरदम रहे खुशी की,भरमार ज़िन्दगी में ।।
- प्रशांत दीक्षित 'सागर'
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद Samar kabeer जी सुझावों के लिए ।
मुझे ऐसे ही मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता है
जनाब प्रशांत दीक्षित 'सागर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
ज़िन्दगी में ।
'हर मर्ज़ की दवा है,बस प्यार ज़िन्दगी में'
इस मिसरे में 'मर्ज़' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मरज़",इसकी जगह "दर्द" ले सकते हैं ।
'पनपाति है मुहब्बत,तक़रार ज़िन्दगी में'
इस मिसरे में 'पनपाति' शब्द आपने शायद वज़्न
पूरा करने के लिए लिया है,ये शब्द शुद्ध नहीं है,देखियेगा ।
'इक़रार हर रज़ा का,है लाज़मी नहीं'
ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।
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