नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ
अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।
**
रात छत पे जब निकल आता है तू
इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ। **
ये जो तन से मेरे आती है महक़..
मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।
**
ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..
मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।
**
सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप
मैं सदा को तेरी…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 19, 2021 at 7:00pm — 26 Comments
२१२२ २१२२ २१२
जिस्म चाँदी का हुआ अब क्या करें
उम्र निकली बेवफा अब क्या करें
इश्क़ पहला जो हुआ वो इश्क़ था
इश्क़ तो है गुमशुदा अब क्या करें
याद की अल्बम पलटकर देख ली
दिन हुए वो लापता अब क्या करें
किस तरह बच पाएगी अस्मत यहाँ
हर तरफ है खौफ सा अब क्या करें
उम्र की सारी तहें भी खोल दीं
खत मिले कुछ बेपता अब क्या करें
गुमनाम पिथौरगढ़ी
स्वरचित व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on February 19, 2021 at 6:36pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
बेड़ियाँ टूटी हैं बोलो कब स्वयम् ही
मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।
*
बाँधकर उत्साह पाँवों में चलो बस
पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।
*
पहरूये ही सो गये हों जब चमन के
है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।
*
अब न आयेगा यहाँ अवतार हमको
करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।
*
कल जो सेवक हैं कहा करते थे देखो
हो गये है आज वो साहब स्वयम्…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
ज़िन्दगी में सिर्फ़ ग़म हैं और तुम हो
आज फिर से आँखें नम हैं और तुम हो
लग रहा है अब मिलन संभव नहीं है
वक़्त से लाचार हम हैं और तुम हो
रात चुप, है चाँद तन्हा, साँस मद्धम
इश्क़ में लाखों सितम हैं और तुम हो
दिल की बस्ती में अकेला तो नहीं हूँ
नींद से बोझिल क़दम हैं और तुम हो
क्या बताऊँ किसलिये है 'ब्रज' परेशां
वस्ल के आसार कम हैं और तुम हो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 9:30pm — 11 Comments
बह्र - मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
अरकान - 122 122 122 122
किसी को मुकम्मल जहाँ देने वाले
किसी को नया आसमां देने वाले
**
कि बहती हवा…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 17, 2021 at 4:30am — 3 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2021 at 10:00pm — 6 Comments
बह्र ~ "बह्र-ए- वाफिर मुरब्बा सालिम"
12112 12112 12112 12112
न चैन पाये है की न सुकूँ .....................ही पाये कोई
ऐसे ले के दर्द ए दिल है जिये.................ही जाये कोई
के चोट जो खाये अपनो से ही ...............अगर
तो ले के भी दिल को अपने कहाँ.............ही जाये कोई
अज़ीब है हाल इश्क में भी.....................सनम है न दवा दिल…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 16, 2021 at 10:00am — No Comments
झुक आई है एक और शाम
ग्रभ में गहरी-भूरी स्तब्धता लिए
कुछ फ़ासले, कुछ फ़ैसले
लगते थे जो कभी
थे हमारे लिए नहीं
हर किसी और के लिए
खड़े हैं अब वही फ़ासले
वही फ़ैसले
घूर रहे हैं सवाल बने बड़े-बड़े
सवालों के उत्तर की प्रत्याशा
ले आती एक और गंभीर शाम
और फिर एक और ...
मंज़िल तो लगती ही थी हमेशा
पकड़ के बाहर, पहुँच से दूर बहुतं
लेकिन उस आखरी शाम
कुछ तुमने कहा, जो मैंने सुना
"मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on February 16, 2021 at 7:00am — 5 Comments
2122 - 1122 - 112
कब से बैठे हैं तेरे दर पे सनम
अब तो हो जाए महरबान करम......1
ग़ैर समझो न हमें यार सुनो
हम तुम्हारे हैं तुम्हारे ही थे हम....... 2
बात चाहे न मेरी मानो, सुनो!
कीलें राहों में उगाओ न सनम....... 3
देके हमको भी अज़ीयत ये सुनो
दर्द तुमको भी तो होगा नहीं कम... 4
हम भी इन्सान हैं समझो तो ज़रा
देखो अच्छे नहीं इतने भी सितम....5
जिस्म से जान जुदा होती…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 15, 2021 at 9:32pm — 5 Comments
122 2122 2122 2122 2
उखाड़ेंगीं भी क्या मिलकर हज़ारों आँधियाँ अपना
पहाड़ों से भी ऊँचा सख़्सियत का है मकां अपना
मिटाकर क्या मिटायेगा कोई नाम-ओ-निशाँ अपना
मुक़ाम ऐसा बनाएंगे ज़मीं पर मेरी जाँ अपना
चला है गर चला है डूबकर मस्ती में कुछ ऐसे
नहीं रोके रुका है फिर किसी से कारवाँ अपना
पहुँचने में जहाँ तक घिस गये हैं पैर लोगों के
वहाँ हम छोड़ आये हैं बनाकर आशियाँ…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 15, 2021 at 3:30pm — 3 Comments
2122 1212 22 (112)
मुझको तू गर मिला नहीं होता
इश्क़ है क्या पता नहीं होता।
**
एक पल को जुदा नहीं होता.
ग़म तेरा बेवफ़ा नहीं होता।
**
रोज इक ख़त मैं लिखता हूँ तुझको
और तेरा 'पता' नहीं होता।
**
दो जहाँ हमने एक कर डाले
दर्द बढ़कर दवा नहीं होता।
**
इश्क़ है गर तो सोचता है क्या?
इश्क़ होता है या नहीं होता।
…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 15, 2021 at 3:00pm — 9 Comments
1212 1122 1212 112/22
पुराने ख़त मेरे अब भी जो सामने होंगे,
तो पढ़के होंठ यकीनन ही कांपते होंगे।
सफर उदास रहा जिनकी आस में अपना,
किसी के साथ वो चुपचाप चल पड़े होंगे।
तुम्हारे होठों को छूकर करार पाएंगे,
इसी ख्याल से मिसरे बहक रहे होंगे।
बिछड़ के उनसे मैं कितना उदास रहता हूँ,
मैं सोचता हूँ वो अक्सर ये सोचते…
Added by मनोज अहसास on February 14, 2021 at 11:07pm — 5 Comments
2122 1212 22/112
यार कब तक डरा करे कोई
मौत का सामना करे कोई (1)
मैं तो उनके क़रीब रहता हूँ
दूर मुझसे रहा करे कोई (2)
मुफ़्त में गर किसी को देना हो
मशविर: दे दिया करे कोई (3)
मयकदे से बताओ ऐ यारो
दूर कब तक रहा करे कोई (4)
क्या ज़मींदोज़ करके मानेगा
और कितना दबा करे कोई (5)
वक्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख़्म जितने दिया करे कोई (6)
यार "सालिक" की अब ये ख़्वाहिश…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on February 14, 2021 at 10:30pm — 8 Comments
21 21 21 21 2
एक और दास्तां सुनो
एक और खूँ चकां हुई
एक और दर्द बड़ गया
एक और राज़दाँ हुई
एक और दाग लग गया
एक और जाँ निहाँ हुई
एक और रूह जम गई
एक और ख़त्म जाँ हुई
एक और आग लग गई
एक और लौ तवाँ हुई
एक और फूल आ गया
एक और सब्ज माँ हुई
एक और हादसा हुआ
एक और बे अमाँ हुई
एक और बचपना गया
एक और रूह जवाँ हुई
एक और…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on February 14, 2021 at 8:27pm — No Comments
221 2121 1221 212
1
हैं आजकल के तिफ़्ल भी यारो कमाल के
रखते नहीं हैं दिल ज़रा अपना सँभाल के
2
जाने लुग़त कहाँ से ले आए निकाल के
लिक्खे जहाँ प माइने उल्टे विसाल के
3
अपनी शराफ़तों ने ही मजबूर कर दिया
वरना जवाब देते तुम्हारे सवाल के
4
नाज़ुक ज़रूर हूँ नहीं कमज़ोर मैं मगर
अल्फ़ाज़ लाइएगा ज़ुबाँ पर सँभाल के
5
कुछ तो जनाब बोलिए इस बेयक़ीनी पर
कहिए तो हम दिखा दें दिल अपना निकाल…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on February 14, 2021 at 11:20am — 8 Comments
काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments
2122/1212/22
1
साँप बनकर जो डस रहा है मुझे
दोस्त कह कर पुकारता है मुझे
2
उसका लहज़ा बता रहा है मुझे
अब न पहले सा चाहता है मुझे
3
दिल के चैन ओ सुकून की खातिर
ख़ुद को ख़ुद में ही ढूँढना है मुझे
4
हर घड़ी जिसको दिल में रखता हूँ
वो ही अंजान कह रहा है मुझे
5
क्यों पराया हुआ मैं अपनों में
यह सवाल अब भी सालता है मुझे
6
मय-कदे से उठा वो यह कह कर
घर भी 'निर्मल' सँभालना है मुझे
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Rachna Bhatia on February 13, 2021 at 10:46am — 12 Comments
मात शारदे सुन ले विनती,ज्ञान चक्षु तू मेरे खोल
मिट जाए सब कलुष हृदय का,वाणी में अमृत तू घोल
बासंती मौसम आया है,नव-नव पल्लव रहे हैं डोल
विश्व प्रेम का अंकुर फूटे,मंत्र कोई ऐसा तू बोल
ज्ञान की मन में जगे पिपासा,दे ऐसा आशीष अमोल
विद्या धन ही सच्चा धन है,ऐसा न कोइ खजाना अनमोल
आज खड़ी झोली फैलाए,मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल
दो बूंदें दे ज्ञान सागर की,मॉं दे दे ये वर अनमोल
मॉं तू अपना ख़ज़ाना खोल,मात शारदे कुछ तो बोल
तेरी माँ अब…
ContinueAdded by Veena Gupta on February 13, 2021 at 1:21am — No Comments
यह दुनिया है, या जंगल
आजकल पेशोपेश में हूँ,
इन्सान और जानवर का
भेद मिटता जा रहा है
मौका पाते ही इन्सान
हैवान बन जाता है
अकेले किसी अबला को
कही बेसहारा पाकर
कुत्तों सा टूट पड़ता है,
नोच डालता है अस्मत
किसी बेवा की, किसी कुंवारी की
परम्परा की बेड़िया काटकर शैतान
उजालों के अन्तर्ध्यान होने पर
बोतल से जिन्न निकलकर
विराट राक्षस होकर सड़क पर
आ जाता है,
मानवों का भक्षण करने
सड़क पर आ जाता…
Added by Chetan Prakash on February 12, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
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