For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- तिफ़्ल कमाल के

221 2121 1221 212      

1

हैं आजकल के तिफ़्ल भी यारो कमाल के

रखते नहीं हैं दिल ज़रा अपना सँभाल के

2

जाने लुग़त कहाँ से ले आए निकाल के

लिक्खे जहाँ प माइने उल्टे विसाल के

3

अपनी शराफ़तों ने ही मजबूर कर दिया

वरना जवाब देते तुम्हारे सवाल के

4

नाज़ुक ज़रूर हूँ नहीं कमज़ोर मैं मगर

अल्फ़ाज़ लाइएगा ज़ुबाँ पर सँभाल के

5

कुछ तो जनाब बोलिए इस बेयक़ीनी पर

कहिए तो हम दिखा दें दिल अपना निकाल के

6

शिकवे शिक़ायतों की कहानी है ज़िन्दगी

कुछ पल ख़ुशी के बाक़ी हैं 'निर्मल' बवाल के

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on February 19, 2021 at 12:00am

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी नमस्कार।जी सहीह कहा आपने ।सर् की इस्लाह सच में बेमिसाल होती है।

ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए आभार।

Comment by Rachna Bhatia on February 18, 2021 at 11:57pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर्,इस्लाह देने के लिए बेहद शुक्रिय: । सर् 'ले' के लिए आगे से ध्यान रखूँगी। सभी सुधार फेयर में कर लेती हूँ । मक़्ता सहीह करके दिखाती हूँ। सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 10:06pm

बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीया। बधाई...आदरणीय समर जी की इस्लाह हमेशा की तरह गौर करने लायक है।सादर

Comment by Samar kabeer on February 18, 2021 at 7:40pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'जाने लुग़त कहाँ से ले आए निकाल के

लिक्खे जहाँ प माइने उल्टे विसाल के'

इस शैर के ऊला में 'ले' शब्द को 1 पर लेना उचित नहीं,पहले भी बताया जा चुका है,और सानी में 'माइने' कोई शब्द  नहीं होता,ग़ौर करें,इस 

शैर को यूँ कह सकती हैं:-

'जाने लुग़त कहाँ से वो लाये निकाल के

मा'ना लिखे हैं उल्टे ही जिसमें विसाल के'

'अपनी शराफ़तों ने ही मजबूर कर दिया'

इस मिसरे को यूँ कहें:-

'मजबूर हमको अपनी शराफ़त ने कर दिया'

'शिकवे शिक़ायतों की कहानी है ज़िन्दगी

कुछ पल ख़ुशी के बाक़ी हैं 'निर्मल' बवाल के'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,ग़ौर करें ।

Comment by Rachna Bhatia on February 18, 2021 at 4:40pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। 

Comment by Rachna Bhatia on February 18, 2021 at 4:39pm

आदरणीय आज़ी तमाम जी नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आभार।

Comment by Aazi Tamaam on February 15, 2021 at 6:33pm

सादर प्रणाम गुरु जी

जी गुरु जी क्षमा करें जल्दाबाजी में ऐसा हो जाता है आगे से ऐसा नहीं होगा

शुक्रिया बात सीधे सीधे कहने के लिये

बेहद ही क्षमा प्रार्थी हूँ 

Comment by Samar kabeer on February 15, 2021 at 6:17pm

जनाब आज़ी जी, ओबीओ की परिपाटी है कि जिसको भी टिप्पणी करें उसे आदरणीय,जनाब वग़ैरह से सम्बोधित करें,दूसरी बात देवनागरी के इलावा अंग्रेज़ी भाषा और रोमन लिपि का प्रयोग न करें ।

Comment by Aazi Tamaam on February 15, 2021 at 2:53am

शिकवे शिकायतों की............ बेहतरीन

बेहद मधुर है

शुक्रिया रचना जी बेहद अच्छी ग़ज़ल हुई है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service