2122 - 1122 - 112
कब से बैठे हैं तेरे दर पे सनम
अब तो हो जाए महरबान करम......1
ग़ैर समझो न हमें यार सुनो
हम तुम्हारे हैं तुम्हारे ही थे हम....... 2
बात चाहे न मेरी मानो, सुनो!
कीलें राहों में उगाओ न सनम....... 3
देके हमको भी अज़ीयत ये सुनो
दर्द तुमको भी तो होगा नहीं कम... 4
हम भी इन्सान हैं समझो तो ज़रा
देखो अच्छे नहीं इतने भी सितम....5
जिस्म से जान जुदा होती रहे
ग़म नहीं इश्क़ रहे निकले ये दम.....6
तुम ने काँटे जो बिछाए हैं यहाँ
इसको गुलज़ार बना जाएंगे हम..... 7
दर्द जी भर के जो देना है वो दो
हाँ मगर रहने दो थोड़ा सा भरम..... 8
हम पे नाफ़िज़ न करो हुक्म सियाह
हक़ जो माँगा है वही दो न! परम!... 9
हमने कब तुम से जहाँ माँग लिया
हठ जो कर बैठे हैं कर दो न करम.10
कब तलक तुमको मनाएंगे 'अमीर'
तुम न मानोगे तो होंगे ख़फ़ा हम....11
''मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपके विशाल हृदय को सादर नमन करता हूँ, आदरणीय।
जनाब कृष मिश्रा साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और तनक़ीद का तह-ए-दिल से शुक्रिया। जनाब मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि मुझे ओ बी ओ के इस अज़ीम मंच पर आप जैसे सच्चे विश्लेषक और आलोचक मिले हैं जो मुझे और मेरे जैसे सीखने वालों को नया और बहतर करने की प्रेरणा देते हैं। मैं कोशिश करूंगा कि आइंदा आपकी अपेक्षानुरूप कुछ रचूं। अपनी नज़्र-ए-इनायत बनाए रखिएगा। सादर।
आ. अमीरुद्दीन अमीर सर इस रचना का कद आपके अनुरूप नहीं हुआ है हालाँकि लयात्मकता और गेयता के हिसाब से रचना में कमी नहीं है कथ्य में वह बात नहीं बनी है न ही नयापन दिख रहा। मैं वह कहने में विश्वास रखता हूँ जो मेरी समझ में कहना चाहिए दिखावे के कमेंट से दूर रहना पसंद करता हूँ आशा है आप मेरी भावना समझेंगें। सादर।
जनाब आज़ी 'तमाम' साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।
सादर प्रणाम जनाब अमीर जी
बेहतरीन ग़ज़ल है
बधाई स्वीकार करें
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online