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Aazi Tamaam
  • Male
  • Bareilly, UP
  • India
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Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"शुक्रिया आ ग़ज़ल पर इस्लाह करने व हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए सादर जी अशआर सुधार करते करते जियादा हो गये हैं मतला बनाने की कोशिश जारी है"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी शुक्रिया आ ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई के लिये सादर"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"शिफ़ा कोई जादू भरी भेज दे न हो गर दुआ क़ुदरती भेज दे भेज दे कई साल से यूँ ही ख़ामोश हूँ लबों पर ज़रा सी हँसी भेज दे चमन में बहुत तीरगी है ख़ुदा नज़र को मिरी रौशनी भेज दे अकेला चला तो भटक जाऊँगा सफ़र तल्ख़ है हमरही भेज दे बहुत ऊब आया है अपनों से…"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल तक आने व नज़र ए करम करने के लिए सादर"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी सहृदय शुक्रिया आ इस्लाह व मार्गदर्शन करने के लिए सादर क्या मतला कुछ ऐसे हो सकता है गौर फरमाइये- "है जिसकी जिगर में कमी भेज दे लबों पर ज़रा सी हँसी भेज दे""
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी शुक्रिया आ ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई के लिए सुधार करने का प्रयास किया था गुणीजनों की इस्लाह का इंतज़ार है सादर"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"आ ग़ज़ल में सुधार करने की कोशिश की है कृपया नज़र ए इनायत फ़रमायें सादर"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"आ ग़ज़ल में सुधार करने की कोशिश की है कृपया नज़र ए इनायत फ़रमायें सादर"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ अच्छी ग़ज़ल हुई लेकिन  " नहीं कोई बख्शीश का समां ख़ुदा " की बह्र समझ नहीं आई"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है गुणीजनों की इस्लाह और निखार देगी सादर"
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ क्या वाडनगर भी सच्चाई का प्रतीक है? "
Oct 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ अच्छी कोशिश है गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी सादर"
Oct 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें क्या साबरमती सच्चाई का प्रतीक है आ? "
Oct 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ ख़ूब ग़ज़ल हुई सादर"
Oct 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ अच्छी ग़ज़ल कही मतला पर गुणीजनों की इस्लाह काबिल ए गौर है सादर"
Oct 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-160
"जी आ अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह काबिल ए गौर है सादर"
Oct 27

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फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना

2122 1212 22

फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना

आज फिर दिल हुआ है दीवाना

यूँ तो हर आँख में नशा लेकिन

उनकी आँखों में पूरा मयखाना

जबसे आये हैं उनको महफ़िल में

भूल बैठे…

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Posted on December 11, 2022 at 9:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल: सुरूर है या शबाब है ये

12112 12112

सुरूर है या शबाब है ये

के जो भी है ला जवाब है ये

फ़क़ीर की है या पीर की है

के चश्म जो आब-ओ-ताब है ये

कज़ा है अगर सरक गया तो

जो चेहरे पे नकाब है ये

अजीब है सफ़ह-ए-ज़िंदगी भी

न पूछो की क्या जनाब है ये

कभी है ख़ुशी तो है कभी ग़म

बस एक ऐसी किताब है ये

हैं अश्क से आज चश्म जो नम

महब्बतों का हिसाब है ये

न जाने कोई है माज़रा क्या

की…

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Posted on May 22, 2022 at 8:00am — 10 Comments

ग़ज़ल: इक ऐसे ग़म से आज मुलाक़ात हो गई

२२१ २१२१ १२२१ २१२

पाकर जिसे हयात हवालात हो गई

इक ऐसे ग़म से आज मुलाक़ात हो गई

कैसे बताएँ आपके बिन कुछ नहीं हैं हम

कैसे बताएँ आपको क्या बात हो गई

अंजान थी जो आँख मिरी जान अश्क़ से

बाद आपके यूँ रोई की बरसात हो गई

इक पल में खुशनुमा हुई इक पल में रहनुमा

फ़िर एक पल में दर्द की सौग़ात हो गई

कैसी है दास्ताँ ये मिरी जान ज़िंदगी

रौशन हुई कहीं तो कहीं रात हो गई

मौलिक व…

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Posted on February 26, 2022 at 11:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल: हर इक दिन इन फ़ज़ाओं में नई अल्बम लगाता है

1222 1222 1222 1222

हर इक दिन इन फ़ज़ाओं में नई अल्बम लगाता है

कोई तो है हरी सी घास पर शबनम लगाता है

कहीं सुनता नहीं महफ़िल में भी अब दर्द ए दिल कोई

किसे आवाज वीराने में तू हमदम लगाता है

अज़ब है वाक़िया या रब अज़ब साकी मिला दिल को

नमक ज़ख़्मों पे दिल के किस क़दर पैहम लगाता है

धुआँ होकर निकलती हैं ये साँसें दिल के अंदर से

किसी की याद में दिल दम व दम फिर दम लगाता…

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Posted on January 15, 2022 at 3:00pm

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At 1:08pm on January 16, 2021, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said…

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन । मेरी गजलें आपको अच्छी लगीं यह हर्ष का विषय है । आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

मंच पर अपनी रचनाओं का आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें और अन्य रचनाकारों का भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करते रहिए ।

At 8:15pm on January 12, 2021, Samar kabeer said…

जनाब आज़ी साहिब,तरही मुशाइर: में शामिल सभी ग़ज़लों पर लाइव ही तफ़सील से गुफ़्तगू होती है, शिर्कत फ़रमाएँ, और कोई उलझन हो तो मुझसे 09753845522 पर बात कर सकते हैं ।

 
 
 

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