For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Aazi Tamaam
  • Male
  • Bareilly, UP
  • India
Share on Facebook MySpace

Aazi Tamaam's Friends

  • Mamta gupta
  • अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
  • Rachna Bhatia
  • शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
  • Krish mishra 'jaan' gorakhpuri
  • Samar kabeer
  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
  • Anita Maurya
  • Saurabh Pandey
 

Aazi Tamaam's Page

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल ; पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई हैये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई हैघूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे मेंकाट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई हैजंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनीख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई हैना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हनआँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई हैशादी का अवसर लाया है ग़म के साथ ख़ुशी आज़ीएक तरफ़ है मिलन की बेला दूजी ओर विदाई है(मौलिक व अप्रकाशित) See More
Oct 16
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बधाई स्वीकार करें आदरणीय अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल मुकम्मल कराने के लिये सादर बदल के ज़ियादा बेहतर हो रहा है आदरणीय बे-क़रारी की इंतिहा भी थी हिज्र में एक ये सज़ा भी थी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"अब देखियेगा आदरणीय  हिज्र में एक ये सज़ा भी थी बे-क़रारी की इंतिहा भी थी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"जी शुक्रिया आदरणीय ज़र्रा नवाज़ी का ग़ज़ल पर"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय इस ज़र्रा नवाज़ी का दूसरा मतला देखियेगा"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का ये देखियेगा हिज्र में एक ये सज़ा भी थी बे-क़रारी की इंतिहा भी थी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का "
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
" शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए करम का दूसरा मतला देखियेगा"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"जी आदरणीय अब देखियेगा हिज्र था हिज्र की सदा भी थी बे-क़रारी में इक ख़ला भी थी सादर 🙏"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"शुक्रिया आदरणीय ग़ज़ल पर नज़र ए क़रम व महत्वपूर्ण इस्लाह करने के लिए वैसे मतला का का भाव ये लिया था नींद की बजह से ख़ुमारी भी थी और बला इसलिए थी क्यों की एक तो रात का समय था उसपे जागना पड़ रहा था"
Sep 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"जी अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय इंसान जी बधाई स्वीकारें मेरे ज़हन में कुछ यूँ आया आपके भी अच्छे हैं हैं 1 ज़िंदगी भी थी दिलरुबा भी थी    इक ग़ज़ल मेरा हौसला भी थी 2 ज़िंदगी ज्यों कोई सज़ा भी थी    मह्रबाँ भी थी और ख़फ़ा भी थी 5 उला…"
Sep 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय चेतन जी गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
Sep 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें आदरणीय नीलेश जी बूढ़ी लगने लगी है अब वर्ना..... बेहतरीन शे'र हुआ"
Sep 27

Profile Information

Gender
Male
City State
Uttar Pradesh
Native Place
CHANDAUSI
Profession
Poet, Lawer, Engineer
About me
Poetic Nature

Aazi Tamaam's Photos

  • Add Photos
  • View All

Aazi Tamaam's Blog

ग़ज़ल ; पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

ये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई है

घूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे में

काट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई है

जंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनी

ख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई है

ना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हन

आँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई है

शादी का अवसर लाया है ग़म के साथ…

Continue

Posted on October 5, 2024 at 10:40am

दोहे : बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास

ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास

इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस

पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास

अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास

रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास

छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास

श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास

रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Posted on August 6, 2024 at 12:00am — 2 Comments

ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

१२१२ ११२२ १२१२ २२

मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

हमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूम

करेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनी

तुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूम

न जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म का

कोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूम

झुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवाने

वफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूम

क़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखो

न हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता…

Continue

Posted on July 14, 2024 at 11:30am — 10 Comments

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२

ग़मज़दा आँखों का पानी

बोलता है बे-ज़बानी

मार ही डालेगी हमको

आज उनकी सरगिरानी

आपकी हर बात वाजिब

और हमारी लंतरानी

जाने किसकी बद्दुआ है

वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी

दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं

बुझ रही है ज़िंदगानी

कौन जाने कब कहाँ से

आये मर्ग-ए-ना-गहानी

ले के फागुन आ गया फिर

फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी

कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…

Continue

Posted on April 1, 2024 at 5:30pm — 6 Comments

Comment Wall (3 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 10:44am on April 9, 2024, Erica Woodward said…

I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.

At 1:08pm on January 16, 2021, लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said…

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन । मेरी गजलें आपको अच्छी लगीं यह हर्ष का विषय है । आपके इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

मंच पर अपनी रचनाओं का आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें और अन्य रचनाकारों का भी अपनी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करते रहिए ।

At 8:15pm on January 12, 2021, Samar kabeer said…

जनाब आज़ी साहिब,तरही मुशाइर: में शामिल सभी ग़ज़लों पर लाइव ही तफ़सील से गुफ़्तगू होती है, शिर्कत फ़रमाएँ, और कोई उलझन हो तो मुझसे 09753845522 पर बात कर सकते हैं ।

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
yesterday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service