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ग़ज़ल: फिर ज़िंदगी से अपनी पहचान हो न जाए

फिर ज़िंदगी से अपनी पहचान हो न जाए

साँसों का आना जाना आसान हो न जाए



अपनी शनावरी पे इतरा न ऐ शनावर

शोहरत का ये समुंदर दालान हो न जाए



इस बार भी मैं दफ़्तर ताख़ीर से गया तो

डर है कि नौकरी का नुक़सान हो न जाए



मज़लूम पे सितम के तुम ती मत चलाओ

अशकों से रेज़ा रेज़ा चट्टान हो न जाए



अपना समझ के जिस की देहलीज़ चढ़ रहा हूँ

यारों कहीं वो हम से अंजान हो न जाए



"सुरख़ाब"उड़ न जाएें यादों के ये कबूतर

दिल का…

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Added by Surkhab Bashar on December 12, 2018 at 11:00am — 1 Comment

"किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें"

 1222 1222 1222


सुकूँ वो उम्र भर पाया नहीं करतें।
बड़ों की बात जो माना नहीं करतें।।

बुजुर्गों की नसीहत ये पुरानी है।
बिना सोचे कभी बोला नहीं करतें।।

सफल होते हमेशा लोग वो ही जो।
किसी की बात सुन बहका नहीं करतें।।

जिन्हें आदत हमेशा जीतने की हो।
वो मैदां छोड़ कर भागा नहीं करतें।।

हमेशा से रहा इक ही उसूल अपना।
किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें।।

मौलिक व अप्रकाशित

Added by surender insan on December 11, 2018 at 4:30pm — 14 Comments

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

अवाक् रह गया, देख जाम को

खड़ा खड़ा मैं सोच रहा

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

ऐसा उपाय कोई खोज रहा ||

  

बस स्टैंड और प्लेटफॉर्म पर

जीवन, लोगों का बीत रहा

देश के सारे एयरपोर्ट पर

ना, दिन रात का भेद रहा

भगदड़ सी इस जिंदगी में

जैसे, इंसान खो सा गया

खड़ा खड़ा मैं सोच रहा

आश्चर्य से सब देख रहा ||

 

 बस भीड़ से भरी पड़ी

रेलें भी सारी लधी पड़ी

मोटरबाइक की झड़ी लगी

और कार रोड़ पर पार्क…

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Added by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)

ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)

(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)

प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l

यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l

बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में

शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l

यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी

रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l

उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी

धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l

रह पाता है कोई सदा कब दुनिया…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 11, 2018 at 11:22am — 9 Comments

छोटी सी प्रेम कहानी ( लघुकथा )

प्रेमी बोला , ' आओ प्यार की कुछ बातें करें .'

' हाँ यह हुई न बात . चलो करो .' प्रेमिका ने सहमति से सिर हिलाया .

' तो फिर रूठो .' प्रेमी ने कहा

" बात तो  प्यार की हुई है , रूठने को क्यों कहा . "  प्रेमिका इठलाई .

" रूठोगी नहीं तो   तो प्यार की बातें करके तुम्हें मनाऊंगा कैसे . "  प्रेमी ने समस्या रखी .

' पर रूठना तो  तो मुझे आता नहीं है .' प्रेमिका इतराई

" तुम दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाओ . मैं जब बुलाऊँ तो मेरी तरफ देखना  मत . "

" ये क्या बात…

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Added by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on December 10, 2018 at 8:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल (छिपा बैठा चितेरा है)

दिखे हरसूँ अँधेरा है

कहाँ जाने सवेरा है

 

नहीं दिखता कहीं रस्ता

कुहासा है घनेरा है

 

हुनर सीखें नए कैसे

गुरु बिन आज चेरा है

 

चुराता जा रहा साँसें

समय है या लुटेरा है

 

बनाता है जो इंसा को

ये जीवन वो ठठेरा है

 

नहीं शिकवा है साँपों से

डसे जाता सपेरा है

 

नहीं घर रास है मुझको

दिलों में ही बसेरा है

 

तेरा क्या और क्या मेरा

चले माया का फेरा…

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Added by अजय गुप्ता 'अजेय on December 10, 2018 at 7:30pm — 5 Comments

जीवन संगिनी

हार हार का टूट चुका जब

तुमसे ही आश बाँधी है

मैं नहीं तो तुम सही

समर्थ जीवन की ठानी है||

 

मजबूर नहीं मगरूर नहीं मैं 

मोह माया में चूर नहीं मैं

साथ…

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Added by PHOOL SINGH on December 10, 2018 at 4:30pm — 1 Comment

रंगहीन ख़ुतूत ...

रंगहीन ख़ुतूत ...

तन्हाई

रात की दहलीज़ पर

देर तक रुकी रही

चाँद

दस्तक देता रहा

मन

उलझा रहा

किसका दामन थामूँ

अर्श के माहताब का

पलकों के ख्वाब का

या ज़ह्न के सैलाब का

सवाल

गर्म लावे से

उबलते रहे

जवाब

तन्हाई में

सुबकते रहे

मैं ज़ीना-ज़ीना

ज़ह्न के सन्नाटों में

उतरती रही

अपनी ही साये में

बिखरती रही

बस रहे गए हाथ में

अर्थहीन अलफ़ाज़ के

रंगहीन ख़ुतूत…

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Added by Sushil Sarna on December 10, 2018 at 2:00pm — 8 Comments

सबके अपने अपने मठ हैं - नवगीत

व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*

सबके अपने-अपने मठ हैं

दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,

और कहीं पर वे तिरसठ हैं

*फेसबुक 

 

रंग निराले, ढंग अनोखे,

ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on December 9, 2018 at 9:30pm — 6 Comments

कुंठा - लघुकथा -

कुंठा - लघुकथा -

आदरणीय मामाजी,

आपने मेरे लिये जो किया वह मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। आपने अपना भविष्य दॉव पर लगा दिया| आपकी बी ई की पढ़ाई छूट गयी। वह घटना मेरे जीवन की भयंकर भूल थी।जिसके अपराध बोध से आज तक ग्रसित हूँ।

उस समय मैं केवल  सात साल का था अतःइतना डर गया था कि सच नहीं बोल सका।

इतने साल बाद आज मैं आपको सच बताने का साहस जुटा पाया हूँ|

दिवाली की उस रात  खाने के बाद आप जब पान खाने जाने लगे तो मैं भी जिद करके आपके साथ चल दिया था।

आपने पान वाले को…

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Added by TEJ VEER SINGH on December 8, 2018 at 7:28pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८०

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



ज़र्बे दिल तू दे, पे हम दिल की दवाई तो करें

हम तेरी ख़ू ए गुनह की मुस्तफ़ाई तो करें //१



कह के दिल की बात किस्मत आज़माई तो करें

करते हों गर वो जो मुझसे कज अदाई तो करें //२ 



नफ़रतों को ख़त्म कर दिल की सफ़ाई तो करें

आप समझें गर हमें भी अपना भाई,तो करें //३ 



गर मिलें हम, कुछ नहीं पर, ख़ुश अदाई तो करें 

आप हमसे…

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Added by राज़ नवादवी on December 8, 2018 at 3:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122



दिया आप ने था हमें जो सिला कुछ ।

बड़ा फैसला हमको लेना पड़ा कुछ ।।

कहा किसने अब तक नहीं है जला कुछ ।

धुंआ रफ़्ता रफ़्ता है घर से उठा कुछ ।।

बहुत हो चुकी अब यहाँ जुमले बाजी ।

तुम्हारे मुख़ालिफ़ चली है हवा कुछ ।।

बहुत दिन से ख़ामोश दिखता है मंजर ।

कई दिल हैं टूटे हुआ हादसा कुछ ।।

कदम मंजिलों की तरफ बढ़ गए जब ।

तो अब पीछे मुड़कर है क्या देखना…

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Added by Naveen Mani Tripathi on December 8, 2018 at 1:04am — 8 Comments

अख़बारों की बातें छोड़ो कोई ग़ज़ल कहो (ग़ज़ल)

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

अख़बारों की बातें छोड़ो कोई ग़ज़ल कहो

ख़ुद को थोड़ा और निचोड़ो कोई ग़ज़ल कहो

वक़्त चुनावों का है, उमड़ा नफ़रत का दर्या

बाँध प्रेम का फौरन जोड़ो कोई ग़ज़ल कहो

हम सबके भीतर सोई जो मानवता…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2018 at 10:48pm — 6 Comments

दो क्षणिकाएं :

दो क्षणिकाएं :

पिघल गयी
दे कर आघात
बेदर्दी याद

......................

ढाया कह्र
आफ़ताब ने
ओस की बूँद पर
बिखर गई रेज़ा-रेज़ा
तन्हा-तन्हा
रोया गुलाब

.....................

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 7, 2018 at 8:56pm — 10 Comments

सारे जहाँ से अच्छा (कहानी )

 भिखारी सोचता रहा. आधी रात लगभग बीत चुकी थी . लेकिन उसकी आँखों में नींद कहाँ ? पिछले एक सप्ताह से वह ज्वर में तप रहा था. इस अवधि में गरमागरम चाय और नमकीन बिस्किट की कौन कहे, उसे ढंग की दवा तक नसीब नहीं हुयी . वह तो भला हो उस ‘लंगड़े’ का जो किसी तरह ‘अजूबी’ की कुछ टिकिया ले आया था. पर उससे क्या ? आज तो भिखारी के शरीर में इतनी भी ताब न थी कि वह घड़े में रखे कई दिनों के बासी और सड़े–गले पानी को मिट्टी के प्याले में ढालकर अपनी प्यास बुझा पाता . उसने पथराई आँखों से अँधेरी झोंपड़ी में चारों ओर देखा .…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2018 at 12:48pm — 6 Comments

गज़ल -15 (हस्ती ही मिट गई है तेरे इस ग़ुलाम की )

221-2121-1221-212



धज्जी उड़ी हुई है सभी इन्तज़ाम की

क़ानून की सिफ़त है बची सिर्फ नाम की//१

तुम थे हवा हवाई बचा के नज़र गए

मेरी तरफ़ से कब थी मनाही सलाम की।//२

दिल में जगा के टीस चले मुस्कुरा के तुम

अब दिल में धक लगी है तुम्हारे पयाम की//३

बौरा के जब बसन्ती हवा झूमती चले

कोयल सुनाए कूक तुम्हारे कलाम की//४

अब ज्ञान बाँटने का है ठेका उन्हें मिला

जो खा रहे हैं मुफ़्त में बिल्कुल हराम की/५

इक शाम जो…

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Added by क़मर जौनपुरी on December 6, 2018 at 10:31pm — 7 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

221   1221    1221    122

वेदना के पल कुँवारे ले चलो
कुछ तो जीने के सहारे ले चलो

दिल बहुत मायूस है परदेस में
बस हमें अब घर हमारे ले चलो

झील सी आंखों में हैं खामोशियाँ
थोड़े से सपने उधारे ले चलो

मैकदे में बंटती है अब भी शिफा
मैकदे में ज़ख्म सारे ले चलो

दुनिया मे महफूज कोई भी नहीं
साथ कितने भी सहारे ले चलो

मौलिक और अप्रकाशित

Added by मनोज अहसास on December 6, 2018 at 8:38pm — 7 Comments

दिल भी मिलाना है

मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२ 

नफरत के’ किले सारे, हमको ही’ ढहाना है

जो हाथ मिलाया है, तो दिल भी’ मिलाना है



यूँ रोज हमें खलती, पानी की’ कमी बेशक…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on December 6, 2018 at 4:49pm — 8 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७९

२२१२ २२१२ २२१२ १२



जब से मैं अपने दिल का सूबेदार हो गया

सहरा भी मेरे डर से लालाज़ार हो गया //१



छोड़ा जो तूने साथ, ख़ुद मुख्तार हो गया

तू क्या, ज़माना मेरा ख़िदमतगार हो गया //२



आईन मेरा ग़ैर क्या बतलायेंगे मुझे

मैं ख़ुद ही अपना आइना बरदार हो गया //३



गर बेमज़ा है आशिक़ी मेरे हवाले से

तू क्यों फ़साने में मेरे किरदार हो गया…

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Added by राज़ नवादवी on December 6, 2018 at 3:00pm — 11 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

थोडा सा मुस्काने से गम हल्का भी हो सकता है

हर पल की तड़पन से दिल को खतरा भी हो सकता है

अक्सर धोखा हो जाता है देर से प्यासी आंखों को

तुम जिसको दरिया कहते हो सहरा भी हो सकता है

मैं तो अपने दिल से ही हर बार शिकायत करता हूं

वो भी मुझको भूल गया हो ऐसा भी हो सकता है

अब तो मैं यह सोच कर उसकी राहों से हट जाता हूं

इन आंखों से उसका दामन मैला भी हो सकता है

लोग तो अपने मन से बस इल्जाम लगाते रहते हैं

जो दरिया…

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Added by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 11:30pm — 6 Comments

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