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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८०

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

ज़र्बे दिल तू दे, पे हम दिल की दवाई तो करें
हम तेरी ख़ू ए गुनह की मुस्तफ़ाई तो करें //१

कह के दिल की बात किस्मत आज़माई तो करें
करते हों गर वो जो मुझसे कज अदाई तो करें //२ 

नफ़रतों को ख़त्म कर दिल की सफ़ाई तो करें
आप समझें गर हमें भी अपना भाई,तो करें //३ 

गर मिलें हम, कुछ नहीं पर, ख़ुश अदाई तो करें 
आप हमसे इतनी भी वादा वफ़ाई तो करें //४ 

है पता उनके सियासी फ़न की भी बाज़ीगरी
रहनुमा जो हैं वो पहले रहनुमाई तो करें //५  

आओ देखें तो तवालत हम तनाबे इश्क़ की
हों निसारे जाँ तेरे, उकदा कुशाई तो करें //६ 

तू नहीं है रू ब रू पर फ़िक्र में दायम तो है
हिज्र में इस वस्ल की हम रू नुमाई तो करें //७  

हैं नहीं दरकार हमको जिस्म की आसाइशें
दे ख़ुदा इतना कि हम हाज़त रवाई तो करें //८ 

आबे ज़मज़म ही समझ कर पीलें अपने अश्क 'राज़'
प्यास के मारे हैं हम, रोज़ा कुशाई तो करें //९  

~ राज़ नवादवी 

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

ख़ू- आदत; मुस्तफ़ाई- पवित्र और पुनीत बनाना, मुस्तफ़ा का काम करना; कज अदाई- ग़लत ढंग से पेश आना; ख़ुश अदाई- सकारात्मक भाव-भंगिमा; तवालत- लम्बाई; वादा वफ़ाई- वादे को पूरा करना; तनाब- रज्जू; उकदा कुशाई- गाँठ खोलना; दायम- नित्य; आबे ज़मज़म- ज़मज़म नदी का पवित्र पानी; हाज़त रवाई- आवश्यकता की पूर्ति; आसाइशें- सुख, चैन; रोज़ा कुशाई- व्रत तोड़ना; 

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Comment by राज़ नवादवी on December 9, 2018 at 9:39pm

जी जनाब, आपने जैसा फ़रमाया, वैसी तब्दील करता हूँ. आपका तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 9, 2018 at 4:55pm

'  तू समझता है मुझे गर अपना भाई, तो करें'

इस मिसरे को यूँ कर लें :-

''आप समझें गर हमें भी अपना भाई,तो करें"

Comment by राज़ नवादवी on December 9, 2018 at 1:07pm

आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. मख्सूस शेर की पसंदगी का ह्रदय से आभार. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on December 9, 2018 at 1:06pm

आपकी इस्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब, ऐब को दूर कर दोबारा पोस्ट करता हूँ. क्या 'मुझे' को 'हमें' करने से ये दूर हो हैगा? सादर.  

Comment by TEJ VEER SINGH on December 9, 2018 at 12:31pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

है पता उनके सियासी फ़न की भी बाज़ीगरी 
रहनुमा जो हैं वो पहले रहनुमाई तो करें //५  

Comment by Samar kabeer on December 9, 2018 at 11:00am

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'नफ़रतों को ख़त्म कर दिल की सफ़ाई तो करें 
तू समझता है मुझे गर अपना भाई, तो करें'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,देखें ।

Comment by राज़ नवादवी on December 8, 2018 at 10:07pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. हमें ख़ुशी है कि आपको अशआर पसंद आये. सादर.  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2018 at 7:35pm

आ. भाई राज नवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई । ये असआर बेहतरीन लगे -


हैं नहीं दरकार हमको जिस्म की आसाइशें
दे ख़ुदा इतना कि हम हाज़त रवाई तो करें //८ 

आबे ज़मज़म ही समझ कर पीलें अपने अश्क 'राज़' 
प्यास के मारे हैं हम, रोज़ा कुशाई तो करें //९  

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