तीन क्षणिकाएं :
बन जाती हैं
बूँदें
घास पर
ओस की
जब कभी
रोता है मयंक
कौमुदी के वियोग में
.............................
एक भारहीन अतीत
हृदय कलश में
पिउनी पुष्प सा
सुवासित होता रहा
मैं
देर तक
समर्पित रही
अधर तटों के
क्षितिज पर
.........................
जीत दम्भ की
प्राचीर को तोड़ते
जब
दोनों हार गए
तो
प्रचीर भी
हार गई
जीत की
स्वीकार पलों…
Added by Sushil Sarna on January 21, 2019 at 7:13pm — 4 Comments
वह नंगा हो चुका था। फिर भी इतरा रहा था। घमंड का भूत अब भी सवार था।
"आयेगा.. वह आयेगा, मेरी ही छत्रछाया में!" विदेशी धरती, देशी राजनीति, देशी-विदेशी उद्योग-जगत और देशी-विदेशी ग्लैमर-जगत की छतरियां बारी-बारी से अपने अनुभव आधारित दावे पेश करने लगीं।
"तुम सबने इसे नंगा तो कर ही दिया है! न ईमान रहा इसके पास, न ही धर्म! तन अंदर से खोखला कर लिया है इसने और मन.. मन का धन कर रहा है इसका!" उसके तन को सहारा देती रीढ़ की हड्डी के ऊपरी यानि कंधों वाले भाग पर बोझिल गठरी ने…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2019 at 11:00pm — 6 Comments
11212 *4
बने हमसफ़र तेरी ज़ीस्त में कोई मेहरबाँ वो तलाश कर
जो हयात भर तेरा साथ दे कोई जान-ए-जाँ वो तलाश कर
***
तेरे सुर में सुर जो मिला सके तेरे ग़म में साथ निभा सके
तेरे संग ख़ुशियाँ मना सके कोई हमज़बाँ वो तलाश कर
***
कहीं डूब जाये न दरमियाँ कभी सुन के बह्र की धमकियाँ
चले नाव ठीक से ज़ीस्त की कोई बादबाँ वो तलाश कर
***
भला लुत्फ़ क्या मिले प्यार में नहीं गर अना रहे यार में
जो अदा से जानता रूठना कोई सरगिराँ वो तलाश कर
***
ये…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 20, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
बह्र
1222-1222-1222-12
चलो हमदर्द बन जाओ, ख़यालों की तरह।।
कोई खुश्बू ही बिखराओ गुलाबों की तरह।।
बहुत थक सा गया हूँ जिंदगी से खेल कर।
कजा आगोश में भर लो दुशालों की तरह।।
मुझे बंजर में नफरत से कहीं भी फेंक दो।
वही उग आऊंगा मैं भी, अनाजों की तरहा।।
मुझे पढ़ना अगर चाहो तो पढ़ लेना यूँ ही ।
हुँ यू के जी के बस्ते में, किताबों की तरह।।
मेरी तुलना न कर उल्फ़त, गुलों की बस्ती' से।
मैं काफिर मैकदे में…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 20, 2019 at 7:00am — 1 Comment
एक ताज़ा ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
उदासी घिर के आई है चलो फिर कुछ नया कह दें
पलक को बेवफा कह दें या पैसे को खुदा कह दें
यहाँ से टूट कर जुड़ना नहीं मुमकिन मगर फिर भी
चलो एक बार फिर से आंसुओं को अलविदा कह दें
समंदर सी बड़ी नाकामियां है सामने अपने
ये सोचा है कि अपना नाम मिट्टी पर लिखा कह दें
तुम्हारे आने की उम्मीद की भी क्या जरूरत है
हमें ही लोग शायद कुछ दिनों में जा चुका कह दें
ये धड़कन…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 19, 2019 at 10:39pm — 4 Comments
122 122 122 122
ग़ज़ल
****
है दुनिया में कितनी रवानी न पूछो
महकती है कितनी कहानी न पूछो
इसे चाँद के पार जाना था मिलने
कहाँ रह गई ज़िंदगानी न पूछो
रहा दर बदर आशिक़ी का मैं मारा
गई बीत कैसे जवानी न पूछो
तेरे इश्क़ में मैंने गोता लगाया
मिली मुझको क्या क्या निशानी न पूछो
मुहब्बत की रस्में निभाते निभाते
रहा चश्म में कितना पानी न पूछो
कभी ग़म के बादल कभी सर्द आहें
पड़ीं कितनी बातें भुलानी न…
Added by क़मर जौनपुरी on January 19, 2019 at 4:07pm — 8 Comments
एक तो पिछला कर्ज ही अभी तक माफ नहीं हुआ था उस पर इस बार फिर फसल के चौपट होने और साहूकार के ब्याज की दोहरी मार उसके लिए असहनीय थी, घर में सभी को कुपोषण और बीमारी ने घेर रखा था। इस बार ना तो मदद को सरकार थी, ना ही लोग।
आखिरकार उसने शहर जाकर मजदूरी या कुछ और कर कमाने का फैसला लिया और जब वह लगभग नग्न बदन, एक बोझ भरी गठरी जिसमें कुछ सुखी रोटी और प्याज थी, लेकर , शहर के चौराहे नुमा पुल पर पहुंचा तो उसने पाया की उसके लिए सभी रास्ते बंद हैं और अवसाद ग्रस्त होकर उसने उसी पुल से नीचे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
झूठ फैलाते हैं अक़्सर जो तक़ारीर के साथ
खेल करते हैं वतन की नई तामीर के साथ
***
ख़्वाब देखोगे न तो खाक़ मुकम्मल होंगे
ये तो पैवस्त* हुआ करते हैं ताबीर के साथ
***
जो बना सकते नहीं चन्द निशानात कभी
हैफ़* क्या हश्र करेंगे वही तस्वीर के साथ
***
ग़म भी हमराह ख़ुशी के नहीं रहते,जैसे
कोई शमशीर कहाँ रहती है शमशीर के…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 19, 2019 at 2:30am — 8 Comments
आसमान का चाँद :
शीत रैन की
धवल चांदनी में
बैचैन उदास मन
बैठ जाता है उठकर
करने कुछ बात
आसमान के चाँद से
मैं अकेली
छत की मुंडेर पर
उसकी यादों में
स्वयं को आत्मसात कर
मांगती हूँ अपना प्यार
आसमान के चाँद से
केसरिया चांदनी में
उसका प्यार
लेकर आया था
मेरे पास
मौन चाहतें
उदास प्यास
अदृश्य समर्पण
कहती रही
मौन व्यथा
देर तक
आसमान के चाँद…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2019 at 5:30pm — 3 Comments
बह्र 1222-1222-1222-1222
बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।
अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।
तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।
तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।
भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।
गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।
मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।
बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 17, 2019 at 6:35pm — 2 Comments
१२२२/१२२२-/१२२२/१२२२
किसी के घर बहुत आवागमन से प्यार कम होगा
इसी के साथ हर बारी सदा सत्कार कम होगा।१।
जरूरत सब को पड़ती है यहाँ कुछ माँगने की पर
हमेशा माँगने वाला सही हकदार कम होगा।२।
खुशी बाँटो कि बँटकर भी नहीं भंडार होगा कम
अगर साझा करोगे दुख तो उसका भार कम होगा।३।
नजाकत देख रूठो तो मिलेगा मान रिश्तों को
जहाँ रूठोगे पलपल में सुजन मनुहार कम होगा।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 5:58pm — 8 Comments
(1)
सारे घर के लोग हम, निकले घर से आज
टाटा गाड़ी साथ ले, निपटा कर सब काज।
निपटा कर सब काज, मौज मस्ती थी छाई
तभी हुआ व्यवधान, एक ट्रक थी टकराई।
ट्रक पे लिखा पढ़ हाय, दिखे दिन में ही तारे
'मिलेंगे कल फिर बाय', हो गए घायल सारे।।
(2)
खोया खोया चाँद था, सुखद मिलन की रात
शीतल मन्द बयार थी, रिमझिम सी बरसात।
रिमझिम सी बरसात, प्रेम की अगन लगाये
जोड़ा बैठा साथ, बात की आस लगाये।
गूंगा वर सकुचाय, गोद में उसकी सोया
बहरी दुल्हन पाय, चैन जीवन…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 17, 2019 at 4:00pm — 9 Comments
ग़ज़ल (दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो)
(मफ ऊल _फाइ लात _मफा ईल _फाइ लुन)
दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो l
उसने दिया फरेबी का इल्ज़ाम दोस्तो l
मैं ने खिलाफे ज़ुल्म जुबां अपनी खोल दी
अब चाहे कुछ भी हो मेरा अंजाम दोस्तो l
दिल को अलम जिगर को तड़प अश्क आँख को
मुझ को दिए ये इश्क़ ने इनआम दोस्तो l
लाए हैं अंजुमन में किसी अजनबी को वह
दिल में न यूँ उठा मेरे कुहराम दोस्तो l
सच्चा है यार वो उसे पहचान…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 17, 2019 at 3:57pm — 12 Comments
1222 1222 122
अभी तक आना जाना चल रहा है ।
कोई रिश्ता पुराना चल रहा है ।।
सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।
इधर दिल पर लगी है चोट गहरी ।
उधर तो मुस्कुराना चल रहा है ।।
कहीं तरसी जमीं है आब के बिन ।
कहीं मौसम सुहाना चल रहा है ।।
तुझे बख्सा खुदा ने हुस्न इतना ।
तेरे पीछे ज़माना चल रहा है ।।
दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो ।
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on January 16, 2019 at 11:37pm — 14 Comments
मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
ग़ज़ल
उठा है ज़ह्न में सबके सवाल,किसकी है
तू जिस पे नाच रहा है वो ताल किसकी है
खड़े हुए हैं सर-ए-राह आइना लेकर
हमारे सामने आए मजाल किसकी है
ज़रा सा ग़ौर करोगे तो जान जाओगे
वतन को आग लगाने की चाल किसकी है
हमें तू बेवफ़ा कहता है ,ये तो देख ज़रा
लबों पे सबके वफ़ा की मिसाल किसकी…
ContinueAdded by Samar kabeer on January 16, 2019 at 8:30pm — 22 Comments
मनहरण धनाक्षरी ..
तन मन प्राण वारूँ वंदन नमन करूँ
गाऊँ यशोगान सदा मातृ भूमि के लिए ..
पावन मातृ भूमि ये, वीरों और शहीदों की
जन्मे राम कृष्ण यहाँ हाथ सुचक्र लिए ,
ये बेमिसाल देश है संस्कृति भी विशेष है
पूजते पत्थर यहाँ आस्था अनंत लिए
शौर्य और त्याग की भक्ति और भाव की
कर्म पथ चले सभी हाथ में ध्वजा लिए .....
.
अप्रकाशित /मौलिक
महेश्वरी कनेरी
Added by Maheshwari Kaneri on January 16, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं
वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं
कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक
बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं
यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम
हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं
हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब
जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं
अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम
जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 4:00pm — 14 Comments
(14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद, सात सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)
जागो उठो, हे लाल तुम, बनके सदा, विकराल तुम ।
जो सोच लो, उसको करो, होगे सफल, धीरज धरो।।
भारत तुम्हें, प्यारा लगे, जाँ से अधिक, न्यारा लगे।
मन में रखो, बस हर्ष को, निज देश के, उत्कर्ष को।।
इस देश के, तुम वीर हो, पथ पे डटो, तुम धीर हो।
चिन्ता न हो, निज प्राण का, हर कर्म हो, कल्याण का।।
हो सिंह के, शावक तुम्हीं, भय हो तुम्हें,…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:00am — 8 Comments
दो तीन बार सोमारू आवाज़ लगा चुका था, हर बार वह उसकी तरफ उचटती नजर से देखता और खाट पर लेटे लेटे सोचता रहा. अंदर से तो उसे भी लग रहा था कि उसको जाना चाहिए लेकिन फिर उसका मन उसे रोक देता. वैसे तो बात बहुत बड़ी भी नहीं थी, इस तरह की घटनाओं से उसको अक्सर दो चार होना ही पड़ता था. लेकिन अगर कोई बड़ी जात वाला यह सब कहता तो उसे तकलीफ नहीं होती थी.
"दद्दा, जल्दी चलो, सब लोग तुम्हरी राह देखत हैं", सोमारू ने इस बार थोड़ी तेज आवाज में कहा.
वह खटिया से उठा और बाहर निकलकर लोटे से मुंह धोने लगा. गमछी…
Added by विनय कुमार on January 14, 2019 at 6:00pm — 12 Comments
Added by Balram Dhakar on January 14, 2019 at 4:44pm — 14 Comments
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