For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं

बह्र : 221 1221 1221 122

अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं

वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं

कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक

बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं

यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम

हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं

हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब

जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं

अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम

जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए हैं

उनके लिए क़ुर्बान मैंने हर ख़ुशी कर दी

जो हर घड़ी बस मुझको रुलाने के लिए हैं

जी करता है दुनिया को जला दूँ मैं इन्हीं से

ये दीप जो मन्दिर में जलाने के लिए हैं

सबकुछ गँवा के ज़िन्दगी में हमने ये पाया

हम लोग तो हर चीज़ गँवाने के लिए हैं

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:39am

जी आदरणीय समर कबीर सर. देखता हूँ इसे कैसे बेहतर कर सकता हूँ. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:38am

//ऐसी बह्र जहां 11 का प्रयोग हो वहाँ मात्रा पतन से बचने का प्रयास करने से ग़ज़लों में रवानी अच्छी आती है । // उम्दा जानकारी साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय नवीन जी. //एक सुझाव मात्र।// सुझाव अच्छा है. और आप निश्चिंत रहें.  

मेरे ब्लॉग पर सभी प्रतिक्रियाओं का खुले दिल से स्वागत है. ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति, हौसलाफजाई और इस्लाह का बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:32am

हार्दिक आभार आदरणीय राज़ नवादवी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 27, 2019 at 11:32am

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by Samar kabeer on January 19, 2019 at 11:41am

छटे और आख़री शैर पर ग़ौर करें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 19, 2019 at 12:36am

ग़ज़ल का प्रयास बहुत सुंदर हुआ है । अच्छे मफ़हूम पर ग़ज़ल हुई ।

221 1221 1221 122

उनके लिए कुर्बान मैंने हर खुशी कर दी ।

जिनके लिए कुर्बान हुई हर खुशी मेरी ।

बस लोग वही मुझको रुलाने के लिए हैं ।। एक सुझाव मात्र । 

ऐसी बह्र जहां 11 का प्रयोग हो वहाँ मात्रा पतन से बचने का प्रयास करने से ग़ज़लों में रवानी अच्छी आती है । 

Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:17am

आदरणीय भाई महेंद्र कुमार साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2019 at 9:48am

आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2019 at 9:26pm

लिखना सार्थक रहा आदरणीय अजय जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2019 at 9:26pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"किसको लगता है भला, कुदरत का यह रूप। मगर छाँव का मोल क्या, जब ना होगी धूप।। ऊपर तपता सूर्य है, नीचे…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह अशोक भाई। बहुत ही उत्तम दोहे। // वृक्ष    नहीं    छाया …"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती …"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service