चन्द्रयान-दो चल पड़ा, ले विक्रम को साथ।
दुखी हुआ बेचैन भी, छूट गया जब हाथ।।1
चन्द्रयान का हौसला, विक्रम था भरपूर।
क्रूर समय ने छीन कर, उसे किया मजबूर।।2
माँ की ममता देखिए, चन्द्रयान में डूब।
ढूँढ अँधेरों में लिया, जिसने विक्रम खूब।।3
चन्द्रयान दो का सफर, हुआ बहुत मशहूर।
सराहना कर विश्व ने, दिया मान भरपूर।।4
चन्द्रयान दो के लिए, विक्रम प्राण समान।
छीन लिया यमराज से, साध…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 26, 2019 at 9:00pm — 6 Comments
अचानक उसे लगा कि पीछे से किसी ने नाम लेकर पुकारा, उसने साइकिल रोकी और पलट कर देखा. थोड़ा पीछे ही उसके परिचित वकील साहब खड़े थे और उसकी तरफ इशारा कर रहे थे. वह साइकिल धीरे धीरे चलाते हुए वकील साहब के पास पहुंचा और उनको नमस्ते किया.
"क्या बात है मैनेजर साहब, आज साइकिल चला रहे हैं. गाड़ी पंचर हो गयी है या खराब है", वकील साहब ने मुस्कुराते हुए पूछा.
उसे हंसी आ गयी, वह क्या साइकिल सिर्फ तभी चला सकता है जब उसकी गाड़ी खराब हो. फिर उसने हँसते हुए ही कहा "अरे नहीं वकील साहब, गाड़ी ठीक है. बस यूँ…
Added by विनय कुमार on September 26, 2019 at 5:49pm — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
-चॉंदी-सोने से दो पल हैं, प्रिय देखॅूं या बात करूं ।
या बांहों में चाँद खिलाकर जगमग सारी रात करूं II
आज असंयम को बहलाऊॅं –‘मेरा पुण्य तुझे मिल जाये ।
जब मैं शांत, अशांत हृदय का पागल झंझावात करूं I।
गजरे का आडंबर तोडूँ , कुंतल शशि -मुख पर छा जाये I
मैं कर से उलझन सुलझाऊॅ, प्रेम -प्रकंपित गात करूं …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
२२१/ २१२१/ २२२/१२१२
रस्ते सभी जहाँ के ढब आसान जिंदगी
तू ही उलझ के रह गयी नादान जिंदगी।१।
पानी हवा बहुत है यूँ जीने के वास्ते
करती इकट्ठा मौत का सामान जिंदगी।२।
जीवन नहीं करे है तू जीवन सा पर करे
सासों पे झूठ - मूठ का अहसान जिंदगी।३।
क्यूबा बनी सोमालिया, ईराक, सीरिया
कब होगी तू पता नहीं जापान जिन्दगी।४।
देती है उसको मान ढब आती है मौत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2019 at 6:54am — 8 Comments
2×15
एक ताज़ा ग़ज़ल
वो कहते हैं चाहत कब थी वो इक झूठा सपना था
मुझको भी वो भूलना होगा जो कुछ मैंने सोचा था
इससे बेहतर खुद को समझाने की बात नहीं कोई
जो कुछ किस्मत में लिक्खा था वो तो आखिर होना था
कुछ सालों से मैंने खुद को हँसते हुए नहीं देखा
कुछ सालों मैंने तेरी झूठी मुस्कान को देखा था
सोच समझ वाले लोगों की कुछ भी समझ नहीं आया
जाने कौन सा योग था जो मेरी कुंडली में बैठा था
तरकीबें नाकाम रही सब दुख से तुझे…
ContinueAdded by मनोज अहसास on September 26, 2019 at 12:48am — 2 Comments
Added by Satyanarayan Singh on September 25, 2019 at 10:47pm — 6 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
ख़ामोश जनाज़े
करते हैं अक्सर
बेबसी के तकाज़े
ज़माने से
..........................
सवालों में उलझी
जवाबों में सुलझी
अभिव्यक्ति की तलाश में
बीत गयी
ज़िंदगी
.................................
कोलाहल
ज़िंदगी का
डूब जाता है
श्वासहीन एकांत में
...................................
देकर
एक आदि को अंत
लौटते हुए
सभी खुश थे अंतस में
लेकर ये भ्रम…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2019 at 7:00pm — 12 Comments
मैंने ढेरों पत्र लिखे तुमको
उत्तर जिनका अपेक्षित है
तुम व्यस्त हो गये हो शायद
या पता पता तुम्हारा है बदला
लिखते ऊँगली के पोर दुखे
मन करता लेकिन और लिखे
इसलिए डायरी लिख डाली…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 25, 2019 at 12:30pm — 2 Comments
1212 1212 1212 1212
शराब जब छलक पड़ी तो मयकशी कुबूल है ।
ऐ रिन्द मैकदे को तेरी तिश्नगी कुबूल है ।
नजर झुकी झुकी सी है हया की है ये इंतिहा ।
लबों पे जुम्बिशें लिए ये बेख़ुदी कुबूल है ।।
गुनाह आंख कर न दे हटा न इस तरह नकाब ।
जवां है धड़कने मेरी ये आशिकी कबूल है ।।
यूँ रात भर निहार के भी फासले घटे नहीं ।
ऐ चाँद तेरी बज़्म की ये बेबसी कुबूल है ।।
न रूठ कर यूँ जाइए मेरी यही है…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2019 at 9:30pm — 2 Comments
12122×4
अंधेरी घाटी में रोशनी का हसीन चश्मा जरूर होगा
हमें खबर तो नहीं है फिर भी तलब का रस्ता जरूर होगा
पुराने शब्दों की बारिशों में सकून अपना तलाश कर ले
जो उसके दिल में कहीं नहीं था वो खत में लिक्खा जरूर होगा
तेरे कदम यूं जमे हुए हैं, तुझे हिलाना सरल नहीं है
हमारी आहों से फिर भी इक दिन तेरा तमाशा जरूर होगा
चरागों का दम चुराने वाले क्या तुझको इतनी समझ नहीं है,
बुझेगी सूरज की जिंदगी जब, इन्हें जलाना जरूर होगा…
Added by मनोज अहसास on September 24, 2019 at 12:50am — 4 Comments
स्वरचित कविता
शीर्षक- "लक्ष्य तय करो जीवन का"
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
शैशव में मासूम रहें सब
सीखें हैं जीने का ढब
धीरे-धीरे तन मुस्काए
मन में चुलबुल शोखी आए
पथ पर मंथर कदम पड़ें
करतब करते लघु बड़े
गतिमय जीवन निश-दिन का
पंचभूत तन दो दिन का
लक्ष्य तय करो जीवन का
सदाचार का पाठ पढ़ो
सुगढ़ प्रेम के तंत्र गढ़ो
करो बड़ों का तुम सम्मान
बंधु!देव!मनुज-संतान!
छोटों पर वात्सल्य लुटाओ
खिलखिल करके गले…
Added by Dr. Anju Lata Singh on September 23, 2019 at 6:44pm — 3 Comments
शमा जली, उठा धुँआ
तुम वहाँ औऱ मैं यहाँ
सोचती हूँ के क्या लिखूं
जिस्म यहाँ औऱ दिल वहाँ
पकड़ी क़लम ने उंगलियां
टो सुझा नहीं के क्या लिखें
तेरी अधूरी दास्तां या फ़िर …
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 23, 2019 at 6:30pm — 1 Comment
कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं
क्यूँ मद हवा सा डोल रहा
क्या कोई हवा का झोका हूँ जो
क्यूँ हर नियम को तोड़ चला ||
क्या बहते जल की धारा हूँ
जिधर चले उस ओर मार्ग बना
कल-कल, छल-छल की आवाज कर
शुद्ध तन-मन को मैं करता चला ||
क्या खुला आकाश हूँ मैं
जो अनंत, असीम है
जीव जन्म का बीज है जो
छोर का जिसके नहीं पता ||
क्या असीमित सी भू-धरा हूँ मैं
सहनता की सीमा नहीं
हर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 23, 2019 at 3:51pm — 6 Comments
ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,
सरक-सरक कर गुज़रने लगी।
हादसों का सिलसिला ऐसा चला,
उम्र का अहसास गहराता गया।
उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,
कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।
अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,
यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।
इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,
बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।
फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,
ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना…
Added by Usha on September 23, 2019 at 3:22pm — 3 Comments
घोघा रानी, कितना पानी ।
बदला मौसम, बरसा पानी ।।
डूब गई गली और सड़कें ।
नगर निगम का उतरा पानी ।।
सब कुछ अच्छा करते दावा ।
नही बचा आँखों का पानी ।।
गंगा कोशी पुनपुन गंडक ।
सब नदियों में उफना पानी ।।
मैं तो हूँ गंगा का बेटा ।
पितरों को भी देता पानी ।।
नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी ।
उठा गरीब का दाना पानी ।।
जल दूषित से उनको क्या है ?
वो पीते बोतल का पानी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2019 at 12:30pm — 7 Comments
सोचता हूँ ,
अब तो यह भी सोचना पड़ेगा
कि कैसे सोचते हैं हम ?
कितनी सीमाओं में सोचते हैं हम ?
या किस सीमा तक सोचते हैं हम ?
कुछ सोचते भी हैं हम ?
अगर नहीं तो क्यों नहीं सोचते हैं हम ?
सच तो यह है कि ' बिना विचारे जो करे ' .....
भी नहीं सोचते हैं हम।
खुद में गज़ब का विश्वास रखते है हम ?
बस सोचने में क्रियाशील रहते हैं हम ,
जितनी तेजी से आगे जाते हैं
उतनी हे तेजी से लौट आते हैं।
नतीज़तन वहीं के वहीं रह जाते हैं हम।…
Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2019 at 10:01am — 6 Comments
देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में
बस थोड़ा सा वक़्त बचा है सैलाबों को आने में
**
अपनापन का जज़्बा खोया और मरासिम भी टूटे
कंजूसी करते हैं सारे थोड़ा प्यार दिखाने में
**
उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है
जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में
**
वादा पूरा करना अपना इस सावन में आने का
वरना दिलबर क्या रक्खा है सावन आने जाने में
**
बात…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 23, 2019 at 7:30am — 6 Comments
ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,
सरक-सरक कर गुज़रने लगी।
हादसों का सिलसिला ऐसा चला,
उम्र का अहसास गहराता गया।
उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,
कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।
अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,
यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।
इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,
बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।
फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,
ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।
मौलिक…
ContinueAdded by Usha on September 22, 2019 at 2:14pm — 2 Comments
1212 1122 1212 22
जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं
वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं
तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं
तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं
बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को
मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं
ज़रा सी बात पे वो छोड़ कर गया मुझको…
Added by SALIM RAZA REWA on September 20, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
1222 1222 122
नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना
दिखो नजदीक लेकिन दूर होना।
कली का कुछ समय को ठीक है, पर
नहीं अच्छा चमन, मगरूर होना।
अँधेरों में उजालों को दे रस्ता
चिरागों का न थकना चूर होना
कोई कहता इसे वरदान है ये
खले लेकिन किसी को हूर होना।
अभी सूखा नहीं रख ले तसल्ली
दिखेगा ज़ख्म का नासूर होना।
कदम तो चूम लेगी जीत तेरे
है बाकी बस तुझे मंजूर होना।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 20, 2019 at 2:00pm — 2 Comments
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