शोहरतों का हक़दार वही जो,
न भूले ज़मीनी-हकीक़त,
न आए जिसमें कोई अहम्,
न छाए जिसपर बेअदबी का सुरूर,
झूठी हसरतों से कोसों दूर,
न दिल में कोई फरेब,
न किसी से नफ़रत,
पलों में अपना बनाने का हुनर,
ज़ख्मों को दफ़न कर,
सींचे जो ख़ुशियों को,
चेहरे पर निराला नूर,
आवाज़ में दमदार खनक,
अंदर भी…
Posted on December 6, 2019 at 9:09am — 1 Comment
ख़ूबसूरत मंच है, ज़िन्दगी,
हर राह, एक नया तज़ुर्बा,
ख़ुदा की नेमतों से,
मिला ये मौका हमें,
कि बन एक उम्दा कलाकार,
अदा कर सकें अपना किरदार,
कर लें वह सब,
जो भी हो जाए मुमकिन,
खुद भी मसर्रत हासिल रहे,
औरों के चेहरे की ख़ुशी भी कायम रहे,
और न रहे रुख़सती पर यह मलाल,
कि हम क्या कुछ कर सकते थे,
चूक गए, और वक़्त मिल जाता,
तो ये कर लेते, कि वो कर लेते,
इस मंच को जी लें हम भरपूर,
और हो जाएँ फना फिर सुकून से
एक ख़ूबसूरत मुस्कुराहट के…
Posted on December 2, 2019 at 11:27am — 7 Comments
सुना था मसले,
दो तरफा हुआ करते हैं,
पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,
जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।
हमने भी यह सोच कर,
ज़िक्र न छेड़ा कि,
ख़ामोशी कई मर्तबा,
लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,
पर अफसोस कि,
पासा ही पलट गया,
अपना तो मजमा लग गया,
और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,
नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।
मौलिक व् अप्रकाशित।
Posted on November 26, 2019 at 9:00am — 14 Comments
क्षणिकाएं।
इतने बड़े जहां में,
क्यों तू ही नहीं छिप सका,
ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,
कि, हर नए ज़ख्म पर,
नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1
सुना-सुना सा लगता है,
वो सदा है उसके वास्ते,
जीया-जीया सा सच है,
वो खुद ही है खुद के वास्ते,
हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2
कहते…
Posted on November 24, 2019 at 10:18am — 14 Comments
कुछ याद आ गया
जीस्त दो हिस्सों में मेरी बंट गई
उम्र जीने की मेरी कुछ घट गई
फूल यादों के दबे जिन पन्नों में
खूबसूरत वो किताबें फट गई
आदरणीय विजय शंकर सर, मेरी कविता पर बधाई के लिए धन्यवाद। सादर।
आदरणीय समर कबीर सर, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया। जी, भविष्य में अवश्य ध्यान रखूंगी। अभी अतुकांत कवितायेँ ही लिखने का प्रयास कर प् रही हूँ। सादर।
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