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देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में(६४)

देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में
बस थोड़ा सा वक़्त बचा है सैलाबों को आने में
**
अपनापन का जज़्बा खोया और मरासिम भी टूटे
कंजूसी करते हैं सारे थोड़ा प्यार दिखाने में
**
उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है
जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में
**
वादा पूरा करना अपना इस सावन में आने का
वरना दिलबर क्या रक्खा है सावन आने जाने में
**
बात दिलों की कहना सुनना सच में प्यार यही तो है
लेकिन सदियाँ लग जाती हैं लोगों को समझाने में
**
मान -मनोवल ताने तंज़-ओ-तीर अना सब ज़ायज है
थोड़ा सब्र ज़रूरी होता यार मुहब्बत पाने में
**
जाना समझा बूझा परखा तब जाकर ये प्यार किया
फिर भी अब कहता है ज़ालिम-'भूल हुई अनजाने में '
**
जिसने आँखों की मय पी ली एक दफ़ा जी भर यारों
उसको क्या दिलचस्पी रहनी है मय में पैमाने में
**
लोगों के अफ़साने सुनना अच्छा होता है लेकिन
यार 'तुरंत' मज़ा तब है जब तू भी हो अफ़साने में
**
--गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

(मौलिक एवं प्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 25, 2019 at 4:20pm

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी , सादर आभार एवं नमन 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 25, 2019 at 4:20pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमन 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2019 at 10:10am

उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है
जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में।
बहुत खूब , बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी , बधाई , सादर।

Comment by Samar kabeer on September 25, 2019 at 8:09am

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 23, 2019 at 4:53pm

आदरणीय  बसंत कुमार शर्मा जी रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 23, 2019 at 9:51am
आदरणीय गिरधारी लाल जी को सादर नमस्कार, वाह आनन्द आ गया लाजबाब ग़ज़ल हुई।

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