३ क्षणिकाएँ :
दूर होती गईं
करीब आती आहटें
शायद
घुटनें टेक दिए थे
साँसों ने
इंतज़ार के
.............................
दूर चला जाऊँगा
स्वयं की तलाश में
आज रात
जाने किसके बिम्ब में
हो गया है
समाहित
मेरा प्रतिबिम्ब
..............................
हां और न के
लाखों चेहरे
हर चेहरे पर
गहराती झुर्रियाँ
हर झुर्री
विरोधाभास को जीतने की
दफ़्न…
Added by Sushil Sarna on November 26, 2019 at 4:30pm — 12 Comments
काश मैं भी उड़ सकती
खुले विस्तृत गगन में
बादलों को चीरते हुए
और छू सकती आकाश
पर ये संभव ही कहाँ है …
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 26, 2019 at 1:00pm — 14 Comments
दर्द की एक
अजब अनुभूति होती है ,
अपने और अपनों के दर्द
कुछ न कुछ तकलीफ देते हैं।
कभी किसी बिलकुल
दूसरे के दर्द को महसूस करो ,
वो तकलीफ तो कुछ ख़ास
नहीं देते हैं , पर जो दे जाते हैं
वो किसी भी दर्द से भी
कहीं अधिक कीमती होता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2019 at 11:57am — 14 Comments
सुना था मसले,
दो तरफा हुआ करते हैं,
पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,
जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।
हमने भी यह सोच कर,
ज़िक्र न छेड़ा कि,
ख़ामोशी कई मर्तबा,
लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,
पर अफसोस कि,
पासा ही पलट गया,
अपना तो मजमा लग गया,
और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,
नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।
मौलिक व् अप्रकाशित।
Added by Usha on November 26, 2019 at 9:00am — 14 Comments
जब तक रहना जीवन में
फुलवारी बन रहना
पूजा बनकर मत रहना
तुम यारी बन रहना
दो दिन हो या चार दिनों का
जब तक साथ रहे
इक दूजे से सबकुछ कह दें…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 25, 2019 at 7:33pm — 5 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
धन से न आप तोलिए लम्हों की तितलियाँ
कहना फजूल खोलिए लम्हों की तितलियाँ।१।
****
उड़ती हैं आसपास नित सबके मचल - मचल
पकड़ी हैं किस ने बोलिए लम्हों की तितलियाँ।२।
****
सुनते जमाना उन का ही होता रहा सदा
फिरते हैं साथ जो लिए लम्हों की तितलियाँ।३।
****
किस्मत हैं लाए साथ में तुमसे ही ब्याहने
कहती हैं द्वार खोलिए लम्हों की तितलियाँ।४।
****
जिसने न खोला द्वार फिर आती कभी नहीं
कितना भी चाहे रो लिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2019 at 5:24am — 14 Comments
क्षणिकाएं।
इतने बड़े जहां में,
क्यों तू ही नहीं छिप सका,
ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,
कि, हर नए ज़ख्म पर,
नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1
सुना-सुना सा लगता है,
वो सदा है उसके वास्ते,
जीया-जीया सा सच है,
वो खुद ही है खुद के वास्ते,
हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2
कहते…
Added by Usha on November 24, 2019 at 10:18am — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 23, 2019 at 1:00pm — 7 Comments
पानी पर चंद दोहे :
प्यासी धरती पर नहीं , जब तक बरसे नीर।
हलधर कैसे खेत की, हरित करे तकदीर।१ ।
पानी जीवन जीव का, पानी ही आधार।
बिन पानी इस सृष्टि का, कैसे हो शृंगार।२ ।
पानी की हर बूँद में, छुपा हुआ है ईश।
अंतिम पल इक बूँद से, मिल जाता जगदीश।३ ।
पानी तो अनमोल है, धरती का परिधान।
जीवन ये हर जीव को, प्रभु का है वरदान।४ ।
बूँद बूँद अनमोल है, इसे न करना व्यर्थ।
अगर न चेते आज तो, होगा बड़ा अनर्थ।५…
Added by Sushil Sarna on November 22, 2019 at 7:30pm — 12 Comments
221 2121 1221 212
-
रौशन है उसके दम से सितारों की रौशनी
ख़ुश्बू लुटा रही है बहारों की रौशनी
-
इक वो है माहताब फक़त आसमान में
फीकी है जिसके आगे हज़ारों की रौशनी…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on November 21, 2019 at 8:52pm — 6 Comments
ये आसमां धुआँ-धुआँ क्यों है?
सुबू शाम बुझा-बुझा क्यों है?
इन्सां बाहर निकलने से डर रहा है
बीमारियों की फ़िज़ा क्यों है?
यह सारा किया उसी ने है
ज़हर फैलाया उसी ने है
बेजान इमारतों के ख़ातिर
वृक्षों को गिराया उसी ने है
कितने अपशिष्ट जलाए उसने?
कितने कारखाने चलाए उसने?
क्या उसे नहीं पता ?
इतनी बद्दुआएँ क्यों हैं?
ये आसमां धुआँ-धुआँ क्यों है?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 21, 2019 at 11:30am — 3 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on November 19, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
दो क्षणिकाएँ ...
पुष्प
गिर पड़े रुष्ट होकर
केशों से
शायद अभिसार
अधूरे रहे
रात में
........................
मौन को चीरता रहा
अंतस का हाहाकार
कर गयी
मौन पलों का शृंगार
वो लजीली सी
हार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 19, 2019 at 4:34pm — 8 Comments
तरीफे उनकी क्यूँ लगती
जहर से भरी मीठी बातें
हर पिशुन/चुगलखोर की
झूठी बातें भी सच्ची लगती||
स्वार्थ की तह तक गिर
औछी हरकते करते रहते
भलाई का दामन औढकर
सहकर्मियों की बुराई वो करते||
दूसरों के काम में टांग अड़ाना
आदतों में शुमार उनकी
सहकर्मियों को आपस में भिड़ाकर
फिर निश्छल होने का ढोंग रचाते||
लाभ ना हो जाए कहीं किसी को
बुगले के जैसा ध्यान लगाते
एडी चोटी का ज़ोर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 19, 2019 at 2:56pm — 5 Comments
जले दिवस भर धूप में, चलते - चलते पाँव
क्यों ओ! प्यारी शाम तुम, जा बैठी हो गाँव।१।
रोज शाम को झील पर, आओ प्यारी शाम
गोद तुम्हारी सिर रखूँ, कर लूँ कुछ आराम।२।
जब तक हो यूँ पास में, तुम ओ! प्यारी शाम
थकन भरे हर पाँव को, मिल जाता आराम।३।
बेघर पन्छी डाल पर, बैठा है उस पार
आयी प्यारी शाम है, खोलो कोई द्वार।४।
कितनी प्यारी शाम है, इत उत फैली छाँव
निकले चादर छोड़ कर, जी बहलाने पाँव।५।
आयी प्यारी शाम…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2019 at 6:00am — 10 Comments
दिन ढलते, शाम चढ़ते,
उसका डर बढ़ने लगता है,
क़िस्मत, दस्तक भी देगी और
भीनी यादें तूफान भी उठायेंगी ,
फिर भी होगा कुछ भी नया नहीं,
बस यह अहसास कराते हुए
कि वो किसी और पर मेहरबान है,
उसके पास से धीरे से सरक जाएगी
और चूम लेगी किसी और को।.............1
अटपटा दीवानापन सा,
महसूस तू करवाता है,
हर नए दिन,
हर नई शाम,
यकीन दिलाकर,
तू सिर्फ उसका है,
बाहों में किसी और की,
चला जाता है ।............…
Added by Usha on November 18, 2019 at 8:30am — 5 Comments
आशंका के कगार
जानता हूँ
हर पिघलती सचाई में
फीकी सचाई के पार
कुछ झुठाई भी है
तभी तो आशंका की परतों के बीच
किसी भी परिस्थिति को परखते
किसी का झूठ जानते हुए भी
सचाई की लाश को मानो
थपकियाँ देते
कभी खिड़की का शीशा
कभी मन काआईना
कोना-कोना साफ़ करते
खिसक जाते हैं दिन
ज़िन्दगी हाथ फैलाए
मांगती है…
ContinueAdded by vijay nikore on November 17, 2019 at 6:12pm — 7 Comments
संघे शक्ति
***
पका फल पेड़ पर लटका हुआ था।भालू परेशान था।वह चाहता था कि पका फल उसका रेंगता हुआ बेटा तोड़ लाए जिससे कुल खानदान का यश उजागर हो।पर बेटा वहां तक पहुंचे कैसे,यह यक्ष प्रश्न बना हुआ था। दूसरे भालू,लोमड़ी से बातें हुईं।उम्मीद बंधी।समय मुकर्रर हुआ।भीड़ जुट गई कि स्वर्गवासी भालू काका का पोता आज ऊंचे पेड़ से फल तोड़ लाएगा, भालू भाई और लोमड़ी काकी उसे ऊपर तक पहुंचने में मदद करेंगे। पर यह क्या.....?समय गुजरते निकल गया।न भालू काका आये,न लोमड़ी काकी। बेचारा बाप मन मसोसता रहा। सारे…
Added by Manan Kumar singh on November 17, 2019 at 10:16am — 1 Comment
उन के बंटे जो खेत तो कुनबे बिखर गए,
पंछी जो उड़ चले तो घरौंदे बिख़र गए.
.
सरहद पे गोलियों ने किया रक्स रात भर,
कितने घरों के नींद में सपने बिखर गए.
.
यादों की आँधियों ने रँगोली बिगाड़ दी
बरसों जमे हुए थे वो चेहरे बिखर गए.
.
समझा था जिस को चोर गदागर था वो कोई
ली जब तलाशी रोटी के टुकड़े बिखर गए.
.
तुम जो सँवार लेते तो मुमकिन था ये बहुत
उतना नहीं बिखरते कि जितने बिखर गए .
.
मुझ में कहीं छुपे थे अँधेरों के क़ाफ़िले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 16, 2019 at 8:30pm — 13 Comments
उसूल - लघुकथा -
"क्या बात है सर, आज पहली बार आपको व्हिस्की लेते देख रहा हूँ?"
"हाँ घोष बाबू, आज मैं भी कई साल बाद तनाव मुक्त महसूस कर रहा हूँ।"
"मगर सर मैंने आपको कभी हार्ड ड्रिंक लेते नहीं देखा।"
"आप सही कह रहे हैं। मैंने जिस दिन यह कुर्सी संभाली थी, अपने पिता को वचन दिया था कि मैं सेवा निवृत होने तक ड्रिंक नहीं करूंगा। आज रिटायर होने के साथ ही उस बंधन से मुक्त हो गया।"
"लेकिन सर, खैर छोड़िये...........?"
"क्यूँ छोड़िये, आज सब बंधन तोड़ दो। जो भी मन…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 16, 2019 at 12:42pm — 6 Comments
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