कह-मुकरी
मन-मोहक मृदु रूप में आये.
सजे कलाई अति मन भाये.
नेह-प्रीति की वह है साखी.
क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!
रूपमाला/मदन छंद
आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार.
थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.
बादलों से…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:30pm — 32 Comments
राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....
स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................
आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी…
Added by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 1:18pm — 21 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2012 at 11:00am — 5 Comments
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
--------------------------------------
तुम गरीब हो भूखे प्यासे
लिए कटोरा घूम रहे
दो टुकड़ों की खातिर दिल को
छलनी अपनी करवाते
इज्जत मान प्रतिष्ठा अपनी
घूँट -घूँट विष पी जाते
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
---------------------------------------
पेट भरे -ना-हुयी पढाई
'आदिम मानव' जग हुयी हंसाई
पीछे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments
सभी भाइयों और सभी बहनों को अलबेला खत्री की ओर से राखी के त्यौहार पर
लाख लाख बधाइयां और अभिनन्दन !
अधरों पर मुस्कान है, आँखों में उन्माद
रक्षा बन्धन आ गया, लेकर नव आह्लाद
आजा बहना बाँध दे, लाल गुलाबी डोर
तिलक लगा कर पेश कर, मुँह में मीठा कोर…
Added by Albela Khatri on August 1, 2012 at 9:47pm — 31 Comments
कटाक्ष...
Added by AVINASH S BAGDE on August 1, 2012 at 8:16pm — 8 Comments
जिक्र करना यार जब भी रू-ब-रू करना
हूँ मयस्सर खोल के दिल गुफ्तगू करना
एक दर उसका बिना मांगे मिला सब कुछ
भूल बैठा हूँ मुरादो आरजू करना
है सराफत शान औ ईमान है जलवा
मौत इनकी हो नहीं क्या हाय हू करना
याद में जब हो खुदा तो पाक दिल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 1, 2012 at 1:37pm — 8 Comments
आह जो दिल से मेरे निकलती नहीं,
राह वो पगली शायद बदलती नहीं,
रोज़ मरता हूँ, जीता हूँ कभी-कभी,
हाल देख कर भी थोडा पिघलती नहीं,
खो गई पाकर, तुमको जिंदगी कहीं,
आज कल तबियत भी तो मचलती नहीं,
रूबरू आँखों में है, चेहरा तिरा,
अश्क बहते हैं, पर वो मसलती नहीं,
बात आती थी सारी, याद रात भर,
सांस सीने में रुकी, टहलती नहीं.......
Added by अरुन 'अनन्त' on August 1, 2012 at 12:30pm — 8 Comments
जिंदगी का ये चौराहा , अपने दम पर गर्वित हाथ फैलाये खड़ा ,कुछ इठलाकर , सोचे कि मंजिल दिखता है सबको राह बताता है । जिंदगी के इस चौराहे पर कितनी ही गाड़िया आती चली जाती हैं , फिर बचती है बस वो सूनी खाली राह , इंतज़ार में फिर किसी मुसाफ़िर के जो आयेगा और अपनी मंजिल पायेगा , बढता चला जायेगा । पर जब राह ही मालूम ना हो तो ये क्या आभास करायेगा , राह दिखाने का आभास या राह में अकेले खो जाने का आभास । क्या ये चौराहा अकेलेपन में चुभती उस साँस को कुछ आस दिलायेगा या देख उसे हँसता जायेगा , जोर से या मन ही मन…
ContinueAdded by deepti sharma on August 1, 2012 at 12:27pm — 11 Comments
ज़िंदगी के रुपहले परदे पे हम किसी साए की तरह जी रहे हैं, कायनात से आ रही शुआ बिखर कर रंगीन हो गयी है. जब भी कुछ टूटा है, कुछ नया बना है. जब भी कहीं कुछ नया हुआ, कहीं कुछ पुराना छूट गया है. हालात में तरतीब (व्यवस्था) की तलाश की तो बेतरतीबियां ही बेतरतीबियाँ नज़र आईं और जब किसी भी हाल में गाफ़िल (बेसुध) होके जिया तो बेतरतीबियों के सिलसिले में भी इक तसलसुल (क्रम) सा बन गया. अजीब इत्तेफाक़ है कि इत्तेफाक़ भी तय लगते हैं और ये भी कि तयशुदा ज़िंदगी में इत्तेफाक़ ही इत्तेफाक़ हैं. ज़िंदगी में ये…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 1, 2012 at 12:20pm — 2 Comments
आज राखी का पावन त्यौहार था I बेचारा गरीब सुबह से ही नहा धोकर नई टी शर्त पहन कर बैठ गया किसी कोरियर वाले या डाकिए के इंतज़ार में क्योंकि उसकी कहने को तो चार बहनें थी लेकिन उनकी राखी उसे अब तक न मिली थी लेकिन उसे पूरी उम्मीद थी की आज तो राखी आएगी ज़रूर जिन्हें वह अपनी कलाई में पहनेगा I
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 1, 2012 at 12:04pm — 4 Comments
१. फूँक रहा क्यों जिन्दगी, ऐ मूरख इंसान |
मर जाएगा सोच ले, छोड़ धुँए का पान ||
२. बीड़ी को दुश्मन समझ, दानव है सिगरेट |
इंसानों की जान से, भरते ये सब पेट ||
३. शुरू-शुरू में दें मजा, कर दें फिर मजबूर |
चले काम या ना चले, ये चाहिए जरूर…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 1, 2012 at 8:00am — 8 Comments
शन्नो की सगी बहन मन्नु लेकिन शक्ल सूरत में जमीन आसमान का अंतर , अपने माता पिता की लाडली शन्नो इतनी सुंदर थी मानो आसमान से कोई परी जमीन पर उतर आई हो ,बेचारी मन्नु को अपने साधारण रंग रूप के कारण सदा अपने माता पिता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था |शन्नो अपने माँ बाप के लाड और अपनी खूबसूरती के आगे किसी को कुछ समझती ही नही थी |एक दिन दुर्भाग्यवश उनकी माँ बहुत बीमार पड़ गई ,सारा दिन बिस्तर पर ही लेटी रहती थी ,मन्नु ने अपनी माँ की सेवा के साथ साथ घर का बोझ भी अपने कंधों पर ले लिया ,उसकी नकचढ़ी…
ContinueAdded by Rekha Joshi on July 31, 2012 at 11:04pm — 16 Comments
वो आँखें थी या ख्वाब के बगूले, वो जुल्फें थीं या रात के समंदर की लहरें, वो होंठ थे या सेब तराशे हुए, वो चेहरा था या किसी नदी का सुनहरा टुकड़ा, वो कामत थी या लहलहाते फसल का खेत, उसका पैरहन था या जिस्म के तनासुब में बनाया कालिब, उसकी नज़र थी या कि कोई नीली बर्क, उसकी हंसी थी या प्यार का गुदगुदाता ऐतेराफ़, उसकी चाल थी या किसी सपेरे की हिलती बीन, उसके कॉल थे या ख्वाब से जागती अंगड़ाई, उसकी उदासी थी या मीलों लंबा पहाड़ का दामन, उसकी खुशी थी या कहकशाँ में भीगे सितारे, उसका लम्स था या किसी शिफागर…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 31, 2012 at 5:57pm — No Comments
कहाँ चले जाते हैं लोग करीब आके. किधर मुड़ जाती है राह आँखों से ओझल होके. क्या होता है उनका जो अब अपनी वाबस्तगी में नहीं. धूप जो अभी अभी पूरे एअरपोर्ट पे बिखरी थी, कहाँ गुम हो गई. इक उदासी भरी धुन जो बज रही था, वो क्या कह के चुप हो गई.
लाउंज की खाली-खाली कुर्सियां, और कुछ कुर्सियों में सिमटे सिकुड़े लोग, कहाँ जा रहे हैं ये लोग, कौन इनका इंतज़ार करता होगा और किस जगह पे. हम इनसे फिर कभी मिलेंगे भी या नहीं और मिले भी तो कैसे जान पायेंगे. दिन यूँ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहा है जैसे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 31, 2012 at 5:56pm — No Comments
कुछ उदासियों के चेहरे होते हैं जो जब हंसते हैं तो और भी रुलाते हैं! कुछ खामोशियाँ बाजुबां होती हैं, जो जब बोलती हैं तो दिल की गहराइयों में लहरें उठती हैं, कुछ ख़याल टहलते हैं गिर्दोपेश में कि उनके मानी को सरापा पढ़ा जा सकता है. कोई दिन पपीहे की तरह गाता है गोया बारिश की फुहारों ने समूची कायनात को इक मजलिसेमूसीकी बना दिया हो, कोई रात आके सिरहाने खडी़ हो जाती है मानो मेरे काँधे पे सर रख के दो आंसूं रो लेना चाहती हो. कुछ लोग ज़हन में यूँ बस जाते हैं गोया कोई बीती निस्बतों का नेस्तेनाबूद न होने…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 31, 2012 at 5:30pm — No Comments
कह मुकरने की कुछ कोशिशें...
(1)
वो डोले दुनिया मुसकाए।
पवन बसन्ती झूमे गाये।
बिन उसके जग खाली खाली,
क्या सखी साजन? ना हरियाली।
…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on July 31, 2012 at 3:30pm — 5 Comments
"करमजली"
गुलाबो की अम्मा
बचपन में ही छोड़ गयी थी
बचपन क्या १ दिन की थी
१ दिन की थी तभी
छोड़ गयी थी
इस करमजली को
ममत्व मर कैसे गया
उसकी माँ का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 31, 2012 at 12:39pm — 1 Comment
माहिया (12,10,12)
(1)
अम्बर पे बदरी है
देखो आ जाओ
तरसे मन गगरी है
(२)
सागर में नाव चली
बिन तेरे कुछ भी
चीजें लगती न भली
(३)
चुनरी पे नौ बूटे
सुन तकते- तकते
कहीं डोरी न टूटे
(४)
सूरज सिन्दूरी ना
मिल न सके कोई
इतनी भी दूरी ना
(५)
मैं माँ घर जाउंगी
पैर पकड़ लेना
वापस नहीं आउंगी
Added by rajesh kumari on July 30, 2012 at 10:00pm — 10 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 30, 2012 at 9:00pm — 4 Comments
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