माहिया (12,10,12)
(1)
अम्बर पे बदरी है
देखो आ जाओ
तरसे मन गगरी है
(२)
सागर में नाव चली
बिन तेरे कुछ भी
चीजें लगती न भली
(३)
चुनरी पे नौ बूटे
सुन तकते- तकते
कहीं डोरी न टूटे
(४)
सूरज सिन्दूरी ना
मिल न सके कोई
इतनी भी दूरी ना
(५)
मैं माँ घर जाउंगी
पैर पकड़ लेना
वापस नहीं आउंगी
Comment
अरुन शर्मा जी बहुत बहुत आभार आपका
बहुत बहुत हार्दिक आभार प्रिय प्राची जी
हार्दिक आभार अलबेला जी आपको ख़ुशी हुई तो हमें भी हुई
आदरेया राजेश कुमारी जी बेहद खुबसूरत माहिया, बधाई
waah waah waah
man khush ho gaya
badhaai
हार्दिक आभार रक्तेला जी आपको ये प्रयास पसंद आया बहुत ख़ुशी हुई
राजेश कुमारी जी
सादर,
चुनरी पे नौ बूटे
सुन तकते- तकते
कहीं डोरी न टूटे
इस विधा पर पहली बार पढ़ रहा हूँ. माहिया से पंजाबी का आभास हो ही रहा था आपने निचे विस्तार से बताया भी है, बहुत सुन्दर कलारूप.
हार्दिक आभार संजय हबीब जी आपको माहिया पसंद आया |यह एक बहुत पुरानी पंजाबी लोक गीतों से जुडी विधा है इसमें पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका की आपसी छेडछाड चुहल बाजी से सम्बंधित शब्द होते थे शादी जैसे मोकों पर उत्सवों में प्रसिद्द होते थे किन्तु आज कल और विषय पर भी माहिया लिखे जाने लगे यह त्रिवेणी से मिलते जुलते हैं पहली और अंतिम पंक्ति तुकांत होती है और मात्राएँ १२,१०,१२ होती हैं|जितना मुझे पता है वो ही आपको सांझा कर रही हूँ बाकी योगराज जी जो पंजाबी भाषी हैं अच्छे से समझा सकते हैं
विधा नई, हम जाने
हाँ! अपना भी दिल
बिना रचे नहिं माने
अच्छी भाव भरी रचनाओं के साथ एक सुन्दर विधा से परिचय कराया आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी.... सादर बधाई स्वीकारें... पहली बार पढ़ रहा हूँ... 'माहिया' के सम्बन्ध में और भी जानने की इच्छा है...
सादर.
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