१. फूँक रहा क्यों जिन्दगी, ऐ मूरख इंसान |
मर जाएगा सोच ले, छोड़ धुँए का पान ||
२. बीड़ी को दुश्मन समझ, दानव है सिगरेट |
इंसानों की जान से, भरते ये सब पेट ||
३. शुरू-शुरू में दें मजा, कर दें फिर मजबूर |
चले काम या ना चले, ये चाहिए जरूर ||
४. जला-जला के फेफड़ा, भरते जाते टार |
कर अंदर से खोखला, कर देते बेकार ||
५. रोगी बनता मुँह-गला, दिल होता बीमार |
कभी साँस अटके कभी, सिर को लगती मार ||
६. जो ले आये मौत को, मत लो वो उपहार |
तौबा कर सिगरेट से, जानो जीवन सार ||
७. घिसट-घिसट के है मिला, ये जीवन अनमोल |
नहीं उड़ाने के लिए, आग-धुँए के मोल ||
Comment
गौरव जी
नमस्कार,
जला-जला के फेफड़ा, भरते जाते टार |
कर अंदर से खोखला, कर देते बेकार ||
बहुत सुन्दर और आवश्यक सन्देश देते दोहे के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
बढ़िया काम किया आपने.......अभिनन्दन !
आदरणीया रेखा जी आपका हार्दिक आभार.......
वैचारिक समर्थन के लिए आपका धन्यवाद आदरणीया प्राची जी........
अलबेला भैया, सिगरेट-शराब ये सब ऐसी चीजें हैं जो धीरे-धीरे लोगों को खातीं हैं.......लोग समझते नहीं और इनका सेवन किये जाते हैं.....इसी प्रवृति के विरोध में मेरे ये दोहे हैं......प्रशंसा के लिए आभार.......
जो ले आये मौत को, मत लो वो उपहार |
तौबा कर सिगरेट से, जानो जीवन सार || बढ़िया सन्देश देती हुई रचना पर आपको हार्दिक बधाई
इस सार्थक जिम्मेदाराना संदेशपरक दोहावली रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, कुमार गौरव जी.
वाह कुमार गौरव जी
सार्थक दोहे............
६. जो ले आये मौत को, मत लो वो उपहार |
तौबा कर सिगरेट से, जानो जीवन सार ||
७. घिसट-घिसट के है मिला, ये जीवन अनमोल |
नहीं उड़ाने के लिए, आग-धुँए के मोल ||
__बधाई
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