कह मुकरने की कुछ कोशिशें...
(1)
वो डोले दुनिया मुसकाए।
पवन बसन्ती झूमे गाये।
बिन उसके जग खाली खाली,
क्या सखी साजन? ना हरियाली।
(2)
देख उसे तन मन हरियाये।
जी में ठंडक सी पड़ जाये।
उससे सब दिन मंगल मंगल,
क्या सखी साजन? ना सखी जंगल।
(3)
आँगन महका महका जाये।
मन को भी मेरे महकाये।
आँखों में बन खुशियाँ कौंधे,
क्या सखी साजन? ना सखी पौधे।
(4)
कभी नहीं उसको बिसराऊँ।
सभी जगह उसके गुण गाऊँ।
हर लेता वो मेरा मनवा,
क्या सखी साजन? ना सखी बिरवा।
(5)
दिखने में है बेहद सुंदर।
पुष्प भरा मनमोहक अंतर।
महके उससे सारी दुनिया,
क्या सखी साजन? ना सखी बगिया।
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Comment
आदरणीय अरुण निगम जी, आ अशोक जी आ अलबेला जी आ अरुण शर्मा जी... इस प्रयास को सराहने की लिए सादर आभार स्वीकारें...
संजय जी वाह क्या बात बेहद खुबसूरत, बधाई....
आनंद आ गया संजय जी...............वाह !
ज़बरदस्त कह-मुकरियां
संजय जी
सादर,
दिखने में है बेहद सुंदर।
पुष्प भरा मनमोहक अंतर।
महके उससे सारी दुनिया,
क्या सखी साजन? ना सखी बगिया।
बहुत सुन्दर कह मुकरियाँ. बधाई.
उसकी बातें बड़ी निराली
शब्दों की बगिया का माली
काम करे वह होकर निर्भय
क्या सखी साजन ? ना सखी संजय ||
सुंदर , पर्यावरण पर कह मुकरी के लिये बधाई..................
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