जिंदगी का ये चौराहा , अपने दम पर गर्वित हाथ फैलाये खड़ा ,कुछ इठलाकर , सोचे कि मंजिल दिखता है सबको राह बताता है । जिंदगी के इस चौराहे पर कितनी ही गाड़िया आती चली जाती हैं , फिर बचती है बस वो सूनी खाली राह , इंतज़ार में फिर किसी मुसाफ़िर के जो आयेगा और अपनी मंजिल पायेगा , बढता चला जायेगा । पर जब राह ही मालूम ना हो तो ये क्या आभास करायेगा , राह दिखाने का आभास या राह में अकेले खो जाने का आभास । क्या ये चौराहा अकेलेपन में चुभती उस साँस को कुछ आस दिलायेगा या देख उसे हँसता जायेगा , जोर से या मन ही मन उसका उपहास उड़ायेगा । सूनसान और अकेले उन रास्तों पर खो जाने का डर तो होगा पर एक विश्वास भी होगा उस चौराहे पर , जहाँ कोई तो आयेगा जो राह दिखायेगा , मंजिल दिलायेगा । पर ये चौराहा करता रहेगा इंतज़ार हर रोज नयी उम्मीद लिए नये मुसाफ़िरों का । - दीप्ति शर्मा
Comment
सादर
आदरणीय सूर्या बाली जी ,,, बहुत बहुत शुक्रिया ,, अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा .. आभारी हूँ .
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी ,,, बहुत बहुत शुक्रिया ,, अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा .. आभारी हूँ .
आदरणीय अलबेला खत्री जी ,,, बहुत बहुत शुक्रिया ,, अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा .. आभारी हूँ
आदरणीया रेखा जोशी जी ..बहुत बहुत शुक्रिया ,, अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा .. आभारी हूँ ..
आदरणीया राजेश कुमारी जी ..बहुत बहुत शुक्रिया ,, अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा .. आभारी हूँ ..
दीप्ति जी नमस्कार ! महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना "प्राण प्रिये " के लिए बहुत सारी बधाइयाँ स्वीकार करें।
waah !
ये चौराहा करता रहेगा इंतज़ार हर रोज नयी उम्मीद लिए नये मुसाफ़िरों का ,बहुत खूब दीप्ति जी ,अति सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई
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