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राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....

स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................

आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................

रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 11:35pm

निगम साहब

                 सादर,

रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................

बहुत भावुक करती काव्य पंक्तियाँ. वाह! बहुत ही सुंदरता से रचा है. बधाई.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 4, 2012 at 12:05am

आदरणीय और प्रिय अरुण निगम जी ..हार्दिक शुभ कामनाएं जन्म दिन मुबारक हो ...प्रभु आप के सारे प्यारे सपने पूर्ण करें आप समाज को यों ही रोशन करते रहें 

अरुण अरुणिमा ले कर निकले 
चारों ओर उजाला हो 
हर कर जोरे स्वागत करते 
मन देखे  मतवाला हो 

जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2012 at 11:34am

वाह आदरणीय अरुण जी तहे दिल से बधाई स्वीकार करें.....

Comment by satish mapatpuri on August 3, 2012 at 2:18am

राह तकती है तुम्हारी, आज यह सूनी कलाई.... ..... छक्का तो यहीं मार दिया आपने निगम साहेब . बहुत सुन्दर ख्याल .

रेशमी धागों की अब भी इस कलाई पर छुअन है हो रहा अहसास कि नजदीक ही मेरी बहन है वह प्रतीक्षा कर रही है हाथ में थामे मिठाई राह तकती है तुम्हारी आज यह सूनी कलाई

वाह ... वाह .... क्या बात है ... दिल से दाद दे रहा हूँ मित्र

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 3, 2012 at 12:40am

आँसू आँखों से  बहे, गीले अपने कांध. 

सही एक ही वेदना, गया सब्र का बांध.

आदरणीय अरुण जी,  आ० सौरभ जी, डॉ० प्राची जी व आ० अलबेला जी, आह से ही गीत उपजता है .........वस्तुतः यही सच है ...आप सभी के प्रति हार्दिक आभार ! सादर

Comment by Albela Khatri on August 2, 2012 at 11:26pm

सच कहा  आदरणीय  अरुण निगम जी.........कविता लिखी नहीं जाती, जन्म लेती है  और जन्म भी तब लेती है जब  संबंधों के संयोग से  वेदना गर्भवती होती है ...........

रात न ढले तो कभी
भोर नहीं होती बन्धु
सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है

लोहू तो निकाल सकता है
तेरे पाँव में से
कांच से मगर घाव कम नहीं होता है

जीने की जो चाह है तो
मौत से भी नेह कर
डरने वालों में कभी दम नहीं होता है

सच मानो जब तक
पीर का काग़ज़ न हो
कवि की कलम का जनम नहीं होता है 


____सादर

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 2, 2012 at 10:01pm

यहाँ  तो टिप्पणियों ने भी सजल कर दिया है

दर्द में डूबा ह्रदय तो  , डूबता संसार लगता

दिल के हालत की कहानी गीत की यह धार कहता

मै अकेले में ह्रदय को, रोकता  रह गया मगर क्यों

कवि ह्रदय भावों का साथी कविता की ले  धार बहता

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 2, 2012 at 9:25pm
प्रिय अरुण भाई आपको इस सजल करती, मन के तार को सप्नदित करती कविता के लिए आभार आपने अपनी व्यथा के साथ उन तमाम भाइयो का दर्द उकेर कर रख दिया है जिनकी बहनों के बिना कलाई सुनी है|आपकी कविता पढ़ कर तो मेरे नैन भर आये|यादों के झरोखों से झाकती आखो का सूनापन| द्वार में बहन की उपस्थिति का मार्मिक दृश्य| श्रावणी वर्षा का ह्रदय में,ह्रदय के रुदन का सुन्दर चित्रण..रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है इस लाईन में आँख डबडबा गयी
अत्यंत नाजुक एवं मार्मिक चित्रण
आपके इस गीत पर आदरणीय सौरभ जी ,अम्बरीश जी,सुरेन्द्र जी, प्राची एवं प्रिय अलबेला जी की टिप्पणी से
आपके इस मर्म पर आपके साथ हो कर इस बात का परिचय दिया है की हमारे घर परिवार से भी बढ़कर एक और
हमारा घर परिवार है जिसका नाम है ओपन बुक ऑन लाईन| जिसके रिश्तों को आपके द्वारा सुन्दर परिभाषित किया गया है
सौरभ जी की गोद है, अम्बरीष के काँध |

प्राची अलबेला रहे , मुझको ढाढस बाँध ||

मुझको ढाढस बाँध, यही परिवार कहाये |

सुख दुख में दे साथ, वही रिश्ता कहलाये ||धन्य है हम गर्व है हमें ओ. बी.ओ. परिवार पर
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on August 2, 2012 at 6:44pm

कितना सुन्दर गीत रचा है आदरणीय अरुण भईया...

सादर बधाई और रक्षाबंधन की शुभकानाएं स्वीकारें...

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 2, 2012 at 5:12pm

रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है

आदरणीय अरुण निगम जी ..ये अहसास सदा यों ही बना रहे खुशियाँ सजी रहें बहनों के घर ...और भाई बहन का प्रेम यों ही अमर रहें ...सुन्दर रचना 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

 

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