आह जो दिल से मेरे निकलती नहीं,
राह वो पगली शायद बदलती नहीं,
रोज़ मरता हूँ, जीता हूँ कभी-कभी,
हाल देख कर भी थोडा पिघलती नहीं,
खो गई पाकर, तुमको जिंदगी कहीं,
आज कल तबियत भी तो मचलती नहीं,
रूबरू आँखों में है, चेहरा तिरा,
अश्क बहते हैं, पर वो मसलती नहीं,
बात आती थी सारी, याद रात भर,
सांस सीने में रुकी, टहलती नहीं.......
Comment
शुक्रिया वीनस भाई
बहुत खूब अन्नत साहब
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
आदरणीय भ्रमर जी सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.... ये दो पंक्तियाँ मुझे भी खटक रही हैं.
अलबेला साहब बहुत-२ शुक्रिया......
आदरणीया रेखा माँ आपको पसंद आई बड़ी प्रसंता हुई, आभार......
आह जो दिल से मेरे निकलती नहीं,
राह वो पगली शायद बदलती नहीं,
रोज़ मरता हूँ, जीता हूँ कभी-कभी,
हाल देख कर भी थोडा पिघलती नहीं,
प्रिय अरुण जी बहुत सुन्दर जज्बात काश वे भी समझ जाएँ हाले दिल ......
kya baat hai
रोज़ मरता हूँ, जीता हूँ कभी-कभी,
हाल देख कर भी थोडा पिघलती नहीं, अरुण बेटा जीने के साथ थोड़ी ख़ुशी भी ले लो ,सुंदर अभिव्यक्ति
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