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आभार सम्पादक महोदय , प्रधान सम्पादक महोदय और प्रिय मित्रों का प्रिय मित्रों आप सभी हिंदी साहित्य प्रेमियों को 'भ्रमर' का नमन !आप सब के साथ ये साझा करते बहुत ही हर्ष हो रहा है की मुझे (21.08.2012 -…Continue
Started Aug 25, 2012
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन -जाऊं ---भ्रमर ५
क्यों मरते हो हे ! आतंकी
कीट पतंगों के मानिंद
हत्यारे तुम-हमे बुलाते
जागें प्रहरी नहीं है नींद…
ContinuePosted on November 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments
गुमशुदा हूँ मैं
तलाश जारी है
अनवरत 'स्व ' की
अपना ‘वजूद’
है क्या ?
आये खेले ..
कोई घर घरौंदा बनाए..
लात मार दें हम उनके
वे हमारे घरों को....
रिश्ते नाते उल्का से लुप्त
विनाश ईर्ष्या विध्वंस बस
'मैं ' ने जकड़ रखा है मुझे
झुकने नहीं देता रावण सा
एक 'ओंकार' सच सुन्दर
मैं ही हूँ - लगता है
और सब अनुयायी
'चिराग' से डर लगता है
अंधकार समाहित है
मन में ! तन - मन दुर्बल…
ContinuePosted on May 10, 2016 at 12:30pm — 5 Comments
तुम तो जिगरी यार हो
==================
दोस्त बनकर आये हो तो
मित्रवत तुम दिल रहो
गर कभी मायूस हूँ मैं
हाल तो पूछा करो ..?
-------------------------------…
ContinuePosted on April 15, 2016 at 1:00pm — 4 Comments
पढ़ते हुए बच्चे का अनमना मन
टूटती ध्यान मुद्रा
बेचैनी बदहवासी
उलझन अच्छे बुरे की परिभाषा
खोखला करती खाए जा रही थी .......
कर्म ज्ञान गीता महाभारत
रामायण राम-रावण
भय डर आतंक
राम राज्य देव-दानव…
ContinuePosted on March 4, 2016 at 11:00am — 6 Comments
आपकी मित्रता का ह्रदय से स्वागत है आदरणीय सुरेन्द्र जी
सादर!
आपका बहुत बहुत दिली शुक्रिया, आदरणीय शुक्ल जी .. आपको मेरी कोशिश पसन्द आई, मेरी मेहनत कामयाब हुई..
मित्रता सौभाग्य लाती है। मैं पावन हुआ। आपका हार्दिक स्वागत है।
आपका हृदय से आभारी हूं सुरेन्द्र भाई.......मुझे भी अत्यंत प्रसन्नता हुई कि आप भी मेरे ही जनपद के हैं.......यह स्नेह दिनोंदिन प्रगाढ हो ऐसी कामना है !!!!
आदरणीय ज्येष्ठ भ्राता सुरेन्द्र जी........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..........जय श्री राधे............
सुरेन्द्र भाई नमस्कार
"हम दोनों सागर के तट पर ना जाने कितनी बार एक साथ बैठ के साझा सूरज डुबा दिया करते थे क्या उन्हें उसका एक भी लम्हा याद नहीं आता होगा ! उनके स्पर्स को मै दिल से महसूस किया करता था ! क्या उनका स्पर्स मात्र एक छलावा था ? जो भी कुछ हो मै आज भी उन्हें यही दुवा दूंगा की
ओ जहाँ रहे वहाँ दर्द न हो...खुशी हो...रौशनी हो...खुशबुएं हों मुरादे मन की पूरी हो,..........!!! मै एक संस्था की अस्थापना करूंगा जो जरुरत मंद के लिए हमेशा कम करती रहेगी >>!!!!!!!!!!!!
सुरेन्द्र भाई नमस्कार ....!!!
दर्द में भी जीने का अपना एक मज़ा होता है ! उन्होंने जितने भी वादे किये थे उस वक्त बहुत सहज और सरल लगा था ! लेकिन आज ऐसा लगता है की उन्होंने एक बड़ा अजीब सा वादा किया था ! मुझे ख़ुशी इस बात की है की मैंने एक भी वादा तोड़ा नहीं ....किये भी वही...तोड़े भी वही......... !!!!
सुरेन्द्र भाई नमस्कार ! ग़ज़ल पर आपकी सधी हुई प्रतिक्रिया और उत्साहबर्धन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! ऐसे ही स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखें ! साभार !
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