रेशम से रिश्ते ....
न हवा
न आंधी
धूप का कहर
तमतमाई वसुधा
शज़र के शीर्ष से
गिरा
बे-दम सा
एक
ज़र्द पत्ता
इतना भी
क्या अफ़सोस
बोली
नयी कोपल
दर्द पे
शज़र के
एक हल्की सी ज़ुब्मिश
शज़र बोला
बाद गुज़रने के
इतनी लंबी उम्र
अब
रिश्तों की
समझ आयी है
तू
अभी नयी है
तू
मुझे भी कहाँ जान पायी है
छोड़ के देख
मेरी उंगली को
तुझे दर्द की…
Added by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 9:06pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
कर की चोरी देखिये जी धन की चोरी देखिये
लूटकर पकड़े गये तो जब्रजोरी देखिये
नोट्बंदी देखिये जी नोट खोरी देखिये
पूंजियों की सीरतें भी काली गोरी देखिये
नोट्बंदी का हथौड़ा ऐसा बैठा पीठ पर
भ्रष्टता की सरबसर टूटी तिजोरी देखिये
बह रहे हैं नोट सारे वो पुराने हर जगह
क्या समन्दर क्या नदी तालाब मोरी देखिये
लूटखोरी की बदौलत खत्म पैसे बैंक में
लाइनों की टूटती अब आस…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 13, 2016 at 12:08pm — 19 Comments
वागीश्वरी सवैये सूत्र : यगण X 7 + ल गा
अभी तो अकेले चले हैं मियाँ जी ,न कोई वहां है न कोई यहां ।
यहां कौन है जो बताये जहां को,कि बाबू चले हैं अकेले कहां ।
जहाँ जा रहे हैं रहेंगे अकेले,मिलेगा न साथी उन्हें तो वहाँ ।
पता है हमें ख़ूब यारों यक़ीं है, करेगा उन्हें याद सारा जहाँ ।।
_________
निगाहें उठाके ज़रा देख तो लो ,बताओ यहाँ क्यूँ अकेले खड़े ।
हमें ये बता दो बिना बात के ही,भला जान देने यहाँ क्यूँ अड़े।
जहाँ में न कोई हमें तो मिला…
Added by Samar kabeer on December 12, 2016 at 11:30pm — 18 Comments
2122 2122 212
मौत का मेरे नया फरमान कर ।
हो सके तो ऐ खुदा एहसान कर ।।
जिंदगी तो काट दी मुश्किल में, अब
रास्ता जन्नत का तो आसान कर ।।
जी रहा है आदमी किस्तों में अब ।
धड़कनो की बन्द यह दूकान कर ।।
टूट जाती हैं उमीदें सांस की।।
खत्म तू बाकी बचा अरमान कर ।।
हसरतें सब बेवफा सी हो गईं ।
आसुओं के दौर से अनजान कर ।।
हार जाता है यहां हर आदमी।
क्या करूँगा मौत को पहचान कर ।।
है गरीबी से मेरा रिश्ता…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 12, 2016 at 11:30pm — 14 Comments
बह्र : 1212 1122 1212 22
प्रगति की होड़ न ऐसे मकाम तक पहुँचे
ज़रा सी बात जहाँ कत्ल-ए-आम तक पहुँचे
गया है छूट कहीं कुछ तो मानचित्रों में
चले तो पाक थे लेकिन हराम तक पहुँचे
वो जिन का क्लेम था उनको है प्रेम रोग लगा
गले के दर्द से केवल जुकाम तक पहुँचे
न इतना वाम था उनमें के जंगलों तक जायँ
नगर से ऊब के भागे तो ग्राम तक पहुँचे
जिन्हें था आँखों से ज़्यादा यकीन कानों पर
चले वो भक्त से…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2016 at 11:28pm — 13 Comments
यादों का सफर ...
मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां पर आज
खिजाओं के डेरे थे
मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां आज
उजालों में अंधेरे थे
मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां आज
सिर्फ
यादों के घेरे थे
मैं
रुक गया
चलते चलते
जहां मंज़िल ने
मुँह मोड़ा था
मैं
हंस पड़ा
उस खार की अदा पर
जिसके दर्द में
यादों के डेरे थे
मैं…
Added by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
ग़ज़ल (हमें गुज़रा ज़माना याद आया )
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मफाईलुन---मफाईलुन---- फऊलन
मुहब्बत का फसाना याद आया |
हमें गुज़रा ज़माना याद आया |
बनी है जान की दुश्मन शबे गम
कोई साथी पुराना याद आया |
शबे गम चैन भी आएगा कैसे
वो फिर ज़ालिम यगाना याद आया |
न जब इज़्ज़त मिली परदेस जा कर
वतन का आब दाना याद आया |
मिलीं जब ठोकरें हर एक दर से
मुझे उनका ठिकाना याद आया…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 12, 2016 at 7:21pm — 12 Comments
आकाश से
गिरती है बिजली
और एक हरा भरा पेड़
अचानक बदल जाता है
एक काले ठूंठ में
भीतर तक
किसी काम नहीं आती
वह जली लकड़ी
सिवाय सुलगने के
धुवां छोड़ने के
अपने अंतिम सांस तक
और रह जाता है एक
अलिखित शिलालेख
ध्वंस का इतिहास समेटे
मौन स्तब्ध उदास जड़
निर्जीव
हमारे पूर्वज
लीपते थे गोबर से
माटी के घर
और उसकी दीवारें
क्योंकि वह मानते…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2016 at 6:09pm — 4 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 12, 2016 at 4:00pm — 18 Comments
निशानों में .....
आंखें बन्द
मुट्ठियों भिची हुई
अंतस में शोर
अपने रुद्र रूप में
तलाश
बीते लम्हों की
खो गए जो
अपने साथ लिए
जन्मों के वादे
सागर किनारे
गीली रेत पे
छूटे
गीले पाँव के
निशानों में
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 2:29pm — 8 Comments
" ऐ भाई ... दे दे ना ..."
"फिर आ गया तू ! चल भाग यहाँ से।"
" भाई ! एक दे दे ना,तुमको तो रोज बहुत मिलता है।"
" तेरी समझ में नहीं आता? ये जगह बच्चों के लिए नहीं ... अरे ! अभी भी यहीं खड़ा है ? लगाऊँ क्या एक ?"
" भाई ! आप बहुत अच्छे हो !एक दे दो, फिर नहीं आऊँगा यहाँ ।" अब उस लगभग बारह साल के बच्चे ने मस्का लगाने की कोशिश की।
" बड़ा ज़िद्दी है।कौन - कौन है तेरे घर में ?"
" माँ,छोटी बहन और मैं ।"
" और तेरा बाप ?"
" वो तो हमें छोड़ कर चला गया।उसने दूसरी शादी कर ली।"…
Added by Janki wahie on December 12, 2016 at 12:00pm — 21 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 7:28am — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 11, 2016 at 1:12pm — 11 Comments
काफिया: अल ;रदीफ़ :गया
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२
नव यौवन चंचल चितवन फिसल गया
यौवन की धूप खिली मन पिघल गया |
तेरे नैनों ने किया इशारा कुछ
निश्छल मृदु दिल तो मेरा मचल गया |
मखमल सी आवाज़ की तारीफ करूँ
कर्ण प्रवेश से पत्थर दिल पिघल गया |
हम कैसे कह दे के तू बेवफ़ा है
तेरा गफलत ही प्यार को कुचल गया |
आक्रोश भरा रूप कभी न दिखाओ
देख रौद्र रूप मेरा दिल दहल गया |
है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 10, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by Anita Maurya on December 10, 2016 at 10:00am — 6 Comments
बुद्धिजीवियों की एक ही हसरत
सुख समृद्धि को देश में है लाना ।
संभालकर रखना अपनी विरासत,
आपसी झगड़ों से सबको बचाना ।
इसके लिए खुद से करते कसरत
बिना किए कभी कोई भी बहाना ।
कोसों दूर रहती है इनसे मुसीबत
मिलती इन्हे खुशियों का खजाना ।
सभी लोग जानते इनकी हकीकत
आलसी सदा करते अनेकों बहाना ।
ऐसे लोगों की होती एक फितरत
दूसरों की कमी पर उंगली उठाना ।
समाज को दिखाते अपनी लियाकत,
समाज के सुधार से सदा मुंह…
ContinueAdded by Ram Ashery on December 10, 2016 at 9:30am — 4 Comments
Added by chandramauli pachrangia on December 9, 2016 at 12:19pm — 2 Comments
जंगल के अंदर उस खुले स्थान पर जानवरों की भारी भीड़ जमा थी। जंगल के राजा शेर ने कई वर्षों बाद आज फिर खरगोश और कछुए की दौड़ का आयोजन किया था।
पिछली बार से कुछ अलग यह दौड़, जानवरों के झुण्ड के बीच में सौ मीटर की पगडंडी में ही संपन्न होनी थी। दोनों प्रतिभागी पगडंडी के एक सिरे पर खड़े हुए थे। दौड़ प्रारंभ होने से पहले कछुए ने खरगोश की तरफ देखा, खरगोश उसे देख कर ऐसे मुस्कुरा दिया, मानों कह रहा हो, "सौ मीटर की दौड़ में मैं सो जाऊँगा क्या?"
और कुछ ही क्षणों में दौड़ प्रारंभ…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 8, 2016 at 6:35pm — 14 Comments
अदालत में बैठे बैठे उनकी आंख लग गयी, अभी तक जज साहब नहीं आये थे और लगता था कि आज भी नहीं आएंगे| लगभग साल होने को आये थे लेकिन मामला पहली सुनवाई के बाद आगे नहीं बढ़ पाया था| पता नहीं और कितने महीने या साल लग जायेंगे इसमें, उनको खुद को समझ में नहीं आ रहा था|
शादी के कुछ ही हफ्ते बाद पत्नी ने शिकायत करना शुरू कर दिया और एक दिन वह अपना सूटकेस लेकर निकल गयी| शाम को जब उन्होंने फोन किया तो उसने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह उनके साथ नहीं रह सकती| उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की, उसके घर भी गए लेकिन न…
Added by विनय कुमार on December 8, 2016 at 6:16pm — 8 Comments
अधूरी तिश्नगी ...
कैसे भूल सकती हूँ
वो रात
वो बात
जो एक चिंगारी से
शुरू हुई थी
वो चिंगारी
मेरी रगों में
धीरे धीरे
आग बनकर फैलती गयी
और मैं
चुपचाप उस आग में
जलती रही
मैं
खामोशियों के बियाबाँ में
गूंगी बनी
अपने जज़्बातों से
तन्हा सी
गुफ़्तगू करती रही
अपने खून में
लगी आग को बुझाना
मुझे कहां आता था
निहारती रही
आसमां की तरफ़
कि शायद कोई अब्र…
Added by Sushil Sarna on December 8, 2016 at 6:11pm — 12 Comments
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