For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हो सके तो ऐ ख़ुदा एहसान कर

2122 2122 212

मौत का मेरे नया फरमान कर ।
हो सके तो ऐ खुदा एहसान कर ।।

जिंदगी तो काट दी मुश्किल में, अब
रास्ता जन्नत का तो आसान कर ।।

जी रहा है आदमी किस्तों में अब ।
धड़कनो की बन्द यह दूकान कर ।।

टूट जाती हैं उमीदें सांस की।।
खत्म तू बाकी बचा अरमान कर ।।

हसरतें सब बेवफा सी हो गईं ।
आसुओं के दौर से अनजान कर ।।

हार जाता है यहां हर आदमी।
क्या करूँगा मौत को पहचान कर ।।

है गरीबी से मेरा रिश्ता बहुत ।
बेबसी का मत मेरी अपमान कर ।।

फूट कर वो रात भर रोता रहा ।
क्यूँ बहुत खामोश है सब जानकर ।।

जब अँधेरे ही मेरी किस्मत में हैं ।
रौशनी से मत खड़ा तूफ़ान कर ।।

-- नवीन
मौलिक अप्रकाशित

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 15, 2016 at 12:00am
आ0 सुशील सरन सर तहे दिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 14, 2016 at 11:59pm
आ0 कबीर सर सादर नमन ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 14, 2016 at 11:58pm
आ0 तस्दीक़ अहमद खान साहब सुन्दर सुझाव हेतु आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 14, 2016 at 11:56pm
आ0 मिथिलेश वामनकर साहब तहे दिल से शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 14, 2016 at 11:55pm
आ0 रवि शुक्ला साहब आपके सुन्दर सुझाव का स्वागत है सर । विशेष आभार ।
Comment by Ravi Shukla on December 14, 2016 at 1:36pm

आदरणीय नवीन मणि जी सुन्‍दर गजल कही है आपने बधाई कुबूल करें  

मतले के उला पर एक किंचित सा सुझााव है यदि उचित लगे तो द‍ेखियेगा 

मौत का जारी कोई फरमान कर 

हो सके तो ए खुदा अहसान कर   सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 14, 2016 at 12:43am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने, दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 13, 2016 at 10:09pm

मुहतरम जनाब नवीन मणि साहिब , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
शेर 3 के सानी मिसरे में क़ाफ़िया आपने " दूकान " लिया है जबकि सही शब्द " दुक्कान "
है , इसे लेने पर मिसरा बहर में रहेगा , देख लीजियेगा ---

Comment by Samar kabeer on December 13, 2016 at 8:13pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 8:09pm

हार जाता है यहां हर आदमी।
क्या करूँगा मौत को पहचान कर ।।

वाह आदरणीय शानदार और दमदार अशआर ... वाह बहुत खूब हुई है आपकी ग़ज़ल। इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"झूठ के विभिन्न आयामों को कथ्य में ढाल कर आपने एक सुंदर दोहावली प्रस्तुत की है, आदरणीय लक्ष्मण धामी…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service